बहुत दिनों बाद मित्र से मुलाकात हुई।
हालचाल पूछने पर उसने गोल-गोल मुंह बनाते हुए कहा - परस्त्री बुरी है..
मुझे लगा शायद किसी चक्कर में पड़ गया था, अक्ल आ गई होगी। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
लेकिन जब उसने कहना शुरू किया कि -
परस्त्री कठिन है...
परस्त्री हाथ से निकल गई है...
परस्त्री नियंत्रण में नहीं आ रही है...
तो मेरा दिमाग घूम गया....
फिर उसने अपने मुंह में भरे पड़े गुटखे को थूका तब मुझे समझ आया कि वो बेचारा "परिस्थिति" के बारे में बात कर रहा था।