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भारत की शताब्दी : कमलनाथ की कलम से

आर्थिक सुधारों की अंतर्कथा

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सुरेश बाफना
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आजादी मिलने के बाद भारत में राजनेताओं द्वारा पुस्तकें लिखने की परंपरा कमजोर हई। पं.जवाहर लाल नेहरू के बाद किसी भी प्रधानमंत्री ने अपने अनुभवों को लिपिबद्ध करने का प्रयास नहीं किया। देश की राजनीतिक व आर्थिक घटनाओं से जुड़े तथ्यों की जानकारी आमतौर पर हमें तीसरे स्रोतों से मिलती रही है, जिनकी विश्वसनीयता पर हमेशा सवालिया निशान रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान देश के राजनेताओं में अपने अनुभवों व विश्लेषण को लिपिबद्ध करने की एक सुखद प्रवृत्ति दिखाई दे रही है।

आमतौर पर नेताओं या मंत्रियों द्वारा लिखी किसी पुस्तक को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। यहाँ तक कहा जाता है कि नेता या मंत्री के नाम पर किसी और लेखक ने पुस्तक लिखी होगी। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले नेताओं की कुछ पुस्तकें आनन-फानन में प्रकाशित हुई थीं, जिनमें कई तथ्यात्मक गलतियाँ रह गई थीं।

हाल ही में केंद्रीय मंत्री कमलनाथ द्वारा लिखित पुस्तक 'भारत की शताब्दी' के हिंदी संस्करण के प्रकाशन से भारत के आर्थिक सुधारों की अंतर्कथा समझने का अवसर मिला है। 1946 में जन्मे कमलनाथ 1980 में देश के सबसे पिछड़े लोकसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा से पहली बार चुने गए और उसके बाद लगातार जीतते रहे।

पर्यावरण और उद्योग तथा वाणिज्य मंत्री के रूप में उन्होंने प्रमुख पात्र की भूमिका निभाई। अस्सी का दशक भारतीय राजनीति व अर्थव्यवस्था के लिए संकटमय रहा और 1991 में संकट इस स्तर पर पहुँच गया कि देश को ब्रिटेन की बैंक में सोना गिरवी रखना पड़ा था। इस संकट के संदर्भ में राजनीति और अर्थव्यवस्था के स्तर पर होनेवाले परिवर्तनों की कथा को कमलनाथ ने एक ऐतिहासिक संदर्भ में पेश करने की कोशिश की है।

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उनका कहना है कि भारत की उद्यमशीलता में जुगाड़ का विशेष महत्व है, जिसके माध्यम से हर समस्या व संकटों का हल निकाला जाता है। ग्रामीण इलाकों में कम पढ़े-लिखे लोग उपलब्ध साधनों में आगे बढ़ने का रास्ता किसी तरह खोज लेते हैं। जब दुनिया में वाई-टू-के का संकट पैदा हुआ तो भारत के कंप्यूटर विशेषज्ञों ने समाधान निकालकर दुनिया में अपना परचम लहराया था।

भारत की कंप्यूटर कंपनियों की सफलता ने दुनिया को इस बात का अहसास कराया कि वे अपनी कीमत पर ही भारत की अनदेखी कर सकते हैं। कमलनाथ ने देश के साथ-साथ दुनिया को भी करीब से बदलते हुए देखा है, इसलिए विभिन्न मुद्दों पर उनका विश्लेषण अकादमिक कम व्यावहारिक अधिक है।

वे मुंबई के डिब्बावालों की क्षमता में भविष्य की सफलताओं को देखते हैं। भारत की तकनीकी क्षमता और तकनीक के स्तर पर हुए परिवर्तनों ने देश को आर्थिक विकास के उस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ आगे बढ़ने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। कमलनाथ ने वाणिज्य व उद्योग मंत्री के रूप में विश्व व्यापार संगठन के मंच पर पाँच साल तक चली वार्ता में हुई राजनीति का ब्यौरा देने में कोई कंजूसी नहीं की है।

जिनेवा में हुई व्यापार-वार्ताओं के तनावपूर्ण क्षणों में कमलनाथ ने छिंदवाड़ा और देश के अन्य गरीब किसानों की चिंताओं को संवेदनशीलता के साथ पेश किया। पुस्तक में कमलनाथ ने अपने अनुभवों के आधार पर बताया है कि किस तरह भारत के प्रति दुनिया के नजरिए में बदलाव आया है। उनकी चिंता यह है कि यदि हम शिक्षा व स्वास्थ्य के मोर्चे पर अपेक्षित रूप से सफल नहीं हुए तो आगे बढ़ने के रास्ते में बाधाएँ आ सकती हैं। उनका विश्वास है कि अपनी जुगाड़ टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने में सफल होंगे।

पुस्तक : भारत की शताब्दी
लेखक: कमलनाथ
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 600 रुपए

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