एक शौहर ने दो निकाह किए ??
और दोनों बीवी से बहुत प्यार करता था
दोनों ही के साथ
बड़ा इंसाफ़ का मामला भी रखता था.
तक़दीर का फ़ैसला देखिए...
दोनों ही बीवियों का
एक ही वक़्त में इंतेक़ाल हो गया.
शौहर ने
इंसाफ़ के तक़ाज़े से ये चाहा...
कि
दोनों को
एक ही वक़्त
और एक ही साथ ग़ुस्ल दिया जाए.(नहलाया जाए )
इसलिए उसने
ग़ुस्ल देने वालियाँ दो बुलवाईं...
ताकि
एक ही वक़्त में
दोनों को एक साथ ग़ुस्ल दी जाए.
फिर
दफ़न के लिए
घर से एक ही वक़्त में
एक साथ निकालने का तय किया.
इत्तिफ़ाक़ से
उस घर में एक ही दरवाज़ा था...
शौहर ने
क्योंकि एक ही वक़्त में
दोनों बीवियों का जनाज़ा
निकालने का तय किया हुआ था...
इसलिए
आनन फानन में
तुरन्त ही एक और नया
दरवाज़ा बनवाने का फ़ैसला किया.
दरवाज़ा बनाने वाला बुलाया गया,
और
दूसरा दरवाज़ा बनवा कर
एक ही वक़्त में दोनों के जनाजो को घर से निकाला.
और
दफ़न कर के जब घर आया तो सबने उसके बीवी के साथ रहन सहन की तारीफ की और उसने
अपने इंसाफ़ पर
अल्लाह का शुक्र अदा किया
कि उसने मुझे सही इंसाफ़ करने की तौफ़ीक़ दी.
रात में
एक बीवी को
शौहर ने अचानक ख़्वाब में देखा.
वो
बड़ी ही
ग़मज़दा आवाज़ में कह रही थी :
मैं आप से नाराज़ हूँ...!
अल्लाह आप को माफ़ न करेगा.
शौहर ने कहा :—
लेकिन क्यों...?
ख़ुदा की बंदी आखिर क्यों...?
इस पर
उस बीवी ने जवाब दिया :
आपने
अपनी दूसरी बीवी को
नये दरवाज़े से निकाला
और मुझे पुराने दरवाज़े से...!
(बीबी को खुश रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है लाला)