Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पर्यटन नहीं यायावरी की दरकार

Advertiesment
हमें फॉलो करें पर्यटन नहीं यायावरी की दरकार
- डॉ. इसाक 'अश्क'

ND
मनुष्य जातियों का इतिहास उनकी यायावरी प्रवृत्ति से संबद्ध रहा है। हम इसे मानव की एक मूल प्रवृत्ति भी कह सकते हैं। एक साहित्यिक यायावर को यात्रा का अद्भुत आकर्षण अपनी ओर खींचता और उसे कागज पर उकेरने के लिए विवश करता है। संसार के लोग इस ओर ध्यान नहीं दे पाते हैं

वे चलते हैं, यात्रा भी करते हैं... पर बैल की तरह अपने भार के साथ कोल्हू के चारों ओर घूमने में ही अपने परिश्रम की सार्थकता मान बैठते हैं। साहित्यिक यायावर अपनी युक्त मनोवृत्ति के साथ घूमता है, उसके घूमने का अर्थ अपने आप में पूर्ण होता है।

संसार के बड़े-बड़े यायावर अपनी मनोवृत्ति में साहित्यिक थे। फाह्यान, ह्वेन सांग, इत्सिंग, इब्न बतूता, अलबरुनी, मार्कोपोलो, बर्नियर, टेवर्नियर... जितने भी यायावर हुए, इस सबके यात्रा विवरणों में साहित्यिक यायावर का रूप रक्षित है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि यात्रा करने मात्र से कोई साहित्यिक यायावर की संज्ञा प्राप्त नहीं कर सकता। न उसके द्वारा विरचित यात्रा विवरण प्रस्तुत कर देना यात्रा-साहित्य है।
  संसार के बड़े-बड़े यायावर अपनी मनोवृत्ति में साहित्यिक थे। फाह्यान, ह्वेन सांग, इत्सिंग, इब्न बतूता, अलबरुनी, मार्कोपोलो, बर्नियर, टेवर्नियर... जितने भी यायावर हुए, इस सबके यात्रा विवरणों में साहित्यिक यायावर का रूप रक्षित है।      


आधुनिक हिन्दी साहित्य में यह साहित्यिक रूप भी कई अन्य रूपों के साथ पाश्चात्य साहित्य के संपर्क में आने के बाद ही विकसित हुआ है। निबंधकार जिस प्रकार अपने विषय को अपनी मानसिक संवेदन स्थिति में ग्रहण करता है, उसी प्रकार यात्री भी अपनी यात्रा के प्रत्येक स्थल और क्षणों में से उन्हीं क्षणों को सँजोता है जिनको वह अनुभूत सत्य के रूप में ग्रहण करता है।

अधिकतर यात्रा-साहित्य संस्मरणात्मक होता है। निबंध संग्रह 'शरणार्थी शिविर में विवाह गीत' पत्रकार एवं लेखक ललित सुरजन का दूसरा निबंध संग्रह है, जिसमें अड़तालीस संस्मरणात्मक यात्रा आलेख जिल्दबद्ध किए गए हैं। जो एथेंस, सोवियत संघ, जापान, मॉरीशस, ग्रेट ब्रिटेन से लेकर पंढरपुर, पुणे, इलाहाबाद, सरगुजा, भुवनेश्वर तक फैले हैं। पुस्तक पढ़ने पर लगता है कि लेखक का घूमने-फिरने वाला अनुभव-संसार अनूठा है।

जहाँ-जहाँ भी वह घूमा-फिरा है वहाँ की प्राकृतिक छटा, ऐतिहासिक वैभव, जीवन शैली इन यात्रा वृत्तांतों में सजीव हो उठी है। लेखक इन वृत्तांतों के माध्यम से यह बताना चाहता है कि अपने आसपास घूमो, लोगों के साथ रिश्ते बनाओ क्योंकि कोई भी स्थान और वहाँ के साकिन लोगों की दुनिया महज घूमने-फिरने के लिए नहीं होती, जीने और अनुभव करने के लिए होती है

केवल पर्यटक की हैसियत से अगर आप घूम-फिर आए तो आपके हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। इतना कुछ होने के बाद भी इन आलेखों की सबसे बड़ी कमी यह है कि जिन स्थलों की लेखक ने यात्राएँ की हैं- वे सूचनाप्रद तो हैं मगर वहाँ के समग्र जीवन को लेखक चाहकर भी समेट नहीं पाया है। यात्रा में मिलने वाले पात्र भी स्वजन तो लगते हैं, किंतु आत्मीय नहीं लगते

स्वयं लेखक ने भी स्वीकारा है कि- 'मेरे पास न तो उन्मुक्त सैलानी की विहंगम दृष्टि है न सिद्ध साहित्यकार की सर्वग्राही संवेदनशीलता और न प्रकांड पंडित की बेधक विश्लेषण क्षमता।' जिसके अभाव में यह संग्रह अज्ञेय के 'अरे यायावर रहेगा याद', मोहन राकेश की 'आखिरी चट्टान', अमृत राय के 'सुबह के रंग' बेनीपुरी के 'पैरों में पंख बाँधकर' जैसा यात्रा-दस्तावेज बनते-बनते रह गया है। फिर भी लेखक की अपनी दृष्टि, प्रतिक्रिया एवं संवेदना खूब है

* पुस्तक : शरणार्थी शिविर में विवाह गी
* लेखक : ललित सुरज
* प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रा.लि., 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली-2
* मूल्य : रु. 250/-

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi