ओह! हाय मॉम आई एम बैक फ़्राम द स्कूल। हाऊ शुड आई टेल यू, इट वॉस ए लॉन्ग टायरिंग डे मॉम। एंड यू नो आई हेव वन टुडेज़ ‘हिन्दी डे' डिबेट कॉम्पिटिशन। ये बर्गरयुगी भाषा है दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश के युवा की।
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26 जनवरी 1965 को हिन्दी भारत की आधिकारिक भाषा तो बन गई, लेकिन फिर भी यह ससम्मान आमजन की भाषा नहीं बन पाई। आलम यह है कि आज हमें हिन्दी ठीक से आए न आए, अँग्रेज़ी में ''हाय, हैलो! आई एम फ़ाइन'' कहते ज़रूर आना चाहिए। यह हिन्दी दिवस का उत्सव अँग्रेज़ी या किसी अन्य भाषा के अपमान के लिए बिलकुल नहीं है। इसे तो एक प्रयास माना जाए हिन्दी को उसके उचित शीर्ष स्थान पर सर्वसम्मति से काबिज़ करने का।
नेहरूजी ने एक बार कहा था, ''मैं अँग्रेज़ी का इसलिए विरोधी हूँ क्योंकि अँग्रेज़ी जानने वाला व्यक्ति स्वयं को दूसरों से बड़ा समझने लगता है और उसका एक अलग ही वर्ग बन जाता है। यही होता है इलीट क्लास।'' इसकी प्रासंगिकता यही है कि आज ऊँचे ओहदों की आवश्यकताओं में अँग्रेज़ी एक प्रमुख योग्यता है। आज हर कोई अँग्रेज़ी सीखकर ही बड़ा बनना चाहता है और बन सकता है।
हिन्दी बोलने वालों की संख्या का एक आकलन यह स्थिति पेश करता है ~
भारत - 363,839,000
बांग्लादेश - 346,000
बेलिज़ - 8, 455
बोट्सवाना - 2000
जर्मनी - 24,500
आज हमारी स्थिति के साथ-साथ हमारी भाषा और संस्कृति को भी एक सम्माननीय दर्जा प्राप्त हुआ है। यहाँ तक कि अँगरेजी भाषा के प्रसिद्ध शब्दकोष ‘ऑक्सफोर्ड’ ने भी हमारी भाषाओं के कुछ शब्दों से अपने शब्दकोश को अलंकृत किया है।
नेपाल - 170, 997
न्यूज़ीलैंड - 11,200
फ़िलीपींस - 2,415
सिंगापुर - 5000
दक्षिण अफ़्रीका - 890, 292
युगांडा - 147, 000
युनाइटेड किंगडम - 243 000
यूएसए - 26,253
यमन - 65, 000
कुल - 487,000,000
क्या इनके सामने होने पर भी किसी व्यक्ति का हिन्दी बोलने से परहेज़ करना जायज़ है। क्या ये आँकड़े हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
कॉन्वेंट विद्यालयों में जाने वाला बच्चा आज ''बनाना'' खाने की ज़िद करता है, उसे केला पसंद नहीं है। उसे नहीं पता है कि पहले ''खाना बनाना'' होता है बाद में खाना। फास्ट फूड से पेट की भूख शांत कर ली जाती है और तेज़तर्रार अँग्रेज़ी से संवाद की ज़रुरत पूरी हो जाती है। हिन्दी सशक्तीकरण में भला हो बॉलीवुड फ़िल्मों का जिन्होंने हिन्दी को भारत में ही नहीं, उन देशों में भी व्यावसायिकता की कसौटी पर खरा उतारा जहाँ के बाज़ार में अन्य भाषाओं का वर्चस्व रहा है। बॉलीवुड में निर्मित बॉलीवुड की हिन्दी फ़िल्मों ने पश्चिम में भी कई रिकॉर्ड तोड़ते हुए अपनी पूरी क़ीमत वसूली है। यह हिन्दी भाषा-भाषियों की ही जीत मानी जाएगी कि ‘स्पाइडरमैन’, ‘हैरी पॉटर’ और ‘स्टार वॉर्स’ जैसी हॉलीवुड श्रंखलाओं के अँग्रेज़ी और हिन्दी संस्करण एक साथ रिलीज़ किए गए हैं।
हिन्दी से संबंधित ऐसे तथ्यों, कथनों, और हिन्दी दिवस के प्रसंग से अधिक महत्व इस बात का है कि हिन्दी और भारतीय भाषाओं के बिना भारतीय संस्कृति का अस्तित्व संपूर्ण नहीं माना जा सकता। यहाँ किसी भाषा युद्ध का बिगुल फूँकने की तैयारी की कतई आवश्यकता नहीं है, किंतु जब हर तरफ़ अलग-अलग तरीके से कई मुद्दों पर कितने ही प्रकार के युद्ध हो रहे हैं तो एक युद्ध ये भी सही। युद्ध अपने आप से, अपनी भाषा की विजयश्री, सम्मान और गौरव सुनिश्चित करने के लिए। हिन्दी को फिर से माँ बनाने का युद्ध।