विचारों का निर्झर सा प्रवाह जीवन के कितने ही देखे-अनदेखे पहलुओं को मन के किसी नितांत निजी कोने में सहेजकर रखता जाता है। जिंदगी भर हम ऐसे अनेक विचार सहेजकर रखते चले जाते हैं और फिर एक दिन ये शब्द बनकर कागज पर उतर पड़ते हैं। कविताएँ एक ऐसी लयात्मक अनुभूति हैं जो शब्दों के रूप में कागज पर नृत्य की नई परिभाषाएँ रच डालती हैं। इनके जरिए रचनाकार थोड़े में अपनी भावनाओं को बाँधकर रंग-बिरंगे इंद्रधनुष से रच डालता है। कुछ ऐसे ही इंद्रधनुषी रंग श्रीधर जोशी के काव्य संग्रह 'प्रतीक्षा' में दिखाई देते हैं।
संग्रह में शामिल कविताओं में शब्दों का सुंदर प्रयोग है और साहित्यिक स्तर पर यह कविताओं को और भी समृद्धि देता है। शब्द कठिन नहीं किंतु गहरे उतरने वाले हैं। रचानकार ने प्रकृति, त्योहार, मानवीय रिश्ते, व्यवस्थाएँ, समाज तथा स्वयं के आकलन पर भी कलम चलाई है। भावनाओं के गंभीर अवलोकन में कवि ने पूरी तन्मयता दिखाई है इसलिए कविताओं में गहरी भावप्रवणता दिखाई देती है। कैसे सोहर गीत लोरियाँ में वे कहते हैं-
हम मरू -कानन के फूल, हमारा खिलना क्या, कुम्हलाना क्या? बिन मान मनौती व्रत जप तप, अनवांछित जैसे बड़े हुए लू लपटों ने झुलसाया हरदम, हठयोगी जैसे खड़े हुए
मिली-जुली कविताओं के इस संग्रह में कहीं-कहीं व्यंग्य तथा कटाक्ष के भी दर्शन होते हैं एवं सामाजिक होड़ पर की गई चोट भी दिखाई देती है। साथ ही 'शिशु सुमन सलोने', 'शिशु का अंतर क्रंदन' तथा 'और कोई भगवान नहीं', कविताओं में जोशीजी ने बालमन की भावनाओं को गहराई से उकेरा है। प्रकृति के सामान्य रंगों को भी कवि ने बखूबी शब्द दिए हैं। कुछ इस प्रकार-
आती है, वर्षा आती है, आशा के गीत गुंजाती है। छिन-छिन में नव परिधान पहन बिजली का नृत्य दिखाती है बच्चों को कितनी प्यारी लगती माँ जैसा सुख पहुँचाती है।
संग्रह के अंत में लिखे मुक्त कण तथा मुक्तक बरबस ही ध्यान खींच लेते हैं।
पुस्तक - प्रतीक्षा लेखक - श्रीधर जोशी प्रकाशक - शिव शक्ति प्रकाशन, 8, डी.के.1, स्कीम नंबर 74, विजय नगर, इंदौर मूल्य - 100 रुपए