Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

23 मार्च शहीद दिवस - शहीद शिवराम हरि राजगुरु पर निबंध

हमें फॉलो करें 23 मार्च शहीद दिवस - शहीद शिवराम हरि राजगुरु पर निबंध
, बुधवार, 23 मार्च 2022 (16:14 IST)
भगत सिंह और सुखदेव का नाम राजगुरू के बिना अधूरा है। शहीद वीर राजगुरू हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले युवाओं को लिए प्रेरणा का सबसे बड़ा उदाहरण है। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा......

शिवराम हरि राजगुरु का जीवन परिचय

राजगुरू के नाम से प्रसिद्ध राजगुरू का असल में नाम शिवराम हरि राजगुरू है। वे महराष्ट् के रहने वाले थे। भगत सिंह व सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी फांसी की सजा दी गई थी।

राजगुरु का जीवन

राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। लेकिन सिर्फ 6 साल की उम्र में ही राजगुरु के सिर से पिता का साया उठ गया था। पिता के निधन के बाद वे विद्या अध्ययन और संस्कृत सीखने के लिए वाराणसी आ गए थे। राजगुरु  के  अंदर छोटी उम्र से ही जंग-ए-आजादी में शामिल होने की ललक थी। अध्ययन के दौरान उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ। इसके बाद 16 साल की उम्र में ही वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए। वे चंद्रशेखर आजाद से काफी प्रभावित हो गए थे।

जिसका मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश अधिकारियों के मन में खौफ पैदा करना था। भगत सिंह के साथ वे घूम-घूम कर जनता को जागरूक करते थे।

लेकिन गांधी के विचारों के विपरीत 

राजगुरु क्रांतिकारी तरीके से यानी हथियारों से आजादी चाहते थे। लेकिन महात्मा गांधी हमेशा से अहिंसा में विश्वास रखते थे। उनके एक ही नारा था ‘अहिंसा परमो धर्म’।

राजगुरू को पार्टी के अंदर छद्म नाम से जाना जाता था। राजगुरु काफी अच्छे निशानेबाज थे। राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह के अलावा पं़ चंद्रशेखर आजाद,  सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रांतिकारी इनके अभिन्न मित्र थे।

1928 में साण्डर्स की हत्या

19 दिसंबर 1928 को राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव सिंह ने मिलकर ब्रिटिश पुलिस ऑफीसर जेपी सांडर्स की हत्या कर दी थी। पुलिस ऑफीसर की हत्या करने का मकसद सिर्फ लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना था, जिनकी मौत साइमन कमीशन का विरोध करने के दौरान हुई थी।

नई दिल्ली के सेंट्ल असेंबली में हमला करने में राजगुरू का बड़ा हाथ था। इसमें सुखदेव और भगत सिंह भी शामिल थे। इसके बाद इन्हें पकड़़ने के लिए पुलिस द्वारा अभियान चलाया गया।

23 मार्च 1931 को फांसी की सजा

पुणे के रास्ते भागे सुखदेव, राजगुरू और भगत सिंह नागपुर में छिप गए। उन्होंने कार्यकर्ता में घर में शरण ली। वे आगे कुछ योजना बनाते पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सूली पर लटका दिया। इसके बाद सतलज नदी तट पर तीनों का दाह संस्कार किया गया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Basoda 2022 : बसौड़ा पर्व पर देवी शीतला को लगाएं यह खास भोग, माता प्रसन्न होकर देंगी आशीष