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मार्मिक उपन्यास : ‘द सिटी ऑफ जॉय’

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हमें फॉलो करें मार्मिक उपन्यास : ‘द सिटी ऑफ जॉय’
- नेहमित्त

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‘द सिटी ऑफ जॉय’ डोमिनीक लापिएर की विश्व प्रसिद्ध कृति है। मोहिनी राव ने इसका हिन्दी अनुवाद किया और नाम दिया है आनंद नगर। कहानी के मुख्य पात्र हैं हसारी पाल और कोवाल्स्की। अन्य पात्र हैं मैक्स, अनिल गुप्ता, सलीमा, रसूल, अनवर और मदर टेरेसा।

दिल को छू जाने वाले इस उपन्यास में कोलकाता की एक गरीब बस्ती का चित्रण है। बस्ती में रहने वाले आजीविका के लिए कुछ ऐसे व्यापारियों की बातों में आ जाते हैं जो दौलत के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इनके जाल में फँसकर ये गरीब लोग अपना खून तक बेचने को तैयार हो जाते हैं। पुस्तक में लेखक ने शहर की अमानवीयता, काले व्यापार और इससे जुड़े लोगों के बारे में बताया है।

रिश्वतखोर पुलिस, कुष्ठ रोगियों से भेदभाव, छुआछूत की प्रथा, अंधविश्वास, भ्रष्ट राजनीतिक नेता तथा शोषित, अनपढ़, भोलेभाले बस्ती वाले, ट्रेड यूनियन, जनरल अस्पताल में भ्रष्टाचार- इन सबके बारे में बड़ी कुशलता वर्णित किया गया है। महानगर के इंसानी घोड़ों तथा उनके जीवन के बारे में एक मर्मस्पर्शी कथा लिखी गई है। कठोर जीवन से लड़ते हुए इन गरीबों के पास कुछ भी नहीं है, परन्तु उनके दृढ़-संकल्प तथा जीने की चाह ने इन्हें सबकुछ सहने की शक्ति दी है।
  ‘द सिटी ऑफ जाय’ डोमिनीक लापिएर की विश्व प्रसिद्ध कृति है। मोहिनी राव ने इसका हिन्दी अनुवाद किया और नाम दिया है आनंद नगर। कहानी के मुख्य पात्र हैं हसारी पाल और कोवाल्स्की। अन्य पात्र हैं मैक्स, अनिल गुप्ता, सलीमा, रसूल, अनवर और मदर टेरेसा।      


कोवाल्स्की, मैक्स जैसे एंग्लो इंडियन ने गरीबों व रोगियों का इलाज किया तथा उनके प्रति जो भेदभाव और छुआछूत का रोग था उसे दूर करने की कोशिश की। सारी इस कहानी का मुख्य पात्र है। गाँव छोड़कर वह शहर के रेलवे स्टेशन पर रहता था। नगर में उसे काम मिलने की उम्मीद बत्ती की लौ की तरह बुझने लगी।

पेट की आग बुझाने के लिए हसारी ने अपना खून बेच दिया। वह यह जान गया कि इस महानगरी में कमजोर तथा बेसहारा लोगों को शोषित करने के लिए जाली व्यापारी ऐसे व्यक्तियों को अपना शिकार बनाते हैं। हसारी के रूप में शहर में फैली भूख, दरिद्रता तथा बेरोजगारी पाठकों के सम्मुख प्रभावी रूप से सामने आती है।

भारी-भरकम सामान उठाते वक्त अगर एक कुली मर गया तो उसकी जगह कोई दूसरा आ जाता था। इंसानी घोड़े (कोलकाता में हाथ से रिक्शा खींचने वाले इंसान) तो इस शहर के अभिन्न अंग बन गए थे जिसके बिना न बेरोजगारों को काम मिलता और न ही सवारियों को वाहन मिलता। बिपिन नरेन्द्र बिहारी तीन सौ छियालीस रिक्शे और लगभग सात सौ इंसानी घोड़ों पर शासन करता था। तपती धूप में ये लोग गाड़ी चलाते तथा खाली पेट सवारियों को उठाते थे। प्रतिदिन रिक्शावाले बेहोश होकर सड़क के किनारे पर गिर पड़ते और फिर अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते...। जनरल अस्पताल में घायल कुली गलत इलाज का शिकार होता है तथा ताउम्र के लिए वह विकलांग हो जाता है। महानगर का यह रूप हसारी पर गहरा प्रभाव डालता है।

उधर कोवाल्स्की जो कि रोम से आए थे, आनंद नगर के प्रदूषित वातावरण में, कीचड़ तथा गंदगी के बीच बस्तीवालों के साथ अपने आपको स्वर्ग में महसूस कर रहे थे। कोवाल्स्की ने बस्तीवालों के साथ रहकर देखा कि यातना, दर्द, बीमारियों तथा मौत का सामना वे मुस्कुराकर रहे थे। कुष्ठ रोग से पीड़ित दरिद्रों से भेदभाव जैसी प्रथा का विरोध कोवाल्स्की ने किया तथा निर्मल हृदय में पहुँचकर उन्होंने मदर टेरेसा से मुलाकात की। निर्मल हृदय में सभी रोगियों का स्नेहपूर्ण और बिना किसी भेदभाव के उपचार किया जा रहा था।

गैंगरीन रोग से पीड़ित, रोगियों को आनंद नगर के रास्तों पर देखा जाता था, परन्तु निर्मल हृदय में मदर टेरेसा ने इन रोगियों की चिकित्सा की। मैक्स अमेरिका से डॉक्टरी प्रैक्टिस छोड़कर भारत आए थे तथा ऑपरेशन के माध्यम से गैंगरीन जैसी बीमारी का इलाज कर रहे थे। दवाई के दुकान में हसारी से मुख्य पात्र कोवाल्स्की और मैक्स तब मिले जब उन्होंने हसारी का इलाज किया था।

हमारे समाज में दहेज एक ऐसी अभिशापित प्रथा है जो धन के अभाव में एक आधी जिन्दा लाश को अपनी हड्डियाँ 500 रुपए में बेचने के लिए मजबूर कर देती है। पिता ने अपनी जान की कुर्बानी दहेज प्रथा के रिवाज को पूर्ण करने के लिए दे दी।

मैक्स पात्र के माध्यम से यह पता चलता है कि चाहे लोग कितने ही पत्थर दिल के होते हैं परन्तु विपत्ति में पीड़ितों की सहायता करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। अनोखी एकता का रूप मैक्स ने पहली बार तब देखा जब बंगाल में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।

दिल दहला देने वाला यह उपन्यास हर भारतीय को अवश्य पढ़ना चाहिए। लेखक डोमिनीक लापिएर विश्व के लोकप्रिय लेखकों में गिने जाते हैं। उनके चर्चित उपन्यास फ्रीडम इन द मिडनाइ’, थाउसेंड्स स’, ‘दस बजकर दस मिन’ बेहद प्रसिद्ध रहे हैं। ‘द सिटी ऑफ जॉय’ के बारे में पोप जॉन पाल की टिप्पणी है कि ‘यह पुस्तक संसार के लिए एक प्रेरणा है’ जबकि न्यूयार्क टाइम्स ने छापा कि ‘यह पुस्तक मन पर हमेशा के लिए अंकित हो गई।’

पु्स्तक : आनंद नग
रूपांतरण के पूर्व नाम : द सिटी ऑफ जॉ
लेखक का नाम : डोमिनीक लापिए
रूपांतरकार : मोहिनी रा
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रा.लि.
18-19, दिलशाद गार्डन, जीटी रोड, दिल्ली-110 095
कीमत : 125 रुपए

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