जावेद आलम
हमारे आसपास इतनी विसंगतियाँ फैल गई हैं कि इन पर वार करने के लिए हर व्यक्ति में एक व्यंग्यकार जन्म ले चुका है। लेखकों के भीतर पैदा होने वाला व्यंग्यकार उसके लेखन में अभिव्यक्ति का रास्ता पा लेता है। जो लोग इस व्यंग्यकार को अभिव्यक्त नहीं कर पाते वे व्यंग्य पढ़कर खुश हो लेते हैं।
यही कारण है कि आजकल व्यंग्य लेखन धड़ल्ले से होने लगा है। प्रस्तुत पुस्तक "बेटा वीआईपी बन" भी व्यंग्य लेखों का संग्रह है। आरके पालीवाल द्वारा लिखित इस पुस्तक में कुल जमा 22 व्यंग्य लेख संग्रहीत किए गए हैं, जिनमें आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से लगाकर हमारे घर-द्वार की विसंगतियों पर भी चोट की गई है।
"लाड़ले की शामत" लेख अभिभावकों की असीम इच्छाओं-आकांक्षाओं पर केंद्रित है। यह चित्र है ऐसे माता-पिता का जो अपने बच्चों को अपनी अनंत इच्छाओं के आकाश में दौड़ाते रहते हैं। वे बच्चों को अपनी मर्जी का बनाना चाहते हैं और इस प्रयास में अति भी कर बैठते हैं, जिसका नुकसान बच्चों को उठाना पड़ता है। "फर्टिलिटी तत्वों की खोज" हल्का-फुल्का व रोचक व्यंग्य है जो बढ़ती आबादी पर चोट करता है। हालाँकि इसमें चुटकुलों का भी सहारा लिया गया है। "कन्फ्यूजन का कोहरा" नामक लेख गंभीर है तथा एक गहरी बात सामने रखता है। यह सपाट व संदेशपरक नहीं है।
पुस्तक में उठाए गए मुद्दे अच्छे थे मगर इन्हें और अधिक पैनेपन से लिखा जाना चाहिए था। पुस्तक छपी बहुत अच्छी है, जिससे इसकी कीमत बढ़ गई है।
पुस्तक : बेटा वी.आई.पी. बन
लेखक : आरके पालीवाल
प्रकाशक : कल्याणी शिक्षा परिषद 3320-21, जटवाड़ा, दरियागंज नई दिल्ली - 110002
मूल्य : 200 रुपए।