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Gudi Padwa Essay : गुड़ी पड़वा पर हिन्दी में निबंध

हमें फॉलो करें Gudi Padwa Essay : गुड़ी पड़वा पर हिन्दी में निबंध
Gudi Padwa Festival
 

प्रस्तावना : भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भार‍तवर्ष में कालगणना प्रारंभ हुई थी। कहा है कि-
 
चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि
शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति। -ब्रह्मपुराण
 
कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने इसे प्रतिपदा तिथि को सर्वोत्तम तिथि कहा था इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं।
 
इस दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोपण आदि विधि-विधान किए जाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। इस ऋतु में संपूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार सोमरस चंद्रमा ही औषधियों-वनस्पतियों को प्रदान करता है इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
 
 
‘प्रतिपदा' के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग' की रचना की। इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ 'विजय पताका' होता है।
 
'गुड़ी पड़वा' का इतिहास : 
 
* इस नवसंवत्सर का इतिहास बताता है कि इसी दिन आज से 2070 वर्ष पूर्व 'उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य' ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। कहा जाता है कि देश की अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति और शांति को भंग करने के लिए उत्तर-पश्चिम और उत्तर से विदेशी शासकों ने इस देश पर आक्रमण किए और अनेक भूखंडों पर अपना अधिकार कर लिया और अत्याचार किए जिनमें एक क्रूर जाति के शक तथा हूण थे।
 
 
ये लोग पारस कुश से सिन्ध आए थे। सिन्ध से सौराष्ट्र, गुजरात एवं महाराष्ट्र में फैल गए और दक्षिण गुजरात से इन लोगों ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया। शकों ने समूची उज्जयिनी को पूरी तरह विध्वंस कर दिया और इस तरह इनका साम्राज्य विदिशा और मथुरा तक फैल गया। इनके क्रूर अत्याचारों से जनता में त्राहि-त्राहि मच गई तो मालवा के प्रमुख नायक विक्रमादित्य के नेतृत्व में देश की जनता और राजशक्तियां उठ खड़ी हुईं और इन विदेशियों को खदेड़कर बाहर कर दिया।
 
 
इस पराक्रमी वीर महावीर का जन्म अवंति देश की प्राचीन नगर उज्जयिनी में हुआ था जिनके पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दंपति ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान भूतेश्वर से अनेक प्रार्थनाएं एवं व्रत उपवास किए। सारे देश में शक के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए विक्रमादित्य को अनेक बार उससे उलझना पड़ा जिसकी भयंकर लड़ाई सिन्ध नदी के आस-पास करूर नामक स्थान पर हुई जिसमें शकों ने अपनी पराजय स्वीकार की।
 
 
इस तरह महाराज विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे 'विक्रमी शक संवत्सर' कहा जाता है। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया।
 
* कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर' भी कहते हैं।
 
 
भारत भर में 'गुड़ी पड़वा' कैसे मनाते हैं- 
 
भारत के विभिन्न राज्यों में 'गुड़ी पड़वा' अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है-
 
चैत्र ही एक ऐसा महीना है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं जिसे मधुमास भी कहते हैं। इतना ही नहीं, यह वसंत ऋतु समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके समूची धरती को विभिन्न प्रकार के फूलों से अलंकृत कर जनमानस में नववर्ष के उल्लास तथा उमंग का संचार करती है।
 
 
* आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ ये बंदनवार समृद्धि व अच्छी फसल के भी परिचायक होते हैं।
 
* इस अवसर पर आंध्रप्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/ प्रसादम' के रूप में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं।
 
 
* महाराष्ट्र में पूरनपोली (मीठी रोटी) बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं- गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं। यूं तो आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है, किंतु आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है। 9 दिन तक मनाया जाने वाला यह त्योहार दुर्गापूजा के साथ-साथ रामनवमी को राम और सीता के विवाह के साथ संपन्न होता है।
 
* आंध्रप्रदेश में युगादि या उगादि तिथि कहकर इसकी उद्घोषणा की जाती है।
 
* सिन्धु प्रांत में इस नवसंवत्सर को 'चेटी चंड' (चैत्र का चंद्र) नाम से पुकारा जाता है जिसे सिन्धी हर्षोल्लास से मनाते हैं।
 
* कश्मीर में यह पर्व 'नौरोज' के नाम से मनाया जाता है जिसका उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वर्ष प्रतिपदा 'नौरोज' यानी 'नवयूरोज' अर्थात 'नया शुभ प्रभात' जिसे लड़के-लड़कियां नए वस्त्र पहनकर बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

 
* हिन्दू संस्कृति के अनुसार नवसंवत्सर पर कलश स्थापना कर 9 दिन का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ कर नवमी के दिन हवन कर मां भगवती से सुख-शांति तथा कल्याण की प्रार्थना की जाती है जिसमें सभी लोग सात्विक भोजन, व्रत, उपवास तथा फलाहार कर नए भगवा झंडे तोरण द्वार पर बांधकर हर्षोल्लास से मनाते हैं।
 
मान्यताएं :
 
* एक प्राचीन मान्यता है कि आज के दिन ही भगवान राम जानकी माता को लेकर अयोध्या लौटे थे। इस दिन पूरी अयोध्या में भगवान राम के स्वागत में विजय पताका के रूप में ध्वज लगाए गए थे। इसे ब्रह्म ध्वज भी कहा गया।

 
* एक अन्य मान्यता है कि ब्रह्माजी ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही सृष्टि की रचना की।
 
* श्री विष्णु भगवान ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही प्रथम जीव अवतार (मत्स्यावतार) लिया था।
 
* यह भी मान्यता है कि शालिवाहन ने शकों पर विजय आज के ही दिन प्राप्त की थी इसलिए शक संवत्सर प्रारंभ हुआ।
 
* मराठी भाषियों की एक मान्यता यह भी है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हिन्दू पदशाही का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिन्दवी साम्राज्य की नींव रखी।

 
* कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बालि के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़िया) फहराए। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया।
 
* विक्रम संवत के महीनों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त होने के आधार पर रखे गए हैं। सूर्य, चन्द्रमा की गति के अनुसार ही तिथियां भी उदय होती हैं। मान्यता है कि इस दिन दुर्गाजी के आदेश पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन दुर्गाजी के मंगलसूचक घट की स्थापना की जाती है।
 
 
सूर्य में अग्नि और तेज हैं और चन्द्रमा में शीतलता, शांति। समृद्वि के प्रतीक सूर्य और चन्द्रमा के आधार पर ही सायन गणना की उत्पत्ति हुई है। इससे ऐसा सामंजस्य बैठ जाता है कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, अधिकमास, क्षय मास आदि व्यवधान उत्पन्न नहीं कर पाते। तिथि घटे या बढ़े, लेकिन सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को होगा और चन्द्रग्रहण सदैव पूर्णिमा को ही होगा।
 
आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धर लेती है।
 
 
प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नवसंरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी व यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।
 
इस दिन और क्या-क्या घटित हुआ था :
 
* ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन।
* मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र का राज्याभिषेक।
* महाराज युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ।
* महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय की (विक्रमी संवत् प्रारं‍भ)।
* मां दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारं‍भ।
* महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना।
* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्‍थापक केशव बलीराम हेडगेवार का जन्‍मदिन।
 
लोग इन्हीं दिनों तामसी भोजन, मांस-मदिरा का त्याग भी कर देते हैं। प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। यह गुड़ी पड़वा आपको खुशी, शांति और समृद्धि, स्वास्थ्य और धन दे।
 
सभी को हिन्दू नववर्ष / गुड़ी पड़वा की हार्दिक शुभकामनाएं।

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