हिन्दी दिवस,
सुना-सुनाया-सा नाम लगता है।
अच्छा आज हम हिन्दी पर,
हिंग्लिश में बात करेंगे।
आज हम कहेंगे,
हिन्दी में बात करना चाहिए।
हिन्दी खतरे में है,
सरकारें सो रही हैं।
आज हम चिल्ला-चिल्लाकर कहेंगे,
हिन्दी राष्ट्रभाषा है,
हमें इसका सम्मान करना चाहिए।
और फिर हम चल पड़ेंगे,
कॉन्वेंट स्कूल अपने बच्चे को लेने।
हम भाषण देंगे,
हिन्दी की अस्मिता को बचाना है।
फिर सॉरी, हैलो, हाय, बेबी,
शब्दों से उघाड़ते हैं उसका बदन।
बाजारीकरण के इस असभ्य दौर में,
अंग्रेजी एक चमचमाता 'मॉल' है।
जिसमें सब मिलता है,
जॉब्स से लेकर जिप तक।
और हिन्दी एक परचून की दुकान,
जो हमारी आत्मा तो तृप्त करती है,
पर पेट का पोषण नहीं।
भारतीयता तो मिल सकती है,
किंतु वरीयता नहीं।
हिन्दी उस देव के समान बन गई है,
जिसको पूजकर लोग,
उसी के सामने अश्लील नृत्य करते हैं।
संसद से लेकर सड़क तक,
सब हिन्दी का गुणगान करते हैं,
लेकिन व्यवहार में अंग्रेजी अपनाते हैं।
तारीफ पत्नी की करते हैं,
और 'दूसरी' के साथ समय गुजारते हैं।
बंद दरवाजे का शौच,
और हिन्दी की सोच,