ये सभी कार्य-कलाप कोरोना काल में मास्क के कारण असंभव हो गए थे।
'मुंह की खाना'
'मुंहतोड़ जवाब देना'
'मुंह देखी बात करना'
'मुंह ताकना'
'मुंह देखते रह जाना'
'मुंह पर ताला लगना'
'मुंह पर थूकना'
'मुंह फुलाना'
'मुंह में खून लगना'
'मुंह से फूल झड़ना'
'मुंह लगाना'
'मुंह चिढ़ाना'
'मुंह में दही जमना'
परंतु तब "मुंह छिपाने "और" मुंह भी न देखने" की जरूरत एकदम खतम हो गई थी।
साथ-साथ 'मूंछे ऊंची करना', 'मूछें नीची हो जाना' या 'मूंछ पर ताव देना' संभव नहीं रहा था।
मूंछ भी तब कोई नहीं काट सकता था।
वैसे ही 'दांत तोड़ देना', 'दांत निपोरना', 'दांतों तले उंगली दबाना' संभव नहीं रहा था।
'नाकों चने चबवाने' के दिन भी खतम हो गए।
और अंत में 'चोर की दाढ़ी में तिनका' देखना भी एकदम असंभव था।
और 'लार टपकना तो बिल्कुल बंद हो गया था'.. तो कुल जमा कहना यह है कि यह सब काम अब शुरू अब शुरू हो गए हैं.......