कपिल पंचोली
दुनिया की नजर में अनफिट आदमी ही जिंदगी को सुलझाने में कामयाब हो सकता है। वह दुनिया के ढर्रे को कम से कम चुनौती देने का काम तो कर सकता है। राहुल ब्रजमोहन स्थायित्व को चुनौती देते हैं। वे किसी भी सूत्र या विषय को खोजने के लिए अपना तरीका आजमाते हैं, जिसमें सफलता की निश्चिंतता तो नहीं, पर चलते जाने का ही मजा है। राहुल इसी राह के राही हैं। उनकी तबीयत का पता उनकी किताब 'कुछ विलम्ब से' के जरिए मिलता है। राहुल की तरह से सोचेंगे तो लगेगा कि विचार करना एक कठिन काम है। उतना आसान नहीं है, जितना इसे बना दिया गया है।
'कुछ विलम्ब से' बिखरे विचार लेखों का संकलन है, जिन्हें लेखक ने सम्यक, सम्मुख, सुरम्य, स्वप्न और समानान्तर में बाँटा है। इन पाँच खण्डों में लेखक ने उन विचारों को जमा करके सामने रखा है, जो समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के जरिए पाठकों के मानस में उथल-पुथल मचाते रहे हैं। राहुल का लिखा पढ़ने के लिए खासा दमखम चाहिए, विचारों के स्तर पर भी और भाषा के स्तर पर भी। अगर आपका एक भी पक्ष उन्नीस है तो राहुल को समझना बहुत मुश्किल है।
पुस्तक खुलती है तो राहुल भारत की सांस्कृतिक समृद्धि पर बात करते हैं। आगे चलने पर इतिहास के प्रति अनुराग दिखाई पड़ता है तो भविष्य में आसन्न संकटों से आगाह किया जाना भी। बाजार संवेदनशील जीवों को परेशान करता है। लेखक भी संवेदनशील हैं। राहुल खुद को पूर्णकालिक पत्रकार नहीं मानते, पर उनकी नजर आज के पत्रकारों से ज्यादा सजग है। यहाँ पढ़िए ' हमने साहित्य को जंक फूड की तरह भकोसकर पले-बढ़े घटोत्कच ही पैदा किए।' लेखक शब्दों के लिए संवेदना महसूसता है। कला की उपयोगिता की बहस को लेकर भी इस बेपरवाह लेखक ने अपनी बात पूरे तर्कों के साथ रखी है। यह होना ही नहीं था कि कला और संस्कृति के करीब रहने वाले इस लेखक की नाक से सरकारीकरण के कारण व्यवस्थाओं से उठती दुर्गंध बच जाती।
' खुश्क जालों के उजालों में' पढ़िए तो आप भी जानेंगे। इन पंक्तियों में हमारा वर्तमान, जिसे हमने खुद बनाया है नजर आता है, पढ़िए-' ... गाँधी ने इस देश के लिए एक लाख चरखों की माँग की थी... हम एक लाख की गाड़ी से खुश हैं। प्रथम दृष्ट्या यह एक सुनहरी उपलब्धि प्रतीत होती है, मगर यह भी याद रखना होगा कि चमचमाती गाड़ियों से सपनों को रौंदा जाता है, जबकि यथार्थ की चादर सिर्फ चरखे के प्रामाणिक सूत से रची जा सकती है...' ।
जीतेन्द्र पाल को कितने लोग जानते हैं, पर राहुल जानते हैं। 'कुछ विलम्ब से' दरअसल राहुल की विचार प्रक्रिया को समझने का एक सिरा है। यह लेखक की यात्रा के स्टेशन के बारे में बताती है तो सोचिए वह यात्रा क्या खास होगी, जो एक स्टेशन से दूसरे के बीच रही होगी। उसे जानने के लिए पहले सिरा पकड़िए और फिर चलते जाइए। एक बेपरवाह लेखक को समझने में यह किताब कुछ मदद कर सकती है।
पुस्तक : कुछ विलम्ब से
लेखक : राहुल ब्रजमोहन
मूल्य : एक सौ पचास रु.
प्रकाशक : मनस्वी प्रकाशन, इंदौर।