फ़ेसबुक और व्हाट्सएप्प ने सबको शायर बना दिया है लिहाज़ा मैंने भी आलू प्याज बेचने का धंधा छोड़कर शायरी का चोखा धंधा अपना लिया है और पेश कर रहा हूं ग़ालिब के अंदाज़ में एक हरी भरी विटामिन युक्त ग़ज़ल।
अपना नाम भी कद्दू गोरखपुरी रख लिया है ताकि शेरों में विटामिन सिटामिन की कोई कमी न हो।लीजिए गालिब की मशहूर ग़ज़ल दिल ही तो है का भुर्ता पेश है:)
आलू ही है,न मूली प्याज कोई इसे न खाएं क्यों
खाएंगे हम हज़ार बार,
कोई हमें खिलाएं क्यों
कददू हो या हो लौकियां,अस्ल में दोनों एक हैं
इनको अलग अलग यहां, कोई कभी पकाए क्यों
आलू नहीं,मेथी नहीं,गोभी नहीं मटर नहीं
इतनी खराब लाल मिर्च,
कोई मुझे खिलाए क्यों
कड़वे करेले जूस ने,रोगों को दूर कर दिया
पीजिए कॉफ़ी वाफी क्यों,पीजिए चाय वाय क्यों
ग़ालिब नहाने के बगैर,कौन से काम बंद हैं
फिर इतनी ठंड में भला,कोई यहां नहाए क्यों :)
कद्दू गोरखपुरी