Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

तभी सार्थक है हिन्दी दिवस

Advertiesment
हमें फॉलो करें तभी सार्थक है हिन्दी दिवस
डॉ. शिबन कृष्ण रैणा
हिंदी दिवस पर तरह-तरह के कार्यक्रम होंगे, भाषण,परिचर्चाएं, पुरस्कार वितरण आदि। भावुकतावश हिंदी की बड़ाई और अंग्रेजी की अवहेलना की जाएगी। गत साठ-सत्तर सालों से यही होता आ रहा है।



दरअसल, जिस रफ्तार से हिंदी के विकास-विस्तार हेतु सरकारी या गैर सरकारी संस्थाएं कार्यरत हैं, उससे दुगनी रफ्तार से अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। खास तौर पर अच्छा रोजगार दिलाने के मामले में हिंदी अभी सक्षम नहीं बन पाई है। हमारी नई पीढ़ी का अंग्रेजी की ओर प्रवृत्त होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि हिंदी में उच्च ज्ञान-विज्ञान को समेटने वाला साहित्य बिल्कुल भी नहीं है। अगर अनुवाद के जरिए कुछ आया भी हो तो वह एकदम बेहूदा और बोझिल है।

जब तक अपनी भाषा में हम मौलिक चिंतन नहीं करेंगे और हिंदी में मौलिक पुस्तकें नहीं लिखी जाएंगी, तब तक अंग्रेजी के ही मुहताज रहेंगे। आज भी संघ लोक सेवा आयोग या फिर हिंदी क्षेत्रों के विश्वविद्यालयों के प्रश्नपत्र अंग्रेजी में बनते हैं और उनके अनुवाद हिंदी में होते हैं।

पाद-टिप्पणी में साफ लिखा रहता है कि विवाद की स्थिति में अंग्रेजी पाठ को ही सही मान लिया जाए। यानी हिंदी विद्वानों का देश में टोटा पड़ गया है जो उनसे प्रश्नपत्र नहीं बनवाए जाते! विज्ञान अथवा तकनोलॉजी से जुड़े विषयों की बात तो समझ में आती है, मगर कला और मानविकी से जुड़े विषयों के प्रश्नपत्र तो मूल रूप से हिंदी में बन ही सकते हैं। हिंदी को जब तक सीधे-सीधे 'जरूरत' से नहीं जोड़ा जाता, तब तक अंग्रेजी की तरह उसका वर्चस्व और वैभव बढ़ेगा नहीं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी को विकसित करें विकृत नहीं