नवाब साहब की तलवार चोरी हो गई।
लोग झुंड में हवेली पर आकर अफसोस ज़ाहिर करने लगे।
पहले झुंड के ज्ञानी : हज़ूर तलवार रक्खी कहां थी?
नवाब : भई तकिये के नीचे।
ज्ञानी : हज़ूर ने गलती कर दी चोर सब से पहले सिरहाना ही टटोलता है, पैरों में रखनी थी
दूसरे झुंड के ज्ञानी : हज़ूर तलवार रखी कहां थी?
नवाब : भई पैरों में।
ज्ञानी : हज़ूर पैरों में पड़ी चीज़ का कहां होश रहता है, सिरहाने रखते
शाम तक नवाब साब तंग आ गए, रात को मुल्ला जी आए अफसोस करने।
मुल्ला जी : हज़ूर ने तलवार रखी कहाँ थी?
नवाब चिढ़ कर : भाई मैं उसे मुंह में डाल कर सोया था।
मुल्ला जी (सीरियस हो कर) : हज़ूर ने तलवार का हत्था बाहर छोड़ दिया होगा।