स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर का न केवल हिंदी पत्रकारिता बल्कि समूची भारतीय पत्रकारिता में अपना एक विशिष्ट स्थान है। वे ऐसे शख्स थे जिन्होंने आजादी के बाद की हिंदी पत्रकारिता को साहित्य और अनुवाद के आवरण से बाहर निकालकर आधुनिकता के युग में प्रवेश कराया था।
उससे पहले हिंदी पत्रकारिता एक सीमित दायरे में चहलकदमी करते नजर आती थी। हिंदी पत्रकारिता को दोयम दर्जे के हीन बोध से मुक्त कराने का श्रेय उन्हें है। शिव अनुराग पटैरया की स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर पर केंद्रित पुस्तक में माथुरजी के व्यक्तित्व व लेखन के तमाम पहलुओं को रेखांकित किया गया है।
यद्यपि माथुर जी का लिखा, मृत्यु के बाद बहुत छपा है लेकिन राजेन्द्र माथुर पर कम ही लिखा गया है। जो थोड़ा बहुत उनके बारे में लिखा गया, वह उनकी मृत्यु के तत्काल बाद उनके कुछ मित्रों और सहयोगियों ने लिखा था। जो श्रद्धांजलि अधिक है। ऐसे चार लेख इस पुस्तक में संग्रहित हैं।
राजेन्द्र माथुर की मृत्यु के लगभग 20 साल बाद पहली बार उन्हें एक अलग ही नजरिए से देखने की कोशिश की गई है। लेखक शिव अनुराग पटैरया के इस मोनोग्राफ में राजेन्द्र माथुर के व्यक्तिगत जीवन और व्यक्तित्व पर केवल 10 पृष्ठ हैं, शेष में उनके लेखन के विविध आयाम हैं, विश्लेषण है और उनके चुनिंदा पाँच आलेख हैं।
लेखक ने पचपन पृष्ठों में राजेन्द्र माथुर के लेखन की व्यापकता को आँकने की कोशिश की है। उनके संपादन कौशल, उनके लेखन के विस्तृत दायरे, उनके अंतर्राष्ट्रीय सरोकारों, उनके राजनैतिक लेखन आदि पर लिखा गया है। उनके लेखन का विश्लेषण करते हुए पटैरया ने उनके विभिन्न आलेखों से छोटे-छोटे टुकड़े उठाए हैं।
पुस्तक : पत्रकारिता के युग निर्माता- राजेन्द्र माथुर लेखक: शिव अनुराग पटैरया प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन मूल्य : 175 रुपए