नंगा सच : द्वन्द्व दर्शाती लघुकथाएँ
आदर्श और यथार्थ के बीच विचरती कथाएँ
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कृष्ण कुमार भारतीय
रोहित यादव के लघुकथा संग्रह 'नंगा सच तथा अन्य लघुकथाएँ' में संकलित लघुकथाएँ युगीन यथार्थ का नग्न हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं। यह उनका दूसरा लघुकथा संग्रह है। इससे पूर्व उनका एक लघुकथा संग्रह 'सब चुप हैं' सन् 1999 में प्रकाशित हो चुका है।
समीक्षित संकलन की शीर्षक लघुकथा 'नंगा सच' आदर्श और यथार्थ के मध्य के अन्तर को प्रस्तुत करती है। हम कल्पनाओं में जीते हैं जबकि यथार्थ बहुत कड़वा है। इस संग्रह में लेखक की सामाजिक चिंताएँ प्रस्फुटित हुई हैं। एक तरफ जहाँ वह परिवार व समाज की दरारों के मध्य की विसंगति को अभिव्यक्त करता है तो दूसरी ओर राजनीतिक भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, लैंगिक असमानता व पीढ़ीगत अन्तराल में बुजुर्गों की दयनीय अवस्था का भी मार्मिक चित्रण इन लघुकथाओं में मिलता है। 'आज के भगवान' लघुकथा में मूल्य परिवर्तन को दर्शाया गया है। ' फर्क' में लैंगिक मतभेद पर करारा व्यंग्य है।
समय शीर्षक लघुकथा मात्र कुछ ही शब्दों में नारी जीवन की व्यथा को उद्घाटित कर देती है। 'गुरुमंत्र' पुलिस विभाग के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करती है। सांझा चूल्हा में संक्रमित संस्कृति का कड़वा यथार्थ उभरा है। 'कर्जदार' में लेखक गोमाता के प्रति व्यावसायिक दृष्टिकोण न अपनाकर भारतीय जन-जीवन में गाय के महत्व को प्रतिपादित करता है।
'कबाड़' लघुकथा आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपनी लोक संस्कृति को कबाड़ बना देने को रेखांकित करती है। देशहित में राजनीति के दोगले चरित्र पर चोट की गई है।
'डर' व 'नाग पूजा' जैसी लघुकथाएँ समाज में व्याप्त अंधविश्वास की गहरी जड़ों पर प्रहार करती है। पीला राशनकार्ड उन लोगों के चेहरों को पीला कर देता है जो दूसरों के हकों पर डाके मार रहे हैं।
रोहित यादव के इस संग्रह में प्रयुक्त कथानक जमीनी सच्चाइयों का प्रकटीकरण है। भाषा में साहित्यिकता के साथ-साथ लोक-भाषा की गंध भी व्याप्त है। जीवन के अनेक व्यावहारिक पक्षों के प्रति पाठकों में विवेक उत्पन्न करने में ये लघुकथाएँ कारगर भूमिका निभाती हैं।
पुस्तक : नंगा सच तथा अन्य लघुकथाएँ,
लेखक : रोहित यादव,
प्रकाशक : साहित्य मंदिर, दिल्ली- 110006,
मूल्य : 140 रुपए
पृष्ठ : 123