Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मुस्लिम मन को समझने का प्रयास

राजकमल प्रकाशन

Advertiesment
हमें फॉलो करें मुस्लिम मन को समझने का प्रयास
पुस्तक के बारे मे
WDWD
'मुस्लिम मन का आईना' पुस्तक राजमोहन गाँधी की मूल पुस्तक में 'अंडरस्टैंडिंग द मु‍स्लिम माइंड' का हिन्दी अनुवाद है। राजमोहन गाँधी ने यह पुस्तक 1984-85 में लिखी तथा 1986 में यह अमेरिका से प्रकाशित हुई। भारत में पहली बार 1987 में पेंगुइन ने इसे प्रकाशित किया। लाहौर (पाकिस्तान) से भी इस पुस्तक का उर्दू संस्करण प्रकाशित हुआ है।

सैयद अहमद खाँ, मुहम्मद इकबाल, मुहम्मद अली जिन्ना, फ़ज्जलुल हक, अबुल कलाम आजाद, लियाकत अली खाँ और जाकिर हुसैन के व्यक्तित्व और विचारों के माध्यम से इस पुस्तक में लेखक ने भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों में झाँकने का प्रयास किया है।

पुस्तक के चुनिंदा अं
वे हिन्दुस्तान का नेतृत्व करने की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन उन्होंने बनाया पाकिस्तान। अपने जीवन के अधिकांश समय उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात की, बाद में उन्होंने एक अलग मुसलमान देश की माँग की, हासिल किया और साल भर तक चलाया। वे न तो सुन्नी थे, न शिया मुख्‍यधारा के। उनका परिवार आगा खाँ द्वारा स्थापित खोजा संप्रदाय का था।

फिर भी मुहम्मद अली जिन्ना हिन्दुस्तानी मुसलमानों के असली नेता थे। अँग्रेजियत में पले, तौर-तरीकों में अलग, हिन्दुस्तानी जुबान में भाषण कर सकने में असमर्थ, धर्म और राजनीति को मिलाने का विरोध करने के बावजूद आखिरी दौर में वे खुद ही 'इस्लाम खतरे में है की गुहार का अभिन्न अंग बन गए। ('मुहम्मद अली जिन्ना' से)
***

'अगर आज जन्नत से फरिश्ते उतर आएँ और कुतुब मीनार से यह एलान करें कि अगर मैं हिन्दू-मुस्लिम एकता की माँग छोड़ दूँ तो हिन्दुस्तान 24 घंटे में स्वराज हासिल कर सकता है तो मैं कहूँगा : नहीं मेरे दोस्त, मैं स्वराज तो छोड़ सकता हूँ पर हिन्दू-मुस्लिम एकता नहीं, क्योंकि अगर स्वराज मिलने में देरी हुई तो यह तो हिन्दुस्तान का ही नुकसान होगा, पर हिन्दू-मुस्लिम एकता चली गई तो यह पूरी इंसानियत के लिए एक नुकसान होगा। ('अबुल कलाम आजाद' से)
***

'जाकिर हुसैन इस बात के लिए चिंतित थे कि कहीं राष्ट्रवाद विरोधी द्वेष का या मुस्लिम संस्कृति के प्रति प्रेम-सुधारों का विरोध करने की‍ स्थिति तक न पहुँच जाए। इसलिए वे जिन्ना के उद्देश्य को 'अन्ध राष्ट्रवाद का कुपरिणाम' कहते थे और मानते थे कि इस्लाम का भविष्य उसकी गतिशीलता और रचनात्मकता पर निर्भर करता है। 1928 में उन्होंने जोर देकर कहा कि 'औरत को घुटन भरी, अस्वास्थ्यकर चहारदीवारी से निकालना 'इस्लाम को बर्बाद करने का नहीं बचाने का काम है।' ('जाकिर हुसैन' से)
***

समीक्षकीय टिप्पण
राजमोहन गाँधी कृत 'मुस्लिम मन का आईना' पुस्तक हमारे मन-मस्तिष्क में बनी मुसलमानों के प्रति उन सभी भ्रांत धारणाओं को वैचारिक स्तर पर तोड़ती है जिन्हें हम तथाकथित 'इतिहास' के रूप में जानते आए हैं। हिन्दू और मुस्लिम समुदाय की मानसिक संरचना में कितनी एकरूपता है और कितनी भिन्नता तथा दोनों ही समुदाय हर पहलू से कितने एक-दूसरे के नजदीक हैं, पुस्तक हमें विस्तार से बताती है।

मुस्लिम मन का आईना
लेखक : राजमोहन गाँधी
अनुवादक : अरविंद मोहन
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 400
मूल्य : 450 रुपए

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi