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योग दिवस पर एक शादीशुदा की कलम से निकली यह चुटीली रचना

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योग दिवस को मैं कुछ इस तरह से मना रहा हूं,
रात उसके पैर दबाए थे, अब पोंछा लगा रहा हूं।
 
धो रहा हूं बर्तन और बना रहा हूं चपाती,
मेरे ख्याल से यही होती है कपालभाति।
 
एक हाथ से पैसे देकर, दूजे हाथ में सामान ला रहा हूं मैं,
और इस प्रक्रिया को अनुलोम-विलोम बता रहा हूं मैं।
 
सुबह से ही मैं घर के सारे काम कर रहा हूं,
बस इसी तरह से यारों प्राणायाम कर रहा हूं।
 
मेरी सारी गलतियों की जालिम ऐसी सजा देती हैं,
योगों का महायोग अर्थात मुर्गा बना देती है।
 
हे मोदी, हे रामदेव अगर आप गृहस्थी बसाते,
तो हम योग दिवस नहीं, पत्नी दिवस मनाते।

साभार : सोशल मीडिया
 

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