एक ज़माना था जब हम किसी को जोक सुनाते थे तो उम्मीद होती थी कि सुनने वाले खूब हंसे लेकिन जब कोई ना हंसने की गुस्ताखी करता था तो ये कहानी सुनाया करते थे।
एक बार जंगल के राजा शेर ने जंगल के सभी जानवरों की सभा बुलवाई और सभी को सूचना पहुंचाई कि सभी जानवरों को एक एक जोक सुनाना पड़ेगा और अगर उस जानवर के जोक पर वहां उपस्थित कोई भी जानवर नहीं हंसा तो जोक सुनाने वाले जानवर को मौत की सजा दी जाएगी।
सभी जानवर डरे और घबराए सभा में पहुंच तो गए लेकिन सबके मन में डर था कि अगर उसके जोक पर कोई दूसरा जानवर नहीं हंसा तो उसकी जान चली जाएगी।
फिर भी राजा के आदेश और डर से सभी जानवर उस सभा में पहुंच गए।
राजा ने सभा में पहुंचे सभी जानवरों की तरफ निगाह घुमाई और खरगोश से कहा सबसे पहले जोक तुम सुनाओ।
खरगोश बहुत होशियार था, वह पहले तैयारी करके आया था और उसने ऐसा जोक सुनाया कि सभा में उपस्थित जंगल के सभी जानवर हंस हंस के लोट पोट हो गए।
लेकिन कछुआ चुपचाप था उसे बिलकुल हंसी नहीं आई। और राजा की शर्त के अनुसार खरगोश को मौत की सजा मिल गई।
राजा ने इसके बाद एक हिरण को जोक सुनाने का आदेश दिया। हिरण ने जोक सुनाया तो जंगल के सभी जानवर न चाहते हुए भी हंस पड़े, लेकिन एक बार फिर कछुए पर कोई फर्क नहीं पड़ा, और हिरण को भी अपनी जान गंवानी पड़ी।
इसके बाद राजा ने हाथी से कहा की अगला जोक तुम सुनाओ, हाथी डरा सहमा जोक सुनाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि कछुआ ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा।
राजा समेत जंगल के सभी जानवर आश्चर्य में थे कि हाथी के जोक सुनाने से पहले ही कछुआ दहाड़े मारकर क्यों हंस रहा है।
तभी राजा ने दहाड़ते हुए कछुए को चुप कराया और पूछा अ भी तो जोक सुनाया भी नहीं फिर तुम्हें किस बात की हंसी आ रही है?
तब कछुए ने जवाब दिया कि महाराज मुझे खरगोश का जोक समझ में आ गया।