Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हिन्दी को आपके ढकोसले की जरूरत नहीं, यह हमारा स्‍वाभिमान और व्‍यवहार है

हमें फॉलो करें हिन्दी को आपके ढकोसले की जरूरत नहीं, यह हमारा स्‍वाभिमान और व्‍यवहार है
webdunia

नवीन रांगियाल

जब भी हिन्दी दिवस आता है, हिन्दी के अस्‍त‍ित्‍व पर खतरे को लेकर बहस और विमर्श शुरू हो जाता है। चंद गोष्‍ठ‍ियां होती हैं और कुछ सरकारी आयोजन। कुछ अखबारों में हिन्दी को सम्‍मान देने की रस्‍में पूरी की जाती हैं।
 
कुल जमा सप्‍ताह भर तक ‘हिन्दी सुरक्षा सप्‍ताह’ चलता है। इन कुछ दिनों तक हिन्दी हमारा गर्व और माथे की बिंदी हो जाती है।  
 
प्रति‍ वर्ष यही होता है, संभवत: आगे भी होता रहेगा। चूंकि यह एक परंपरा-सी है, ठीक उसी तरह जैसे हम आजादी का उत्‍सव मनाते हैं या नया वर्ष।
 
पिछले कई वर्षों से ऐसा किया जा रहा है। हिन्दी के अस्‍त‍िव को बचाने के लिए नारे गढ़े जा रहे हैं और इसके सिर पर मंडराते खतरे गि‍नाए जा रहे हैं। लेकिन तब से अब तक न तो हिन्दी का अस्‍त‍ित्‍व मिटा है और ही इस पर कोई संकट या खतरा आया गहराया है। और न ही ऐसा हुआ है कि हिन्दी बचाओ अभियान चलाने से यह अब हमारे सिर का ताज हो गई हों।
 
न तो हिन्दी का अस्‍त‍ित्‍व खत्‍म हुआ है और न ही इस पर कोई संकट है। यह तो हमारी आदत और औपचारिकता है हर दिवस पर ‘ओवररेटेड’ होना, इसलिए हम यह सब करते रहते हैं।  
 
हिन्दी की अपनी लय है, अपनी चाल और अपनी प्रकृति‍। इन्‍हीं के भरोसे वो चलती है और अपनी राह बनाती रहती है। सतत प्रवाहमान किसी नदी की तरह। कभी अपने बहाव में तरल है तो कहीं उबड़-खाबड़ पत्‍थरों से टकराती बहती रहती है और वहां पहुंच जाती है, जहां उसे जाना होता है, जहां से उसे गुजरना होता है।
 
इसके बनाने बि‍गड़ने में हमारा अपना कोई योगदान नहीं हैं, वो खुद ही अपना अस्‍त‍ित्‍व तैयार करती है और जीवि‍त रहती है, हमारे ढकोसले से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
 
भाषा कभी किसी अभि‍यान के भरोसे जिंदा नहीं रहती। वो देश, काल और परिस्‍थति के अनुसार अपनी लय बनाती रहती है। स्‍वत: ही उसकी मांग होती है और स्‍वत: ही उसकी पूर्त‍ि। यह ‘डि‍मांड और सप्‍लाय’ का मामला है।
 
पिछले दिनों या वर्षों में हिन्दी की लय या गति‍ देख लीजिए। दूसरी भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद की मांग है, इसलिए कई किताबों के अनुवाद हिन्दी में हो रहे हैं, कई अंतराष्‍ट्रीय बेस्‍टसेलर किताबों के अनुवाद हिन्दी में किए जा रहे हैं। क्‍योंकि हिन्दी-भाषी लोग उन्‍हें पढ़ना चाहते हैं, और वे हिन्दी पाठक किसी अभि‍यान के तहत या किसी मुहिम से प्रेरित होकर हिन्दी नहीं पढ़ना चाहते, बल्‍कि उन्‍हें स्‍वाभाविक तौर बगैर किसी प्रयास के हिन्दी पढ़ना है, इसलिए हिन्दी उनकी मांग है।
 
सोशल मीडि‍या पर हिन्दी में ही चर्चा और विमर्श होते हैं, यह स्‍वत: है। हिन्दी में लिखा जा रहा है, हिन्दी में पढ़ा जा रहा है। हाल ही में कई प्रकाशन हाउस ने हिन्दी में अपने उपक्रम प्रारंभ किए हैं।
 
गूगल हो, ट्व‍िटर या फेसबुक। या सोशल मीडि‍या का कोई अन्‍य माध्‍यम। हिन्दी ने अपनी जगह बना ली है, हिन्दी में ही लिखा, पढ़ा और खोजा जा रहा है।
 
ऐसा कभी नहीं होता कि हमारी अंग्रेजी अच्‍छी हो जाएगी तो हिन्दी खराब हो जाएगी। बल्‍क‍ि एक भाषा दूसरी भाषा का हाथ पकड़कर ही चलती है। एक दूसरे को रास्‍ता दिखाती है। अगर हमारे मन के किसी एक के प्रति‍ कोई द्वेष न हों।  
 
दुनिया की किसी भी भाषा में यही होता है, ऐसा नहीं हो सकता कि हम अंग्रेजी को खत्‍म कर के हिन्दी को बड़ा बना दे। या अंग्रेजी वाले हिन्दी को खत्‍म कर के अंग्रेजी को बड़ा कर सकेंगे।
 
हमें हिन्दी को लेकर अपने ‘ओवररेटेड चरित्र’ के प्रदर्शन से बचना होगा।
 
अगर हमें सच में कोई आशंका है कि हिन्दी पर कोई संकट आ जाएगा तो उसके अभि‍यान का हिस्‍सा बनने और उस पर बात करने के बजाए हिन्दी में कोई काम कर डालिए। हिन्दी के व्‍याकरण पर कोई किताब लिख डालिए या हिन्दी के सौंदर्य पर कोई दस्‍तावेज ही तैयार कर लीजिए। यह लिख दीजिए कि समय के साथ अपना रूप बदलकर अब ‘नई हिन्दी’ कैसी नजर आने लगी है। प्राचीन हिन्दी और नई हिन्दी में अंतर पर एक रिसर्च कर लीजिए कि अब कि‍स तरह नई हिन्दी हम सब के लिए सुवि‍धाजनक और सरल हो गई है।
 
कुछ ऐसा लिख दीजिए हिन्दी को लेकर कि हजार बार समय के थपेड़ों से भले उस पर घाव आ जाए, पर उसकी आत्‍मा नष्‍ट न हो।
 
आप और हम हिन्दी को बना भी नहीं सकते और मिटा भी नहीं सकते, हिन्दी को आपके ढकोसले की जरुरत नहीं, यह स्‍वत: स्‍वाभिमान और स्‍वत: व्‍यवहार है। 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सिर्फ 4 घंटे में कोलेस्ट्रॉल कम करता है ये फल, जानिए कैसे