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मन तरंग की जलधारी

भावुक कविताओं का भोला संग्रह

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हमें फॉलो करें मन तरंग की जलधारी

स्मृति आदित्य

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कविता मन की नाजुक अभिव्यक्ति होती है। जब कोई एक भाव, कोई एक विचार पूरे प्रवाह के साथ शब्दों में बँधकर आना चाहे और बिना किसी नियम के कागज पर उतर आए, उसी को कविता कहा जाए तो इन मायनों में शशीन्द्र जलधारी की कविता को कविता कहा जा सकता है। शशीन्द्र जलधारी मूल रूप से पत्रकार हैं। उनके काव्य संग्रह 'मन तरंग' ने पिछले दिनों ही दस्तक दीं है। उनकी कविताएँ सरल सहज हैं। लेकिन कहीं-कहीं ऐसा लगता है मानों छवि निर्माण, रिश्तों को प्रगाढ़ बनाए रखने की कवायद और व्यक्तिगत 'आग्रह' के समक्ष सहज अभिव्यक्ति कसमसा गईं है।

उनका कवि मन अगर भावुकता पर थोड़ा नियंत्रण कर लेता तो काव्य संग्रह में एक कसावट आ जाती। क्योंकि नि:संदेह उनका शब्द-भंडार समृद्ध है। अभिव्यक्ति कुशल है। अपनी बात को कहने का प्रभावी अंदाज है। नकारात्मकता को उकेरने का तीखा तेवर भी है। बस एक ही बात खटकती है कि वे अपनी इन दक्षताओं को सही रूप में तराश कर पाठकों के सामने नहीं आ सके। अगर आते तो भरपूर प्रशंसा के हकदार थे।

'मन तरंग' में विषय, रिश्ते और घटनाओं की विविधता पर कविताएँ समेटी गई है। ‍कवि की अवलोकन क्षमता, पैनी दृष्टि और पत्रकारीय तेवर बिना किसी लाग लपेट के खुलकर सामने आते हैं। पुस्तक में बालकवि बैरागी, सत्यनारायण सत्तन, अभय छजलानी, सरोज कुमार आदि की बात काव्य संग्रह में प्रवेश करने का हौसला देती है। बार-बार पाठकों को इस बात के लिए तैयार किया गया है कि जलधारी की रचनाओं को काव्य के पैमाने पर ना कसा जाए उन्हें सहज अभिव्यक्ति के तौर पर लिया जाए। सचमुच अगर दिमाग को इन लेखकीय बातों से परे रखा जाए तो संग्रह की कुछ रचनाएँ मन मोह लेती है। रिश्तों पर रची गईं रचनाएँ लुभाती हैं। अभयजी और नईदुनिया के प्रति उनकी श्रद्धा शब्द-प्रति-शब्द प्रवाहित हुईं हैं। अपने पत्रकार होने पर उन्हें गर्व है लेकिन आज की पत्रकारिता के अवमूल्यन पर तीखा-सुलगता व्यंग्य भी वे उसी आत्मविश्वास से करते हैं। चुनाव और नेता पर उनकी रचनाएँ बड़ी तबियत से लिखीं गईं है।

कुछ कविताओं में शब्दों का आडंबर कवि जलधारी को पसंद नहीं है और कुछ कविताओं में अभिव्यंजनाओं और अतिरंजनाओं के बोझ तले सहजता घोंट दी गई है। यही वजह है कि काव्य संग्रह की कोई एक भावगत पहचान नहीं है।

मिली-जुली भावभूमि पर रची कविताओं को पढ़ना दीपावली के व्यंजनों का आभास देता है। जिसमें नमकीन भी है, मीठा भी और कुछ धानी की तरह फीका भी। काव्यसंग्रह यह अहसास शिद्दत से कराता है कि कवि अपने भोलेपन को मिल-बाँटकर खुश होता है। यह अहसास ही इस विषम समाज में बेशकीमती है। इन अर्थों में 'मन तरंग' की जलधार भावुक मन को भिगोने में सक्षम है।

पुस्तक : मन तरंग (काव्य संग्रह)
लेखक : शशीन्द्र जलधारी
मुद्रक : रामस्वरूप मूँदड़ा, अनुरूप ग्राफिक्स, इंदौर(म.प्र.)
मूल्य : 50 रुपए

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