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ओमप्रकाश कादयान
यह हरियाणवी बोली के लिए शुभ संकेत है कि लंबे अंतराल के उपरांत गत कुछ वर्षों से हरियाणवी में साहित्य सृजन के प्रति यहाँ के साहित्यकारों का रुझान बढ़ा है। अगर हम सन् 2000 के बाद ही हरियाणवी में प्रकाशित पुस्तकों पर नजर डालें तो उनकी संख्या और स्तर देखते हुए हम कह सकते हैं कि हरियाणवी बोली भाषा बनने की ओर अग्रसर है, वो भी तेज गति से।हरियाणवी में रचित साहित्य की श्रीवृद्धि करते हुए एक और पुस्तक हाल ही में प्रकाशित हुई - औरत बेद पांचमां।' इस हरियाणवी दोहा संग्रह के लेखक हैं साहित्य में राष्ट्रीय पहचान बना चुके मसि कागद के संपादक श्याम सखा 'श्याम'।रोहतक निवासी श्याम सखा 'श्याम' ने कहानी, लघुकथा, उपन्यास कविता व दोहा क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है। पंजाबी, हिन्दी व हरियाणवी में लिखने वाले श्री 'श्याम' हरियाणवी साहित्य को समृद्ध करने में अपना विशेष योगदान दे रहे हैं। हरियाणवी बोली में अब तक इनकी कई पुस्तकें आ चुकी हैं। औरत बेद पांचमां (हरियाणवी दोहे संग्रह) इनकी नई प्रकाशित पुस्तक है। |
दोहा हिन्दी का सुकुमार, सक्षम स्पन्दन भी है, तो संवाद का सरल-सहज माध्यम भी। सभी संतों ने इसे अपने सबसे करीब पाया और रात-दिन गाया। आज दोहा पुन: अपने उभार पर है, उड़ान पर है। हरियाणवी में रचे दोहों का भी भविष्य उज्ज्वल है। यह नि:संदेह कहा जा सकता है। |
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दोहा हिन्दी का सुकुमार, सक्षम स्पन्दन भी है, तो संवाद का सरल-सहज माध्यम भी। सभी संतों ने इसे अपने सबसे करीब पाया और रात-दिन गाया। आज दोहा पुन: अपने उभार पर है, उड़ान पर है। हरियाणवी में रचे दोहों का भी भविष्य उज्ज्वल है। यह नि:संदेह कहा जा सकता है।
श्याम सखा ने अपने हरियाणवी दोहों के माध्यम से सामाजिक सरोकारों तथा देश की सामाजिक समस्याओं पर व्यंग्यपूर्ण शैली में तीखी चोट की है। उन्होंने, कबीर की सहज-सरल भाषा तथा सीधी-सादी, किंतु मर्मस्पर्शी, अभिव्यंजना-शैली को अपनाया है। जीवन-राग से जुड़े परिप्रेक्ष्यों के सौंदर्यास्वाद के अंकन में भी कवि अपने भावों, विचारों, अनुभूतियों को बिम्बमयी भाषा में, नए-नए अंदाज में व्यक्त करके जीवंत बनाते हैं।
श्याम सखा 'श्याम' के व्यक्तित्व की भाँति, उनका कवि-रूप भी, बड़ा प्रखर है। उन्होंने अपनी कविताओं, गज़लों और विशेष रूप से दोहों के माध्यम से राजनीतिक, सामाजिक विसंगतियों, अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, शोषण और अवसरवादिता को बड़ी प्रामाणिकता के साथ उद्घाटित किया है। टूटते जीवन-मूल्यों, नैतिक पतन और बढ़ती स्वार्थपरता से संत्रस्त कवि ने स्वस्थ समाज-निर्माण हेतु अपने दोहों को एक तेज धार हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
इस संग्रह के प्राय: अधिकतर दोहों का अवलोकन करने से यही सिद्ध होता है कि मानवीय सृजन में ये दोहे उपयोगी हैं। ये दोहे विशुद्ध बुद्धि की ओर संवेदनाओं का शुद्ध संप्रेषण हैं। कवि ने अपने दोहों के द्वारा समाज उत्थान का कार्य किया है। इनके दोहों में जहाँ तीखा व्यंग्य है वहीं राष्ट्रीय चेतना का स्वर है। देशप्रेम व परोपकार की भावना है।
दोहे की खूबसूरती एवं दक्षता की कसौटी यही है कि वह मुहावरा बनकर जुबान पर चढ़ जाए। इस कसौटी पर इनके हरियाणवी दोहे खरे उतरते हैं। उनके अनेक दोहे ऐसे हैं, जो आने वाले समय में जुबान पर होंगे, जैसे -
घणै दिनां म्हं लोट कै, आया फौजी वीर।
छैलकड़े कड़ि खनकते, उड़ता फिरता चीर।।
मत काटो इस पेड़ नै, जिसका नां सै नीम।
छोटे-मोटे रोग नैं, साधै योह हकीम।।
कवि जहाँ पारिवारिक रिश्तों की टूटन से दु:खी है, वहीं बढ़ते हुए प्रदूषण से चिंतित भी है। रामकुमार आत्रेय ने अध्यात्म, देशप्रेम, परोपकार, निर्धनता, महँगाई की मार, बेकारी की समस्या, दोस्ती, तीर्थ-यात्रा पर स्तरीय दोहे लिखे हैं। क्योंकि लेखक स्वयं हरियाणवी संस्कृति से जुड़े हुए हैं, प्रकृति प्रेमी हैं इसीलिए हरियाणा के तीज-त्योहार, परंपराएँ, ऋतुओं का सौंदर्य चित्रण भी खूब हुआ है। देखिए कुछ उदाहरण जो विविध चित्र प्रस्तुत करते हैं--
मत कोसै तू सांप नै, अपणे भीतर झांक।
जज बण तू फिर और का, पहलम खुद नै आंक।।
नर तो केवल नर रहै, नारी के दस रूप।
कदै शरद की चाँदनी, कदै माघ की धूप।।
पनघट तो खाली पड़े, चौपालें भयभीत।
दारू हाते खुल गए, बदली जग की रीत।।
किसान जो सारी दुनिया को अन्न पैदा करके खिलाता है। हमारी कुव्यवस्था के कारण वह भूखे, फटेहाल रहता है। इसका कवि ने बड़ा सटीक चित्रण किया है।
अपणे दुख की पोटली, खोलै कड़ै किसान।
इत सरकारी मार सै, उत कड़वा भगवान।।
खा-खा कै मोटा हुआ, बैठा-बैठा सेठ।
नाज उगावणिये का, मिल्या पीठ तैं पेट।।
इन दोनों में अलंकारों, प्रतीकों तथा छंद का बड़ा सुंदर प्रयोग हुआ है। दोहावली का एक-एक दोहा स्वयं में एक संपूर्ण विचार बनकर कवि हृदय से प्रकाशित हुआ है। यह हरियाणवी दोहावली विकास के नाम पर विनाश की ओर अग्रसर, पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध से सम्मोहित इस तथाकथित विकासशील मानव को रुककर सोचने पर मजबूर करेगी तथा सही आर्थिक दिशा प्रदान करेगी। कुछ दोहों पर कबीर व रहीम का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। देखिए एक दोहा :-
बणी-बणी के यार सब, बिगड़ी का ना कोय।
जो बिगड़ी म्हं साथ दे, यार वही तो होय।।
संग्रह में एकाध जगह दोहों की पंक्तियों की पुनरावृत्ति सी लगती है। वैसे संग्रह की एक खास विशेषता यह है कि हरियाणवी के एक ही शब्द के कई-कई रूपों का सुविधानुसार उपयोग किया है। ठेठ हरियाणवी शब्दों के साथ, हरियाणवी मुहावरों का खूब प्रयोग हुआ है, जिससे भाषा में प्रवाह एवं प्रभाव पैदा हुआ है।
स्पष्टत: श्याम सखा 'श्याम' युगबोध से जुड़े सशक्त दोहाकार हैं। लोकभाषा तथा जीवन-सत्य की अभिव्यक्ति ने उनके दोहों को (कुछ दोहों को छोड़कर) प्राणवान बनाया है। उनके दोहों का भाषा-शिल्प कसा हुआ है। पूरी उम्मीद की जा सकती है कि हरियाणवी दोहा साहित्य में यह पुस्तक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी तथा दोहा विधा को समृद्ध करती हुई नई पहचान दे देगी। पुस्तक की छपाई सुंदर, मुद्रण स्तरीय तथा मुखपृष्ठ आकर्षक है। पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय, उपयोगी है।
-ओमप्रकाश कादयान
पुस्तक : औरत बेद पांचमां
दोहाकार : श्याम सखा 'श्याम'
प्रकाशक : प्रयास ट्रस्ट, 12, विकास नगर
रोहतक (हरियाणा)- 124001
पृष्ठ : 96, मूल्य 100 रुपए (सजिल्द)