रामनिवास जाजू ने अपनी रचना 'मेरे सौरभ-द्वार' में उन सौरभ-स्रोतों का संकलन किया है जिनके सान्निध्य में उनके साहित्यिक, सांस्कृतिक, काव्यात्मक और औद्योगिक प्रशिक्षण क्षेत्र की गतिविधियाँ पिछले छह दशकों से संचालित होती रही है। उनकी सुरभि इस समूचे ग्रंथ में समाई हुई है। यह ग्रंथ यह भी दर्शाता है कि एक सफल उद्योगपति किस प्रकार अपनी संवेदना के जरिए अपने अग्रजों, समकालीनों और अपने से युवतर व्यक्तियों को, उनके गुणों को अपने में आत्मसात करता हुआ जीवन के सोपान चढ़ता चला जाता है।
यह ग्रंथ जाजू जी का जीवनवृत्त नहीं है, आत्मकथा नहीं है। यह ग्रंथ संस्मरणों का समुच्च्य भी नहीं है और न ही घटनाओं का क्रमवार संचयन है बल्कि जाजू जी के शब्दों में 'उत्सुक जनों के लिए यह संकलन प्रयोग तथा उपयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।' श्री जाजू का धनी-मानी बिरला परिवार से गहरा संबंध रहा है। घनश्यामदास बिरला (काको जी) उन्हें घना प्यार करते थे और वे जाजू जी के साथ बैठकर साहित्य की चर्चा करते थे। सन 1951 में वे घनश्यामदास जी के यशस्वी पुत्र बसंत कुमार जी बिरला के सचिव के रूप में परिवार से गहरे जुड़ गए और वे एक तरह से बसंत बाबू के परिवार का एक अंग हैं।
जाजू जी ने इस ग्रंथ को छह खंडों में विभाजित किया है जिससे यह समझना आसान हो जाता है कि किस व्यक्तित्व को किस खंड में जाना जा सकता है। ये छह खंड हैं-युग पुरुष के पद चिह्न, जिसमें घनश्यामदास बिरला और उनके वंशजों के साथ अपने लगाव के आत्मीय क्षण उकेरे गए हैं। उन्होंने इस खंड में घनश्यामदास बिरला को 'बीसवीं सदी का वक्तव्य' कहा है। आदित्य विक्रम बिरला को 'उद्योग-जगत का प्रतापी युवाधिपति' की संज्ञा दी है, लक्ष्मी निवास बिरला को 'बिरला परिवार का राजपुत्र' बताया है और कृष्ण कुमार बिरला को 'बिरला परिवार का राजपुरुष' कहा है।
दूसरे खंड का नाम दिया गया है - सृजनक्षेत्रे-काव्यक्षेत्रे। इसमें उनके साहित्यिक रचनाकारों से अंतर्संबंध चित्रित हैं। इस खंड का प्रारंभ होता है- महादेवी से और हजारी प्रसाद द्विवेदी, दिनकर, सुमन, बच्चन, डॉ. नगेंद्र, विद्यानिवास मिश्र आदि के रेखाचित्र उकेरते हुए वे कवि सम्मेलनों के मंच के हृदयस्पर्शी परिचय की प्रवाहधारा में विराम लेते हैं।
कवि परिचय की यह प्रवाहधारा दो टूक और सच्चे काव्य-आकलन का एक श्रेष्ठ नमूना है जो लगता तो है कि किसी काव्य मंच पर काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किए जाने वाले कवियों का परिचय है लेकिन अगर बारीकी से देखें तो वे टिप्पणियाँ जाजू जी की काव्य-दृष्टि और कविता के मूल तत्वों को गहराई से समझने का आईना भी हैं।
मंच संचालन के बहाने उन्होंने अपने कविता संबंधी स्फुट विचार भी सामने रखे हैं। ये विचार जाजू जी की काव्य-मर्मज्ञता, समकालीन कविता के प्रति उनकी अंतर्दृष्टि और उनके चिंतन के सुथरे चित्र हैं। जाजू जी कविता के भविष्य-रूप की कल्पना करते हुए कहते हैं कि 'जो कभी देवताओं के ऐश्वर्य चिह्न थे, वे सब तो अब मनुष्यों की आवश्यकताएँ हो चुकी हैं, जैसे आकाशवाणी करना, पुष्पक विमान उड़ाना, पर्वत सरकाना, सागर सुखा देना यह सब आज का मनुष्य बड़ी मुस्तैदी से कर रहा है आधुनिक उपकरणों के सहयोग और प्रयोग से। तब हम इन उपकरणों के अस्तित्व में गंभीर कविता को क्यों नहीं उतारते, कविता के सौंदर्य से इन प्रसंगों को क्यों नहीं प्रतिबिंबित करते?"
ग्रंथ के 'संस्कृतिक्षेत्रे-कलाक्षेत्रे' खंड में उन सारे व्यक्तित्वों और गतिविधियों का आकलन है जो जाजू जी के जीवन का अंग रही हैं जिनमें संगीत कला मंदिर से जुड़ी गतिविधियाँ मुख्य हैं। 'कर्मक्षेत्रे' खंड में विभिन्न वैचारिक मान्यताओं का संकलन है तो 'भक्तिक्षेत्रे' में स्वामी अखंडानंद जी, पंडित राम किंकर जी उपाध्याय और स्वामी गिरीशानंद जी के सान्निध्य के अनोखे संस्मरण हैं। 'शिक्षाक्षेत्रे' में बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष के नाते अँगरेजी में दिए गए व्याख्यान सम्मिलित हैं। जिन नामों की सुरभियां इस ग्रंथ में संग्रहीत है, उनकी पहचान जल्दी से जल्दी की जा सके इसके लिए ग्रंथ में नामानुक्रमणिका भी दी गई है। ऐसे ग्रंथ एक तो रोज-रोज निकलते नहीं इसलिए इनकी उपादेयता का पूरा ध्यान रखकर अनुक्रमणिका तैयार की गई है।
ग्रंथ की अमूल्यनिधि हैं वे चित्र जो अब दुर्लभ हो जाएँगे जैसे कि एक चित्र है पंडित रामकिंकर उपाध्याय, पंडित विद्यानिवास मिश्र और डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी का । ये तीनों ही व्यक्तित्व अब स्वर्गारोहित हो चुके हैं। चित्रावली यह भी प्रदर्शित करती है कि एक साहित्य प्रेमी उद्योगपति का दायरा कितना बड़ा हो सकता है। उस दायरे में महादेवी जी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, हरिवंशराय बच्चन और दिनकर से लेकर मोरारजी देसाई तक तमाम अनोखे व्यक्तित्व आते हैं।
चित्रावली से ग्रंथ तथ्यात्मक प्रामाणिकता की पुष्टि होती है। समूचे ग्रंथ में भाषा का अपना सौंदर्य है जो जाजू जी की स्पष्ट धारणाओं और इंगित व्यक्तित्वों के सकारात्मक पहलुओं का बड़ी ही काव्यमयता के साथ उरेहण करती है। ग्रंथ का प्राक्कथन लिखा है डॉ. कपिला वात्स्यायन ने, जिसमें उन्होंने जाजू जी के व्यक्तित्व में औद्योगिक और साहित्यिक जगत के सम्मिश्रण की भूरी-भूरी प्रशंसा की है।
पुस्तक : मेरे सौरभ द्वार लेखक : रामनिवास जाजू प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन मूल्य : 200 रुपए