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बालेन्दु दाधीच की किताब 'तकनीकी सुलझनें' का विमोचन

नए विचारों को अपनाकर ही बढ़ती हैं भाषाएं: जगेसर

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तकनीकविद् और वरिष्ठ पत्रकार बालेन्दु शर्मा दाधीच की नई पुस्तक 'तकनीकी सुलझनें' का 15 अप्रैल को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनैशनल सेंटर में लोकार्पण किया गया। भारत में मॉरीशस के उच्चायुक्त श्री आर्य कुमार जगेसर ने कई हिन्दी विद्वानों, वरिष्ठ पत्रकारों, तकनीक-विशेषज्ञों तथा हिन्दी प्रेमियों की मौजूदगी में पुस्तक का लोकार्पण किया।

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कार्यक्रम का आयोजन सोसायटी ऑफ इंडियन पब्लिशर्स, ऑथर्स एंड आर्टिस्ट्स (सिपा) की तरफ से किया गया था। तकनीकी सुलझनें में आम कंप्यूटर, स्मार्टफोन, इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग, प्राइवेसी, डेटा सुरक्षा आदि विषयों से जुड़ी समस्याओं को सरल, सुबोध भाषा में सुलझाने का प्रयास किया गया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता लोकप्रिय कवि अशोक चक्रधर ने की। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, कोशकार अरविंद कुमार, भाषा-तकनीक शास्त्री डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा आदि ने भी समारोह को संबोधित किया।

समारोह को संबोधित करते हुए श्री जगेसर ने कहा कि हिन्दी सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि मॉरीशस की भी एक प्रमुख भाषा है और हिन्दी का प्रयोग करने वाले सभी राष्ट्रों का दायित्व है कि वे इस भाषा के विकास और लोकप्रियता को बढ़ावा देने के लिए समन्वित कदम उठाएं। भाषाएं नए विषयों और नए विचारों को साथ लेकर चलती हैं, तभी बढ़ती हैं। इस तरह की किताबें भाषा को समृद्ध करने के साथ-साथ लोगों के बीच तकनीकी मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने में भी अहम योगदान देंगी। उन्होंने पुस्तक के लेखक बालेन्दु शर्मा दाधीच की सराहना करते हुए कहा कि श्री दाधीच ने भारत के साथ-साथ मॉरीशस की भी अनेक तकनीकी परियोजनाओं में योगदान दिया है और वे मॉरीशस के मित्र हैं।

उन्होंने वाणिज्य, शिक्षा, तकनीक आदि क्षेत्रों में मॉरीशस और भारत के संबंधों में निरंतर आ रही प्रगाढ़ता का भी जिक्र किया और कहा कि वे इन संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए प्रयासरत हैं। श्री जगेसर ने अपना भाषण हिन्दी में दिया और अपनी सरलता तथा गर्मजोशी की गहरी छाप छोड़ी।

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तकनीकविद् और भाषा शास्त्री डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने लेखक और पुस्तक का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि हिन्दी में तकनीक को लोकप्रिय बनाने में जिन लोगों ने अहम भूमिका निभाई है, उनमें बालेन्दु दाधीच का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। श्री दाधीच ने हिन्दी में अनेक सॉफ्टवेयर विकसित कर उन्हें निःशुल्क प्रयोग के लिए उपलब्ध कराया है, और सिद्ध किया है कि आप किसी भी क्षेत्र में रहते हुए देश, समाज और मातृभाषा के प्रति योगदान दे सकते हैं।

उन्होंने देश-विदेश में शिक्षकों, छात्रों तथा आम लोगों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए लेखक द्वारा समय-समय पर आयोजित की जाने वाली कार्यशालाओं की सराहना की। श्री दाधीच हाल ही में मॉरीशस में लगभग 500 हिन्दी शिक्षकों की कार्यशाला में उन्हें हिन्दी के तकनीकी अनुप्रयोगों में प्रशिक्षित कर लौटे हैं।

इस कार्यशाला का आयोजन मॉरीशस के शिक्षा विभाग तथा चार अन्य संस्थानों ने किया था। इससे पहले भी उन्होंने दक्षिण अफ्रीका तथा मॉरीशस में लगभग 500 व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया है। समारोह के दौरान प्रशिक्षण की गतिविधियों के चित्र भी दिखाए गए।

पुस्तक के लेखक बालेन्दु दाधीच ने कहा कि हिन्दी में तकनीकी विषयों पर बहुत कम लिखा जा रहा है हालांकि देश में करीब 90 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में (कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट आदि) तकनीक से जुड़े हैं। तकनीकी मुद्दों पर प्रामाणिक जानकारी का अभाव इस बड़ी आबादी को तकनीकी सुविधाओं का अधिकतम लाभ उठाने से वंचित कर देता है।

उन्होंने कहा कि अपने आसपास की दुनिया में तकनीकी माध्यमों के प्रति जागरूकता के अभाव ने उन्हें यह पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया। पुस्तक को आम कंप्यूटर, इंटरनेट, स्मार्टफोन तथा मोबाइल उपभोक्ताओं की समस्याओं को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इसीलिए इसकी भाषा गूढ़ तकनीकी भाषा न होते हुए सरल है।

पुस्तक में 30 अध्याय हैं जो कंप्यूटर उपयोक्ताओं की तीस बड़ी समस्याओं तथा जिज्ञासाओं का समाधान करते हैं। पुस्तक को रोचक बनाने के लिए इसे प्रश्नोत्तर शैली में लिखा गया है।

हर अध्याय किसी न किसी कंप्यूटर उपयोक्ता के एक सवाल से शुरू होता है और उसका जवाब देते हुए न सिर्फ समस्या का समाधान प्रस्तुत किया जाता है बल्कि उसके विभिन्न पहलुओं का अन्वेषण भी किया जाता है। इसी तरह अनौपचारिक ढंग से पाठक को तकनीक की बुनियादी अवधारणाओं की जानकारी दे दी जाती है।

उन्होंने बताया कि पुस्तक में ऑनलाइन सुरक्षा, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, साइबर क्राइम, रिमोट एक्सेस, प्राइवेसी, मोबाइल युक्तियाँ, कंप्यूटर सुरक्षा, डेटा एक्सेस, सर्च तकनीक, लाभप्रद इंटरनेट, कंप्यूटर नेटवर्किंग, हार्डवेयर, संचार, इंटरनेट कनेक्टिविटी, सोशल नेटवर्किंग, कंप्यूटर उपभोक्ता आदि से जुड़े हुए मुद्दे उठाए गए हैं।

वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि बालेन्दु ने अपने काम से तकनीकी क्षेत्र में विविधतापूर्ण कार्यों से अपनी अलग पहचान बनाई है, हालांकि बुनियादी रूप से वे पत्रकार हैं।

उन्होंने कहा कि कई बार मैं सोचता हूं कि यदि उन्होंने लगभग 25-30 साल पहले तकनीक का काम शुरू किया होता और उनके पास सभी जरूरी संसाधन होते तो वे हिन्दी के लिए कितना कुछ कर सकते थे। 'तकनीकी सुलझनें' का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह की किताबों के लिखे जाने की बहुत अधिक जरूरत है।

वास्तव में हिन्दी में साहित्य तो बहुत लिखा गया है और लिखा जा रहा है लेकिन साहित्येतर क्षेत्रों पर न्यूनतम सामग्री उपलब्ध है। तकनीक में तो स्थिति और भी विकट है। संवाद के विषय (हिन्दी और तकनीकी जागरूकता) का जिक्र करते हुए राहुल देव ने कहा कि हिन्दी की अपेक्षा तमिल जैसी भाषाओं में लोग तकनीक के प्रति पारंपरिक रूप से अधिक जागरूक दिखाई देते हैं। हिन्दी को अन्य भाषाओं से प्रेरणा लेते हुए तकनीकी विकास और प्रयोग को गति देनी चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि और तकनीक-प्रेमी प्रो. अशोक चक्रधर ने की। उन्होंने कहा कि तकनीक जैसी जटिल चीज़ को सीधी सरल भाषा में लिखना एक बड़ी चुनौती है, जिसे लेखक ने बखूबी हल किया है। फेसबुक और इंटरनेट की अद्भुत लोकप्रियता के दौर में तकनीक को हिन्दी में लेखन के महत्वपूर्ण विषय के रूप में लिया जाना ज़रूरी है।

'तकनीकी सुलझनें' को एक शुरूआत के रूप में देखा जाना चाहिए। अन्य लेखकों तथा विशेषज्ञों को भी ऐसी किताबें लिखने के लिए आगे आना चाहिए। चक्रधर ने बालेन्दु के संकल्प की प्रशंसा की और कहा कि जब सब इधर-उधर हो जाते हैं तब भी यह शख्स अपने काम में डटा रहता है। इसी जज्बे से परिणाम निकलते हैं।

उन्होंने पुस्तक के अनेक अध्यायों का सिलसिलेवार जिक्र किया और बताया कि यह किताब हिन्दी में तकनीक के एक उपयोगी प्राइमर के समान है, जो हर व्यक्ति के पास होना चाहिए। चक्रधर ने कहा कि जानकारी का प्रसार करने वाली इस तरह की किताबों को सिर्फ पढ़ने के लिए ही नहीं बल्कि दूसरों को भेंट करने के लिए भी खरीदा जाना चाहिए।

वरिष्ठ वैज्ञानिक और तकनीकविद् प्रो. ओम विकास ने अपने संदेश में कहा कि बालेन्दु शर्मा दाधीच की “तकनीकी सुलझनें” लोकभाषा हिन्दी में लिखी गई सरल, सुबोध और उपयोगी किताब है। दैनन्दिन समस्याओं पर आधारित अध्यायों में गागर में सागर समाया है। उन्होंने कहा कि पुस्तक के हर अध्याय का आरम्भ एक उलझन की व्यथा कथा से होता है, और अंत समाधान से।

साइबर सुरक्षा, डेटा संचार, इंटरनेट कनेक्टिविटी, सोशल नेटवर्किंग, रिमोट डेटा एक्सेस आदि विषयों पर व्यथा-समाधान मुहैया कराए गए हैं। यह पुस्तक सद्य टैक्नोलोजी प्रयोक्ता सामान्य जन के लिए तथा स्कूल, आईटीआई स्तर पर आईटी प्राइमर की तरह बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। लेखक के काम की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में डिजिटल चेतना प्रवर्तन में बालेन्दु का योगदान महत्त्वपूर्ण होगा।

कार्यक्रम को हिन्दी के प्रसिद्ध कोशकार तथा समांतर कोश के सर्जक श्री अरविंद कुमार ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि हिन्दी में बहुमुखी भाषायी युक्तियों के विकास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए इंटरनेट जैसे संसाधनों का प्रयोग बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। सिपा तथा हिंद पॉकेट बुक्स के प्रमुख श्री शेखर मल्होत्रा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने हिन्दी साहित्य तथा साहित्येतर पुस्तकों तथा पढ़ने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए अपने संगठन की ओर से उठाए जाने वाले कदमों का विवरण दिया।

कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख लोगों में डॉ. नरेंद्र कोहली, अरविंद कुमार, विमलेश कांति वर्मा, सुनीति शर्मा, बीएल गौड़, प्रो. जगन्नाथन, अनुपमा झा, अनिल जोशी, विनोद संदलेश, वर्तिका नंदा, भावना सक्सेना, मीता लाल, धीरा वर्मा, राजमणि, राकेश पांडेय, राजेश मित्तल, निवेदिता मिश्रा झा, सरोज श्रीवास्तव, उमेश चतुर्वेदी, अन्नू आनंद, अविनाश वाचस्पति, मनोहर नायक, ललिता खुराना, अखिल मित्तल, शशि प्रभा तिवारी, रूही सिंह, पुष्कर पुष्प, रास विहारी, चंद्रमोहन रावल, सरोज श्रीवास्तव, राजीव तनेजा आदि शामिल थे। संचालन डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने किया।

और अंत में... हिन्दी की किताबों के बारे में कहा जाता है कि वे बिकती नहीं। पाठकों ने लोकार्पण समारोह के बाद 'तकनीकी सुलझनें' की 140 प्रतियां मौके पर ही खरीद लीं।

पुस्तक कैसे मिलेगी: पुस्तक मंगवाने के लिए कृपया Eprakashak,. 504, Park Royal, GH-80, Sector-56, Gurgaon-122 011 के पते पर 235 रुपए (मय डाक खर्च, विशेष छूट के तहत) का चेक या ड्राफ्ट BALENDU DADHICH के नाम से भिजवा दें। साथ ही अपना डाक का पता भी भिजवा दें।

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