Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बाल दिवस पर हिंदी में निबंध

हमें फॉलो करें बाल दिवस पर हिंदी में निबंध
Pandit Jawaharlal Nehru
 
यहां पढ़ें बच्चों के प्रिय चाचा तथा महान स्‍वतंत्रता सेनानी पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन यानी बाल दिवस (baal diwas) पर हिंदी में निबंध। बाल दिवस बच्चों को समर्पित भारत का राष्ट्रीय त्योहार है। देश की आजादी में पं. नेहरू का बड़ा योगदान रहा तथा उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश का उचित मार्गदर्शन किया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को हुआ था। 
 
दरअसल सन् 1925 में बाल दिवस की नींव रखी गई थी, जब बच्चों के कल्याण पर 'विश्व कांफ्रेंस' में बाल दिवस मनाने की सर्वप्रथम घोषणा हुई। 1954 में दुनिया भर में इसे मान्यता मिली।

हर साल 14 नवंबर को भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन आता है तथा इस दिन को विशेष तौर पर 'बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि नेहरू जी को बच्चों से बहुत प्यार था और बच्चे उन्हें 'चाचा नेहरू' कहकर पुकारते थे। 
 
बाल दिवस बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन स्कूली बच्चे अधिक खुश दिखाई देते हैं। स्कूलों में बच्चे विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं, वे सज-धज कर स्कूल जाकर अपने प्रिय चाचा नेहरू का स्मरण करते हैं तथा इस समय बाल मेलों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें बच्चे अपनी बनाई हुई वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाते हैं तथा अपनी कला का प्रदर्शन दिखाते हैं।

इस अवसर पर कहानियों का मंचन, भाषण, नुक्कड़, नृत्य-नाटिका, गान आदि प्रस्तुत करके आम लोगों को शिक्षा तथा देश के ऐतिहासिक बातों से अवगत कराया जाता है। बाल दिवस मनाने के उत्सव को बच्चों के भविष्य के विषय में एक अच्छा कदम माना जा सकता हैं क्योंकि, आगामी पीढ़ी या बच्चे ही हमारे देश का भविष्य है। अत: उन्हें आगे बढ़ाकर तथा अच्छे संस्कार देकर हम देश के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

आगे बढ़ते भारत और बदलते दौर में हमें बच्चों से कड़ा श्रम करवाने के बजाय उन्हें पढ़ा-लिखा कर उनके अच्छे भविष्‍य बनाने की ओर उन्हें अग्रसर करना होगा, तभी हमारा बाल दिवस (Children's Day) मनाना तो सार्थक होगा ही, साथ ही नेहरू जी के प्रिय 'बच्चों' के प्रति हम अपना सही दायित्व निभा पाएंगे। 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्‍या अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार नहीं होना चाहिए?