पुस्तक के बारे में
विमल मित्र का यह प्रयोगधर्मी उपन्यास, 'मैं' हमारे समय के राजनीतिक एवं सामाजिक यथार्थ को परत-दर-परत सामने लाता है, स्वतंत्रता पूर्व और पश्चात की स्थिति के जो चित्र इस कृति में मौजूद हैं वे अपने आप में ऐतिहासिक तथ्य हैं। इसमें एक तरफ दिगंबर एवं नुटु का जीवन संघर्ष है तो दूसरी ओर ज्योतिर्मय सेन का अंतर्द्वंद्व है। यह अंतर्द्वंद्व साधारण जन का अंतर्द्वंद्व भी है जो सही व गलत के बीच अक्सर अनिर्णय का शिकार होकर यथास्थितिवादी बना रहता है।
पुस्तक के चुनिंदा अंश
* सन् 1947 की बात है। महात्मा गाँधी तब पार्क सर्कस में सुहरावर्दी के मकान में ठहरे हुए थे। उन दिनों चारों ओर दंगा छिड़ा हुआ था। हिन्दू की नजर मुसलमान पर पड़ती थी तो कत्ल कर देता था और मुसलमान की नजर हिन्दू पर पड़ती थी तो वह उसकी जान ले लेता था। इस तरह की स्थिति थी। सभी मिलने के लिए आए, यहाँ तक कि डॉ. प्रफुल्ल शेष, राजगोपालाचारी दिनेश मेहरा और श्यामा प्रसाद मुखर्जी तक आए, न आए तो केवल शरद बोस।
* जब किसी आदमी का जीवन से संबंध टूट जाता है तो उसमें भय की शुरुआत होती है। जीवन का अर्थ व्यक्ति है। व्यक्ति का अर्थ मनुष्य। मनुष्य से संबंध का अर्थ ही जीवन से संबंध है, जीवन की शुरुआत में यह सहज है। घर-द्वार छोड़कर मुझसे संबंध जोड़े हुआ है। चुनाव में उतरेगा तो मेहनत करेगा, प्रचार करेगा लेकिन जब उम्र ढल जाएगी तब मेरी ही तरह उसको भी आराम की जरूरत महसूस होगी।
* यह शंकर अभी तक इस बात पर विश्वास करता है कि अगर वह ठीक से मेरी खुशामद करे तो मैं उसे राजा बना दूँगा। राजा अगर नहीं बना सकूँ तो कम से कम मंत्री अवश्य बना दूँगा। लेकिन बेचारे को मालूम नहीं है कि आज मेरा सिंहासन ही हिल-डुल रहा है। न केवल मेरा ही बल्कि दुनिया में जितने भी आदमी कला, साहित्य, दर्शन और राजनीति के उच्च आसन पर आसीन हैं, उनमें से हरेक का सिंहासन आज दुविधा और संदेह से हिलडुल रहा है।
समीक्षकीय टिप्पणी
इस उपन्यास में एक ओर मानवीय प्रेम, अस्मिता तथा स्वतंत्रता का संघर्ष है तो दूसरी ओर व्यवस्था का निरंकुश अमानवीय चरित्र उद्घाटित होता है। कुल मिलाकर तीन प्राणियों को केंद्र मानकर चलने के बावजूद यह कृति आत्मकथ्यात्मक न होकर बीसवीं शताब्दी के भारत की महागाथा है। विविध आयामी यथार्थ चरित्रों, के माध्यम से विमल मित्र एक ऐसा संसार रचते हैं, जिसमें प्रेम और वितृष्णा एक साथ उत्पन्न होते हैं।
उपन्यास : मैं
लेखक : विमल मित्र
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 264
मूल्य : 195 रुपए