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सकारात्मक सोच की कला

पुस्तक कहती है कि सोचना चाहिए 'सोच' पर

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बहुत से लोग नकारात्मक ही सोचने के आदी हो चले हैं। शायद उन्हें नहीं मालूम कि वे क्या सोचते रहते हैं और क्यों सोचते रहते हैं। लगातार नकारात्मक सोचने का परिणाम यह होता है कि उनके जीवन में दुःख और संतापों की श्रृंखलाएँ चलती रहती हैं।

श्रीस्वामी ज्योतिर्मयानंद की मूल अंग्रेजी में लिखित पुस्तक 'दि ऑर्ट ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग का योगीरत्न डॉ. शशिभूषण द्वारा हिंदी में बहुत ही सुंदर अनुवाद किया गया है। अनुवादकीय में शशिभूषणजी ने लिखा है कि गुरुजी के आशीर्वाद और कृपा से इस पुस्तक को प्रकाशित किया गया है। इसके अध्ययन से यदि आपको थोड़ी भी प्रेरणा मिलेगी तो मैं अपना सौभाग्य समझूँगा। इस हिंदी अनुवाद का नाम है- 'सकारात्मक सोच की कला'।

सकारात्मक सोच की कला जिंदगी को सुलझाने में कामयाब हो सकती है। वे लोग जिनके जीवन में असफलताओं का एक दुष्चक्र चल रहा है उनके लिए यह पुस्तक प्राणदायी सिद्ध हो सकती है। इस पुस्तक के किसी भी सूत्र या विषय को खोजकर संकल्प द्वारा स्वयं के भाग्य का निर्माण किया जा सकता है। और यह बहुत ही आसान है। बस सोचना होगा कि आप क्या-क्या गलत सोचते हैं और आखिर क्यूँ सोचते हैं। क्या आप सकारात्मक सोचना शुरू नहीं कर सकते?

यह पुस्तक हमें विचार शक्ति के महत्व से परिचय कराती है। इसे पढ़कर पता चलता है कि विचारों में निहित है प्रचंड शक्ति। विचारों द्वारा ही व्यक्ति स्वयं के जीवन को नर्क या स्वर्ग में बदल सकता है। इसे पढ़ते हुए निराशा हटती है, सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और विचार शक्ति दृढ़ होती है।

इस पुस्तक के तीन खंड हैं- पहला 'सकारात्मक सोच की कला' जिसमें सात अध्याय हैं। दूसरा 'संकल्प शक्ति का विकास' जिसमें चार अध्याय हैं और तीसरा 'विचार परिशोधन' जिसमें आठ अध्याय हैं। मात्र 159 पेज की किताब में बहुत ही छोटे-छोटे अध्याय हैं।

इस तरह कुल 19 अध्यायों की इस पुस्तक में ‍नकारात्मक और सकारात्मक विचारों के मन, शरीर और आसपास के माहौल पर पड़ने वाले अच्छे और बुरे प्रभाव को बताया गया है। किस तरह से सकारात्मक सोचा जाए इसकी विधि बताता हुए स्वामीजी ने चिंता और तनाव मुक्ति के उपाय बताए हैं, साथ ही ईश्वर के प्रति समर्पण और अभ्यास के महत्व को बताया गया है।

अगले खंड में संकल्प शक्ति के महत्व, महिमा और इसके विकास के बारे में बताया गया है जो कि बहुत ही कारगर विधि है। अंतिम खंड में आत्मनिरीक्षण का अभ्यास, प्रतिपक्ष भावना तथा जप-ध्यान के महत्व को उजागर किया गया है। इसके सारे अध्याय बार-बार पढ़ने लायक हैं। कई बार पढ़ने के अभ्यास से यकीनन आपके जीवन में बदलाव की शुरुआत हो जाएगी।

अंतत: कहना होगा कि इस पुस्तक को उन सत्यानवेषियों को सप्रेम समर्पित किया गया है जो संसार में सुख, शांति और सामंजस्य स्थापित करने के लिए जीवन के आध्यात्मिक मूल्यों और मन की अद्‍भुत शक्तियों को उद्‍घाटित करने में संघर्षरत हैं।

पुस्तक : सकारात्मक सोच की कला
लेखक : स्वामी ज्योतिर्मयानंद
अनुवादक : योगिरत्न डॉ. शशिभूषण मिश्र
प्रकाशक : इंटरनेशनल योगा सोसायटी लालबाग, लोनी-201102
मूल्य : 80 रु.

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