Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Kullu Dussehra: कुल्लू का दशहरा, पढ़ें हिन्दी में रोचक निबंध

हमें फॉलो करें Kullu Dussehra: कुल्लू का दशहरा, पढ़ें हिन्दी में रोचक निबंध
Kullu Dussehra Essay- प्रस्तावना : कुल्लू का दशहरा रथयात्रा, जुलूस और मोहल्ला उत्सव की परंपरा से सरोबार है। भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कुल्लू जिले में स्थित एक नगर है, यह कुल्लू घाटी में ब्यास नदी के किनारे बसा हुआ है। वहां का दशहरा पर्व दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

कुल्लू को उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल के बारे में भी विश्वभर में जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के दशहरा की शुरुआत हिन्दी कैलेंडर के अनुसार आश्विन महीने की दसवीं तारीख से होती है। जब देश में लोग दशहरा मना चुके होते हैं तब कुल्लू का दशहरा शुरू होता है। 
 
इस दशहरे की एक और खासियत यह है कि जहां सब जगह रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है। कुल्लू में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच जानवरों की बलि दी जाती है। 
 
कथा: कुल्लू के दशहरे का सीधा संबंध रामायण से नहीं जुड़ा है। बल्कि कहा जाता है कि इसकी कहानी एक राजा से जुड़ी है। सन्‌ 1636 में जब जगतसिंह यहां का राजा था, तो मणिकर्ण की यात्रा के दौरान उसे ज्ञात हुआ कि एक गांव में एक ब्राह्मण के पास बहुत कीमती रत्न हैं।
 
राजा ने उस रत्न को हासिल करने के लिए अपने सैनिकों को उस ब्राह्मण के पास भेजा। सैनिकों ने उसे यातनाएं दीं, डर के मारे उसने राजा को श्राप देकर परिवार समेत आत्महत्या कर ली। कुछ दिन बाद राजा की तबीयत खराब होने लगी। तब एक साधु ने राजा को श्रापमुक्त होने के लिए रघुनाथजी की मूर्ति लगवाने की सलाह दी। 
 
अयोध्या से लाई गई इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और तभी से उसने अपना जीवन और पूरा साम्राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया। तभी से यहां दशहरा पूरी धूमधाम से मनाया जाने लगा।
 
परंपरा: भारत में हिमाचल प्रदेश में दशहरा 1 दिन का नहीं बल्कि 7 दिन का त्योहार है। यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं। कुल्लू का दशहरा देश में सबसे अलग पहचान रखता है। कुल्लू का दशहरा पर्व परंपरा, रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। 
 
यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं तथा आश्विन महीने की दसवीं तारीख को इसकी शुरुआत होती है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग और भी अधिक बढ़ने लगता है।
 
यज्ञ का न्योता: कुल्लू के दशहरे में आश्विन महीने के पहले 15 दिनों में राजा सभी देवी-देवताओं को धालपुर घाटी में रघुनाथ जी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए न्योता देते हैं। 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को रंगबिरंगी सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है। इस उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी, मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं। राजघराने के सब सदस्य देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं।
 
रथयात्रा, जुलूस और मोहल्ला उत्सव: इस अवसर पर रथयात्रा का आयोजन होता है। रथ में रघुनाथ जी तथा सीता व हिडिंबा जी की प्रतिमाओं को रखा जाता है। रथ को एक से दूसरी जगह ले जाया जाता है, जहां यह रथ 6 दिन तक ठहरता है। इस दौरान छोटे-छोटे जुलूसों का सौंदर्य देखते ही बनता है। उत्सव के 6ठें दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आकर मिलते हैं जिसे 'मोहल्ला' कहते हैं। इस दिन मोहल्ला उत्सव मनाया जाता है।
 
रघुनाथ जी के इस पड़ाव पर सारी रात लोगों का नाच-गाना चलता है। 7वें दिन रथ को बियास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंकादहन का आयोजन होता है। इसके पश्चात रथ को पुन: उसके स्थान पर लाया जाता है और रघुनाथजी को रघुनाथपुर के मंदिर में पुन:स्थापित किया जाता है। इस तरह विश्वविख्यात कुल्लू का दशहरा हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण होता है। 
 
उत्सव: कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी पर उत्सव की शोभा निराली होती है। दशहरा पर्व भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। भारत में विजयादशमी का पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है।
 
भारत के ऐसे अनेक स्थान हैं, कुल्लू के साथ-साथ मैसूर का दशहरा काफी प्रसिद्ध है। जहां दशहरे की धूम देखते ही बनती है। दक्षिण भारत तथा इसके अतिरिक्त उत्तर भारत, बंगाल इत्यादि में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Dussehra Rangoli 2023: दशहरे पर बनाएं ये 5 सुंदर रंगोली