Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
Friday, 11 April 2025
webdunia

हिन्‍दी इनकी नजर में

Advertiesment
हमें फॉलो करें महात्मा गाँधी काका कालेलकर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस लालबहादुर शास्त्री
NDND
महात्मा गाँधी : कोई भी देश सच्चे अर्थो में तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।

काका कालेलकर : यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है तो वह जनता की भाषा में ही चलाना होगा।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस : प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।

लालबहादुर शास्त्री : राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिन्दी ही हो सकती है।

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : हिन्दी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। हिन्दी राष्ट्रीयता के मूल को सींचकर दृढ़ करती है।

रेहानी तैयबजी : हम हिन्दुस्तानियों का एक ही सूत्र रहे- हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी हमारी लिपि देवनागरी हो।

महर्षि दयानंद सरस्वती : हिन्दी द्वारा सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय : यदि हिन्दी की उन्नति नहीं होती है तो यह देश का दुर्भाग्य है।

अनन्त गोपाल सेवड़े : राष्ट्र को राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रभाषा की आवश्यकता है और वह स्थान हिन्दी को प्राप्त है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक : राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं। मेरे विचार में हिन्दी ही ऐसी भाषा है।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी : यदि भारतीय लोग कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।

लाला लाजपत राय : राष्ट्रीय मेल और राजनीतिक एकता के लिए सारे देश में हिन्दी और नागरी का प्रचार आवश्यक है।

डॉ. भगवान दास : हिन्दी साहित्य चतुष्पुरुषार्थ धर्म-अर्थ काम-मोक्ष का साधन है और इसीलिए जनोपयोगी भी है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र : निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।

मोरारजी देसाई : हिन्दी को देश में परस्पर संपर्क भाषा बनाने का कोई विकल्प नहीं। अँग्रेजी कभी जनभाषा नहीं बन सकती।

महादेवी वर्मा : हिन्दी प्रेम की भाषा है।

महाकवि शंकर कुरूप : भारत की अखंडता और व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए हिन्दी का प्रचार अत्यन्त आवश्यक है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi