Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सुंदर, सरल और सहज हमारी भाषा हिन्दी

मृणालिनी

हमें फॉलो करें सुंदर, सरल और सहज हमारी भाषा हिन्दी
ND
हिन्दी भाषा को हम सभी समझते हैं, जानते हैं और बोलते हैं। बड़ी प्यारी सी सरल भाषा है हिन्दी। किसी न किसी रूप में इसका हम उपयोग जरूर करते हैं। हम अपने विद्यालय में, अपने दोस्तों से खेल के मैदान पर हिन्दी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। हम कोई वस्तु खरीदने जाते हैं जैसे फूल-सब्जी या अन्य कोई सामान तो हम दुकानदार से ‍हिन्दी में ही बात करते हैं।

जब से मानव अस्तित्व में आया तब से ही भाषा का उपयोग कर रहा है चाहे वह ध्वनि के रूप में हो या सांकेतिक रूप में या अन्य किसी रूप में। भाषा हमारे लिए बोलचाल का माध्यम होती है। संप्रेषण का माध्यम होती है।

इसके द्वारा हम अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। बातचीत कर सकते हैं। दूसरे लोगों के विचार सुन सकते हैं। यह बिलकुल सही है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज का निर्माण मनुष्यों के पारस्परिक सहयोग से होता है। समाज में रहते हुए मानव आपस में अपनी इच्छाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करता है।

विचारों को व्यक्त करने के लिए उसे भाषा की आवश्यकता होती है। अत: हम यह कह सकते हैं क‍ि जिन ध्वनियों द्वारा मनुष्य आपस में विचार विनिमय करता है उसे भाषा कहते हैं। इसको हम इस प्रकार भी कह सकते हैं- सार्थक ध्वनियों का समूह जो हमारी अभिव्यक्ति का साधन हो, भाषा कहलाता है।

भाषा के साथ एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भाषा केवल ध्वनि से व्यक्त नहीं होती। संकेत तथा हाव-भावों से भी व्यक्त होती है जैसे बोलते समय चेहरे की आकृति में परिवर्तन होना, हाथ तथा उंगलियां हिलाना।

भाषा राष्ट्र के लिए क्यों आवश्यक है। भाषा राष्ट्र की एकता, अखंडता तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है तो एक भाषा होना चाहिए। इससे धार्मिक तथा सांस्कृतिक एकता बढ़ती है। यह स्वतंत्र तथा समृद्ध राष्ट्र के लिए आवश्यक है। इसलिए प्रत्येक विकसित तथा स्वा‍भिमानी देश की अपनी एक भाषा अवश्य होती है जिसे राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त होता है।

क्या किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाया जा सकता है। किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उसे ही बनाया जाता है जो उस देश में व्यापक रूप में फैली होती है। संपूर्ण देश में यह संपर्क भाषा व्यवहार में लाई जाती है।

राष्ट्रभाषा संपूर्ण देश में भावात्मक तथा सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रधान साधन होती है। इसे बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक होती है। हमारी राष्ट्रभाषा ‍‍हिन्दी भारत के प्रमुख राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश में प्रमुख रूप से बोली जाती है।

हम सभी इस बात को मानते हैं कि ‍‍हिन्दी भाषा बोलने में, लिखने में, पढ़ने में सरल है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या ‍हिन्दी भाषा का आरंभिक स्वरूप ऐसा ही था। हमारी अपनी सी लगने वाली ‍‍हिन्दी भाषा का रूप ऐसा नहीं था। प्रारंभ में यह बोली के रूप में थी।

बोली का क्षेत्र सीमित होता है। कालांतर में यह विकसित होते-होते एक समृद्ध भाषा बन गई। भाषा के रूप में इसका क्षेत्र विस्तृत होता गया। हमारी ‍हिन्दी भाषा में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। सभी विधाओं में साहित्य लिखा हुआ है। जैसे कहानी, कविता, नाटक, उपन्यास आदि।

webdunia
PR
इन विधाओं के लेखकों को महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। एक और मजेदार बात यह है कि ‍‍हिन्दी भाषा में अन्य भाषाओं के भी शब्द हैं। जैसे फारसी, अरबी आदि। कुछ शब्द तो बिलकुल वैसे ही प्रयोग में लाए जाते हैं तो कुछ सरलीकृत करके व्यवहार में लाते हैं। पर अब वे अलग प्रतीत ही नहीं होते, इतने घुल-मिल गए हैं।

हिन्दी भारत की स्वयं सिद्ध राष्ट्रभाषा है। इसे बोलने वालों का प्रतिशत 65 से भी अधिक है। हमारी ‍‍हिन्दी भाषा की एक विशेषता यह भी है कि हमारे देश में रहने वाले भारतीय लोग किसी भी प्रांत के रहने वाले हो उनकी कोई भी भाषा मातृभाषा हो, वे हिन्दी समझते हैं और किसी न किसी रूप में व्यवहार में लाते हैं।

हर भाषा का एक वैज्ञानिक रूप होता है। उसी प्रकार ‍हिन्दी भाषा का भी विज्ञान है और इस भाषा को विज्ञान की दृष्टि से ब्रजभाषा, अवधी, बैसवाडी तथा बुंदेली ‍‍हिन्दी की बोलियों के रूप में स्वीकार है। राजस्थानी, भोजपुरी, मगही तथा मैथिली व्यवहार की दृष्टि से उसकी बोलियां मानी जाती हैं।

किसी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम तथा संघर्ष करना पड़ता है। हमारी ‍‍हिन्दी भाषा भी कड़े संघर्षों के बाद वर्तमान स्थिति तक पहुंची है। ‍‍हिन्दी को कभी राज्याश्रय प्राप्त नहीं हुआ है। हम हमारे देश के प्राचीन इतिहास पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है कि इस काल में संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा थी। हिमालय से कन्याकुमारी तथा असम से लेकर सौराष्ट्र तक संपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक विचार विनिमय तथा चर्चाएं संस्कृत भाषा द्वारा होती थीं।

आद्यगुरु शंकराचार्य ने अपने दार्शनिक सिद्धांतों का विवेचन इसी भाषा के माध्यम से किया था। इसके बाद धीरे-धीरे संस्कृत का महत्व क्षीण हुआ। शासकों, फौजी, व्यापारियों तथा धर्म प्रचारकों की भाषा हिन्दी बनी। समस्त उत्तर भारत में उस समय ‍‍हिन्दी ही बोलचाल की भाषा थी।

webdunia
ND
हिन्दी भाषा के विकास में संतों, महात्माओं तथा उपदेशकों का योगदान भी कम नहीं ंका जा सकता है। क्योंकि ये आम जनता के अत्यंत निकट होते हैं। इनका जनता पर बहुत बड़ा प्रभाव होता है। उत्तर भारत के भक्तिकाल के प्रमुख भ‍क्त कवि सूरदास, तुलसीदास तथा मीराबाई के भजन सामान्य जनता द्वारा बड़े शौक से गाए जाते हैं। इसकी सरलता के कारण ही ये कई लोगों को कंठस्थ हैं।

इसका प्रमुख कारण ‍‍हिन्दी भाषा की सरलता, सुगमता तथा स्पष्टता है। संतों-महात्माओं द्वारा प्रवचन भी हिन्दी में ही दिए जाते हैं। क्योंकि अधिक से अधिक लोग इसे समझ पाते हैं। उदाहरण के रूप में दक्षिण-भारत के प्रमुख संत वल्लभाचार्य, विट्‍ठल रामानुज तथा रामानंद आदि ने हिन्दी का प्रयोग किया है।

उसी प्रकार महाराष्ट्र के संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर आदि, गुजरात प्रांत के नरसी मेहता, राजस्थान के दादू दयाल तथा पंजाब के गुरु नानक आदि संतों ने अपने धर्म तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए एकमात्र सशक्त माध्यम ‍‍हिन्दी को बनाया। हमारा फिल्म उद्योग तथा संगीत ‍‍हिन्दी भाषा के आधार पर ही टिका हुआ है।

हिन्दी भाषा के साथ दिलचस्प बात यह है कि यह जहां पर बोली जाती है वहां का स्थानीय प्रभाव उस भाषा पर दृष्टिगोचर होता है। जैसे हम इंदौर वाले मालवी मिश्रित ‍हिन्दी अर्थात सीधी-सादी बिना लाग लपेट वाली ‍‍हिन्दी बोलते हैं। मुंबई के लोग बम्बईया ‍हिन्दी बोलते हैं। इस तरह उनकी टोन बदल जाती है। दिवस के बहाने ही सही हम अपनी ‍हिन्दी को सहेजे, संवारे और प्रसारित करें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi