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ज़री वाले नीले आसमाँ के तले

समीक्षक

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जीवनियों का एक खास आकर्षण होता है और एक विस्तृत पाठक वर्ग भी। संघर्षों की आग में तपकर कुंदन हुए कितने ही लोगों की जीवनियाँ हजारों-लाखों के लिए प्रेरणा बनी हैं। हाल ही में एक जीवनी जरा हटकर आई है। यह है विश्व भर में सफलता के कीर्तिमान बनाने वाली फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' की बाल कलाकार रूबीना अली की जीवनी। यूँ कहने को यह स्वयं रूबीना द्वारा लिखी गई 'आत्मकथा' है, जिसे उन्होंने एनी बर्थोड और दिव्या डुग्गर के 'सहयोग' से लिखा है।

रूबीना का जीवन नाटकीय परिवर्तनों की दास्तान है। मुंबई की झुग्गी बस्ती में जन्मी और पल रही बच्ची का चयन 500 बच्चों में से एक विदेशी फिल्म में भूमिका निभाने के लिए होता है और देखते ही देखते एक दिन वह दुनिया के सबसे बड़े और चकाचौंध भरे कार्यक्रम यानी ऑस्कर पुरस्कार समारोह में शामिल होती है...!

सीधी-सरल भाषा में लिखी गई यह पुस्तक 'स्लमडॉग..' से पहले के रूबीना के जीवन पर तो अधिक प्रकाश नहीं डालती लेकिन घोर गरीबी से विश्वव्यापी प्रसिद्धि और फिर सारी चकाचौंध को पीछे छोड़ वापस झोपड़ी में आने की विवशता के उतार-चढ़ाव सहती बच्ची के मन को समझने का प्रयास करती है।

जरा-सी झोपड़ी में अपनी जिंदगी गुजारती आई रूबीना को जब अमेरिका के एक पाँच सितारा होटल के विशाल कमरे में अकेले ठहराया जाता है, तो यह विराट विलासिता उसके लिए खौफ का सबब बन जाती है। अमेरिका का खाना उसे रास नहीं आता।

एंजलिना जोली से मिलकर वह खुश है लेकिन उससे कहीं अधिक खुशी उसे रितिक रोशन से बतियाने की है। एक मासूम बच्ची ही सार्वजनिक रूप से बेधड़क कह सकती है कि निकोल किडमैन उसे थोड़ी 'अजीब' लगी और कि शायद इस अजीबपन का कारण उस हॉलीवुड अदाकारा का 'शर्मीलापन' हो सकता है!

कभी झोपड़पट्टी से बाहर की दुनिया देखने के ख्वाब न पाल सकने वाली रूबीना आज बड़ी होकर अंतरिक्ष यात्रा करने के सपने देख रही है। हॉलीवुड के सितारों से वह हाथ मिला चुकी, अब आसमान के तारों को छूने की बारी है...!

पुस्तक: 'स्लमगर्ल ड्रीमिंग: माय जर्नी टू द स्टार्स'
लेखक: रूबीना अली, एनी बर्थोड व दिव्या डुग्गर
प्रकाशक: रैंडम हाउस, इंडिया
मूल्य: 195 रु.

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