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नाक की टोपी : वायरल हो रही है यह हास्य कविता

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नाक की पगड़ी 
 
कई सदियों से नाक और सिर में यह तकरार थी तगड़ी !
कहती थी नाक, जब मुझ से है इज़्ज़त,
तो फिर सिर के पास ही क्यों पगड़ी !!
नाक का कहना था,
कि सभी मुहावरों में है मेरा फसाना !
चाहे वो नाक कटना हो,
नाक नीची होना, या हो फिर,नाकों चने चबाना !!
क्यों फिर सर को ही है केवल,
पगड़ी और टोपी का अधिकार !
जबकि इंसा की इज़्ज़त का,
मुझ से सीधा सरोकार !!
कहा विधाता ने नक्कू जी,
दिन तेरा भी एक दिन आएगा !
सिर की पगड़ी भूलके इंसान,
बस तुझको ही ढकता जाएगा !!
फला विधाता का वरदान,
देखो नाक की बदली शान !
अब नाक की टोपी सर्वोपरि है,
बिन इसके खतरे में जान !!
इस युग में नाक तू सबसे ऊपर,
तुझ से जीवन के आयाम !
भांति भांति के आवरण (मास्क) तेरे, 
सुबह शाम के प्राणायाम !!
इस पगड़ी-टोपी के झंझट में,
हुआ हम सब का काम तमाम !
अब नाक बचाने को केवल,
नाक ढके घूम रहा इंसान !!
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