पिछले कुछ सालों पर नजर दौड़ाएंगे तो पता चलेगा कि फेसबुक हो या ट्विटर। इन पर शेयर की गई पोस्ट की भाषा या किसी तस्वीर का कैप्शन सिर्फ अंग्रेजी में हुआ करता था।
आप चाहकर भी सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट हिंदी में शेयर नहीं कर सकते थे। किसी दूसरे तरीके से हिंदी में लिखकर कॉपी-पेस्ट करने पर फेसबुक और ट्विटर पर वो फॉन्ट बदलकर या तो बॉक्स में बदल जाता था या कुछ और ही हो जाता था या अजीब से चिन्ह उभर आते थे।
लेकिन अब सोशल मीडिया पर बमुश्किल ही कोई पोस्ट अंग्रेजी भाषा में नजर आती है। अब सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा हिंदी में लिखा और पढ़ा जा रहा है।
यह बदलाव कुछ ही सालों के भीतर आएं हैं। चूंकि सोशल मीडिया का बदले हुए दौर में एक क्रांति की तरह उदय हुआ और तब उसकी भाषा अंग्रेजी ही थी, ऐसे में यूजर को हिंदी में अपनी बात कहने में झिझक महसूस होती थी, वो टूटी-फूटी और गलत अंग्रेजी में अपनी बात कहने की कोशिश करता था, लेकिन अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। अब न वो झिझक है और न ही कोई शर्मिंदगी।
हिंदी भाषा ने स्वाभाविक तौर पर सोशल मीडिया पर अपनी जगह बनाई है, क्योंकि ज्यादातर यूजर्स का अंग्रेजी में हाथ टाइट ही होता है, ऐसे में लोगों को धीरे-धीरे रोमन में लिखकर पोस्ट करना पड़ता था। इससे सोशल मीडिया को समझ में आया कि हिंदी भाषा में लिखने के विकल्प की बेहद जरुरत है। यही वजह रही कि कई विदेशी मालिकाना वाले सोशल मीडिया को हिंदी भाषी यूजर्स के लिए इस विकल्प को लाना पड़ा।
हिंदी के न्यूज पोर्टल्स, वीडियो पोर्टल्स और हिंदी के यूट्यूब चैनल को भी इस श्रेणी में मानकर हिंदी को बल देने के उपक्रमों के तौर पर देखा जा सकता है।
इसके बाद हिंदी के एक बड़े बाजार का उदय हुआ। अब देख सकते हैं कि फेसबुक,ट्विटर से लेकर गूगल और इंस्टाग्राम में भी हिंदी में लिखा जा सकता है, पोस्ट किया जा सकता है। और यूजर्स की तरफ से भी लिखने के लिए हिंदी का चयन किया जा रहा है।
सबसे खास बात है कि कोरोना काल में जूम, स्काईप और फेसबुक-इंस्टाग्राम पर किए गए लाइव सेशन और वेबिनार भी हिंदी में आयोजित हो रहे हैं। साहित्य जगत की कई चर्चाएं और विमर्श हिंदी में हो रहे हैं। फेसबुक पर तो कई ऐसे युवा लेखक और कवि हैं जिन्होंने हिंदी में ही लिखकर अपनी पहचान बनाई। फेसबुक और ट्विटर पर तो हिंदी एक क्रांति के तौर पर उभरकर सामने आई है।
कुल मिलाकर सोशल मीडिया को यूजर्स की जरुरत थी और यूजर्स को हिंदी में लिखने की सुविधा और विकल्प की। ऐसे में सोशल मीडिया से हिंदी भाषा को निश्चित रूप से ताकत मिली है। जाहिर है संप्रेषण (कम्यूनिकेशन) के लिहाज से हिंदी भाषा की ताकत भविष्य में भी बढ़ती जाएगी, ऐसी उम्मीद तो की ही जा सकती है।