निरंजन श्रोत्रिय की प्रतिष्ठा मुख्य रूप से एक कवि के रूप में रही है। प्रस्तुत कहानी संग्रह 'धुआँ' उनके विविध आयामी रचनात्मक व्यक्तित्व एवं संवेदनशील प्रश्नाकुलता को सामने लाता है। संग्रह की कहानियाँ आज के समय में उपस्थित विद्रूप परिस्थितियों का प्रतिकार तो करती ही हैं, वह गहन बेचैनी के साथ मानवीय संवेदना को भी तलाशती हैं। निरंजन की कहानियों में व्यक्ति में संवेदना की उष्मा के निरंतर मंद पड़ते जाने का तिक्त अहसास बार-बार उभर आता है।
इस चकाचौंध समय में मानव ने हर किस्म की सहूलियतें जुटा ली हैं, परंतु साधन संपन्नता के होड़ में उसके अंदर की मानवता दिनोदिन छीनती जा रही हैं। यह सामाजिक व्यवहारों में तो देखा ही जा रहा है, यह पारिवारिक-कौटुंबिक स्तर पर भी घट रहा है। इस संग्रह की दो महत्वपूर्ण कहानियाँ 'प्लेग' एवं 'जानवर' इसी पीड़ा की अभिव्यक्ति हैं।
'प्लेग' विषम आपदा की परिस्थिति में व्यक्ति के संकुचन, हृदयहीनता को सामने लाती है। भारतीय समाज को ग्रस रहा नए किस्म का रुझान है अन्यथा संकट की घड़ी में परस्परता इसकी पहचान रही है। यह कहानी आज के दहशत भरे माहौल की विडंबना भी सामने लाती है। 'कंधे' इस संग्रह की महत्वपूर्ण कहानी है जिसमें मूल्यों के ह्रास एवं परस्परता के विघटन को पीढ़ीगत द्वंद्व के माध्यम से रखा गया है। दादी ग्रामीण माहौल में रची बसी हैं और उसे छोड़कर जाना नहीं चाहतीं जबकि पिता को तरक्की के क्रम में एक जगह से दूसरे जगह जाना पड़ता है। यह पूरी मार्मिकता के साथ तब स्पष्ट होता है जब वे शहर पहुँचने पर कभी शवयात्रा न दिखने की बात उठाती हैं। यह कहानी विकास प्रक्रिया के दंश की अभिव्यक्ति है।
निरंजन श्रोत्रिय अपने समय से बावस्ता कहानीकार हैं। 'बेरोजगार' में अवसरहीनता से उपजी कुंठा एवं बेचारगी का मार्मिक चित्रण किया है। जिसमें बेरोजगार लड़का घर से बाहर रहने के लिए बेमतलब शहर का चक्कर लगाता रहता है। संग्रह की शीर्षक कहानी 'धुआँ' साहित्य में पनपे गुरुडम पर प्रहार करती है। संग्रह की कहानियाँ देश-काल के प्रश्नों से रूबरू है लेकिन इसकी सबसे प्रमुख विशेषता है मशीनी समाज, वैभवपूर्ण युग की हृदयहीनता, मानवीयता के ह्रास को उद्घाटित करते हुए सामूहिकता की तलाश।
पुस्तक : धुआँ लेखक : निरंजन श्रोत्रिय प्रकाशक : शिल्पायन मूल्य : 130 रुपए