Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Essay on Guru Purnima : गुरु पूर्णिमा पर हिन्दी निबंध

हमें फॉलो करें Essay on Guru Purnima : गुरु पूर्णिमा पर हिन्दी निबंध
इस वर्ष 3 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। यह दिन महान गुरु वेद व्यास जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
 
गुरु को महत्व देने के लिए ही महान गुरु वेद व्यासजी की जयंती पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन भगवान शिव द्वारा अपने शिष्यों को ज्ञान दिया गया था। इस दिन कई महान गुरुओं का जन्म भी हुआ था और बहुतों को ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी। इसी दिन गौतम बुद्ध ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया था।
 
आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह पर्व जून से जुलाई के बीच में आता है। इस पर्व को हिन्दू ही नहीं बल्कि जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोग भी मनाते हैं।
 
माता और पिता अपने बच्चों को संस्कार देते हैं, पर गुरु सभी को अपने बच्चों के समान मानकर ज्ञान देते हैं।
 
गुरु और शिक्षकों का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। एक विद्यार्थी के जीवन में गुरु अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। गुरु के ज्ञान और संस्कार के आधार पर ही उसका शिष्य ज्ञानी बनता है। गुरु की महत्ता को महत्व देते हुए प्राचीन धर्मग्रन्थों में भी गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान बताया है। एक व्यक्ति गुरु का ऋण सभी नहीं चूका पाता है।
 
गुरु मंदबुद्धि शिष्य को भी एक योग्य व्यक्ति बना देते हैं। संस्कार और शिक्षा जीवन का मूल स्वभाव होता है। इनसे वंचित रहने वाला व्यक्ति बुद्दू होता है।
 
गुरु के ज्ञान का कोई तोल नहीं होता है। हमारा जीवन गुरु के अभाव में शून्य होता है। गुरु अपने शिष्यों से कोई स्वार्थ नहीं रखते हैं, उनका उद्देश्य सभी का कल्याण ही होता है। गुरु को उस दिन अपने कार्यो पर गर्व होता है, जिस दिन उसका शिष्य एक बड़े ओदे पर पहुंच जाता है।  
 
गुरु पूर्णिमा के दिन विद्यार्थी अपने गुरु के सम्मान में अनेक गतिविधियां करते हैं। इस दिन हमारे गुरु और शिक्षक की हम आराधना करते हैं और उन्हें उपहार देकर उनका आदर करते हैं। इस दिन पाठशाला, स्कूल, कॉलेज, आश्रम और गुरुकुलों में शिक्षकों और गुरुओं के सम्मान के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। तथा गुरुओं के सम्मान में गीत, भाषण, कविताएं, नृत्य और नाटक किए जाते हैं।
 
प्राचीनकाल से ही भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा रही है। भगवान शिव के बाद गुरु दत्तात्रेय को सबसे बड़ा गुरु माना गया है। इसके बाद देवताओं के पहले गुरु अंगिरा ऋषि थे। उसके बाद अंगिरा के पुत्र बृहस्पति गुरु बने। उसके बाद बृहस्पति के पुत्र भारद्वाज गुरु बने थे। इसके अलावा हर देवता किसी न किसी का गुरु रहा है। सभी असुरों के गुरु का नाम शुक्राचार्य हैं। शुक्राचार्य से पूर्व महर्षि भृगु असुरों के गुरु थे। कई महान असुर हुए हैं जो किसी न किसी के गुरु रहे हैं।
 
महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य, कौरव और पांडवों के गुरु थे। परशुरामजी कर्ण के गुरु थे। इसी तरह किसी ना किसी योद्धा का कोई ना कोई गुरु होता था। वेद व्यास, गर्ग मुनि, सांदीपनि, दुर्वासा आदि। चाणक्य के गुरु उनके पिता चणक थे। महान सम्राट चंद्रगुप्त के गुरु आचार्य चाणक्य थे।

चाणक्य के काल में कई महान गुरु हुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि महावतार बाबा ने आदिशंकराचार्य को क्रिया योग की शिक्षा दी थी और बाद में उन्होंने संत कबीर को भी दीक्षा दी थी। इसके बाद प्रसिद्ध संत लाहिड़ी महाशय को उनका शिष्य बताया जाता है। नवनाथों के महान गुरु गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे‍ जिन्हें 84 सिद्धों का गुरु माना जाता है।
 
मनुस्मृति में कहा गया है कि उपनयन संस्कार के बाद विद्यार्थी का दूसरा जन्म होता है। इसीलिए उसे द्विज कहा जाता है। शिक्षापूर्ण होने तक गायत्री उसकी माता तथा आचार्य उसका पिता होता है। पूर्ण शिक्षा के बाद वह गुरुपद प्राप्त कर लेता है।

webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

घर बैठे बनाएं cheek और lip tint, बचा सकते हैं 500 रुपए