Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

स्त्री की हाँ और ना भी पुरुष तय करता है

Advertiesment
हमें फॉलो करें स्त्री की हाँ और ना भी पुरुष तय करता है
- डॉ. ज्योति सिंह

webdunia
ND
'स्त्री की कुछ अनकही' शशिकांत की कविताओं का नया संग्रह है। इसमें स्त्री के उस अनकहे को कहने का प्रयास किया गया है, जिसे हर स्त्री न्यूनाधिक रूप से कभी न कभी अवश्य महसूस करती है। लेकिन, उसका यह अनुभूत सत्य प्रायः शब्दों का रूप नहीं ले पाता। उसी अव्यक्त को शशिकांत ने शाब्दिक जामा पहनाने का प्रयास किया है।

सृष्टि के आरंभ से ही स्त्री कई रूपों में अपने को बाँटकर जीती आई है। हर रूप और रिश्ते में उसका देय पृथक है, उसकी संज्ञा भिन्न है। उसे हमेशा पुरुष की दृष्टि से देखा जाता है। सब कुछ पुरुष ही तय करता है और स्त्री उसके फैसलों को स्वीकार कर लेती है।

स्त्री की सीमा, उसकी जिम्मेदारी, उसकी पसंद-नापसंद, उसकी प्राथमिकताएँ, उसकी जरूरतें, उसके सवाल, उसके जवाब, यहाँ तक कि उसकी 'हाँ' और 'ना' भी सब कुछ पुरुष ही तय करता है। 'रखैल जिसे/ खेलने के लिए रखा गया हो/ रंडी जो/ हजारों के साथ खेलती हो... दोनों ही सूरतों में/ पुरुष के साथ शामिल होती है/ परंतु स्तर दर्जा और चरित्र/ स्त्री का ही प्रभावित होता है, पुरुष का नहीं/ आखिर क्यों?'
स्त्री सब हो जाती है, किंतु एक स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं हो पाती। वह बहुत बोलती है, पर अपने आपको कह नहीं पाती। वह सब सहती है, पर पूर्ण स्त्री बन, रह नहीं पाती। पाप-पुण्य, उचित-अनुचित की ऊहापोह में, अपने होने की स्थिति भी स्वीकार नहीं कर पाती।
webdunia


स्त्री सब हो जाती है, किंतु एक स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं हो पाती। वह बहुत बोलती है, पर अपने आपको कह नहीं पाती। वह सब सहती है, पर पूर्ण स्त्री बन, रह नहीं पाती। पाप-पुण्य, उचित-अनुचित, अच्छाई-बुराई आदि की ऊहापोह में, अपने होने की स्थिति भी स्वीकार नहीं कर पाती। पुरुष समाज की इच्छा-अनिच्छा उसके अस्तित्व को स्वीकारती या नकारती है : प्रश्न पूछने वालों में/ पुरुषों की संख्या/ सबसे अधिक होती है/ क्या सारी परेशानियाँ/ पुरुष ही झेल रहा है?/ स्त्री की कोई समस्या नहीं?...'वो' खुश रहेंगे/तो मैं खुश रहूँगी।'

ऐसी ही अनुभूतियों को शशिकांत ने बड़ी शिद्दत के साथ बयाँ करने की कोशिश की है। उन्होंने पुरुष होकर भी स्त्री के अंतर्मन की यथार्थ अनुभूतियों को बड़ी तन्मयता से उकेरा है।

संवेदना और यथार्थ से पगी ये कविताएँ स्त्री-मन की गहरी परतों को खोलती हैं। उसकी कराह, दर्द और बेचैनी को रोजमर्रा के शब्दों में व्यक्त करना रचनाकार की संप्रेषण क्षमता का परिचायक है।

* पुस्तक : स्त्री की कुछ अनकही
* कवि : शशिकांत,
* प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, एक्स 30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया- फेज 2, नई दिल्ली-20
* मूल्य : 75 रु.

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi