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हिन्दी दिवस या हिन्दी डे

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नूपुर दीक्षित

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Shruti AgrawalWD
कुछ दिनों पहले एक परिचित को घर पर रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया। वे अपनी बीवी, चार वर्षीय बेटी और एक- डेढ़ साल के बेटे के साथ घर पर पधारे। बातचीत के दौरान जनाब ने अपने बेटे की प्रतिभा से हमारा परिचय कुछ इस तरह से करवाया। बेटे आंटी को बताओं काऊ कैसे बोलती है? झट से उनके बेटे ने गाय की तरह ‘माँ...’ की आवाज निकालकर बताई। अच्‍छा मून कहाँ से आता है? उस छोटे से बच्‍चे ने तुरंत ऊँगली से आसमान की ओर इशारा किया।

बेटे आप कुंकुबर खाओगी? ये कैप्‍सीकम की सब्‍जी टेस्‍ट कर के देखो। इस पर उस बच्‍ची ने जवाब दिया- नहीं मुझे अचार खाना है। बच्‍ची के इतना कहते ही माँ ने लगभग घूरते हुए उसकी ओर देखा और कहा कि डोंट से अचार, से पिकल।
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उनकी धर्मपत्नी भी लगभग इसी अंदाज में अपनी बेटी से बात कर रही थी। उन्‍होंने बड़ी प्‍यारभरी नजरों से अपनी बिटिया की ओर देखा और कहा कि बेटे आप कुंकुबर खाओगी? ये कैप्‍सीकम की सब्‍जी टेस्‍ट कर के देखो। इस पर उस बच्‍ची ने जवाब दिया- नहीं मुझे अचार खाना है। बच्‍ची के इतना कहते ही माँ ने लगभग घूरते हुए उसकी ओर देखा और कहा कि डोंट से अचार, से पिक

बच्‍चा ठीक ढंग से हिन्दी बोलना सीखे उसके पहले ही हिन्दी को उसके दैनिक जीवन से बाहर निकालने की कसरत इन दिनों शुरू हो जाती है। अपने बच्‍चों का अँग्रेजी भाषा पर अच्‍छा अधिकार बनाने की खा‍तिर हिन्दी से बच्‍चों को दूर करना इन दिनों बहुत आम बात हो गई है। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है।

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Shruti AgrawalWD
मुझे आश्‍चर्य तो उस समय हुआ जब मुझे यह पता चला कि शादी के लिए अच्‍छा वर ढूँढने में भी अँग्रेजी की भूमिका बड़ी महत्‍वपूर्ण हो गई है। इस संबंध में मेरी आँखें एक बाईस वर्षीय युवती अंकिता ने खोली।

दो-चार दिनों पहले ही अंकिता मुझे रास्‍ते में मिल गई थी। अंकिता के बारे में मैं इतना जानती थी कि उसकी एमकॉम की पढ़ाई पूरी हो चुकी है। उस दिन दोबारा उसे झोला लटकाए जल्‍दबाजी में कही जाते देखा तो इस जल्‍दबाजी का कारण पूछने से खुद को रोक न सकी। उसने बताया कि वह क्‍लास में टाइम पर पहुँचने की जल्‍दी में है। वो किसी इंग्लिश और पर्सनालिटी डेवलपमेंट क्‍लास की स्‍टुडेंट बन चुकी है।

इस क्‍लास में प्रवेश लेने का कारण स्‍पष्‍ट करते हुए अंकिता ने बताया कि ‘दीदी मुझे कोई जॉब नहीं करनी। मैं तो अपना घर बसाकर उसमें हाउस वाइफ की तरह रहना चाहती हूँ। आजकल अच्‍छे लड़कों को ऐसी लड़कियाँ चाहिए, जो फ्लुएंटली इंग्लिश बोल सके। बस इसलिए ही क्‍लास ज्‍वॉइन की है

‘दीदी मुझे कोई जॉब नहीं करनी। मैं तो अपना घर बसाकर उसमें हाउस वाइफ की तरह रहना चाहती हूँ। आजकल अच्‍छे लड़कों को ऐसी लड़कियाँ चाहिए, जो फ्लुएंटली इंग्लिश बोल सके। बस इसलिए ही क्‍लास ज्‍वॉइन की है।’
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ऐसे एक या दो नहीं अनेक अनुभवों से हमें रोज ही गुजरना पड़ता है। हिन्दी और अँगरेजी के मिश्रण से तैयार भाषा ‘हिंग्लि’ आज सर्वाधिक प्रचलन में है। आम लोगों की भाषा होने की वजह से इस हिंग्लिश को धीरे-धीरे अखबार और पत्रिकाएँ भी अपना रही हैं।

अभी हम हिन्दी दिवस या हिन्दी पखवाड़े के बहाने ही सही लेकिन शुद्ध हिन्दी को एक बार याद तो करते हैं। अगर हमारी भाषा और बोली इसी पटरी पर चलती रही तो हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों में 14 सितंबर भी हिन्दी दिवस के स्‍थान पर हिन्दी डे के रूप में मनाया जाए और आने वाली पीढ़ी हिंग्लिश को ही अपनी मातृभाषा स्‍वीकार कर ले।

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