पुस्तक के बारे में यह किताब महादेवी की लिखत-पढ़त, उनके बारे में लेखक की संस्मृतियों के भीतर से उनको समझने की एक निजी कोशिश है। लेखक की निजी संस्मृतियाँ भी महादेवी के कृतित्व को व्याख्यायित करने और उसके सार तत्व तक पहुँचने की बुनियाद के बतौर हैं।
महादेवी को संसार जितना अंतरंग है, उतना ही बहिरंग। अंतरंग में दीपक की खोज है और बहिरंग के कुरूप काले संसार में सूरज की एक किरण की। महादेवी के संपूर्ण कृतित्व में अद्भुत संघर्ष है और पराजय कहीं नहीं।
पुस्तक के चुनिंदा अंश * पता नहीं कब, महादेवी ने अपनी काव्य-यात्रा को पाँच यामों में बाँटने की बात सोची होगी। ऐसा शुरू से तो नहीं हुआ होगा। कोई कलाकार नहीं जानता, नहीं जान सकता कि वह आगे क्या करेगा? कला रचनाएँ एक अँधेरी खोह से निकलती हुई दीप्त छबियाँ हैं। लेकिन मुझे लगता है कि 'नीरज' के गीतों तक आते-आते महादेवी को अपनी काव्य-भूमि, काव्य-गति, उसकी दिशा और उसके रूप रंग स्पष्ट होने लगे होंगे।
चारों पहरों को अंतत: उन्होंने 'यामा' में एकत्रित संकलित किया ही और फिर 'दीपशिखा'। और वह ऊपर की पंक्ति 'निर्वाण' लौ का अचानक बुझ जाना। एक उठता हुआ धुआँ। उसकी टेढ़ी-मेढ़ी आकृति, ऊपर को उठती हुई...!
* मेरी एक अपनी मौसेरी बहन थी। सौंदर्य के जितने भी मापदंड हो सकते हैं, उन्हें भी मात देने वाली। बनारस में एक दरोगा के सुपुत्र से उसकी शादी हुई। पहली बार जब वह मायके लौटी तो संयोग से मैं गाँव गया हुआ था। उसने एकांत पाकर अपनी साड़ी जाँघों तक हटा दी। चिमटे को चूल्हे में दहका कर उसको दागा गया था। उसकी अमिट छाप उसकी गोरी जाँघों पर थी। हालाँकि उसका किसी भी रावण ने अपहरण नहीं किया था, वह किसी भी अशोक वाटिका में एक वर्ष एकांत में नहीं रही थी।
* परिवार के सारे प्रयासों के बावजूद महादेवी ने गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने से दो टूक इंकार कर दिया। इसके लिए कई दफा कई तरह से कोशिशें की गईं लेकिन महादेवी ने जो ना कर दिया सो कर दिया। इन्हीं स्थितियों में महादेवी और छोटी बहन श्यामा देवी को गोविंद प्रसाद वर्मा ने इलाहाबाद क्रोस्टवेथ गर्ल्स कॉलेज में पढ़ाई के लिए दाखिला दिलाया। यह बात सन 1919 की है। जाहिर है कि तब महादेवी की उम्र सत्रह बरस की होगी।
समीक्षकीय टिप्पणी इस पुस्तक का शिल्प आलोचना के क्षेत्र में एक नई प्रस्तुति है। साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ही आलोचना की पठनीयता भी जरूरी है। दरअसल किसी कविता, कला, कथा, विचार या लेखक के प्रति सहज उत्सुकता जगाना और उसे समझने का मार्ग प्रशस्त करना ही आलोचना का उद्देश्य है। और यह किताब यही काम करती है। महादेवी के रचनात्मक विवेक को जानने के लिए यह किताब समानांतर रूपक की तरह है।
उनकी कविता, गद्य और उनकी चित्र-वीथी तीनों मिलकर ही महादेवी के सौंदर्य-शास्त्र का चेहरा निर्मित करते हैं। यह पुस्तक इसी चेहरे का दर्शन-दिग्दर्शन है।
पुस्तक : महादेवी विधा : आलोचना लेखक : दूधनाथ सिंह प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन पृष्ठ : 444 मूल्य : 600 रुपए