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भगत सिंह की फांसी पर तत्कालीन प्रतिक्रिया

23 मार्च : बलिदान दिवस पर विशेष

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भगत सिंह का बलिदान दिवस आज भी हमारे रोंगटे खड़े कर देता है। इतने बरसों बाद भी देश का क्रांतिकारी नेता भगत सिंह भारतीय युवाओं के लिए आदर्श और सम्माननीय बना हुआ है। उनके कर्मों की सच्चाई ने उन्हें आज भी हमारे मानस में जिंदा रखा है। जिस दिन भगत‍ सिंह को वक्त से पूर्व फांसी दी गई थी, देश भर से उबलती हुई प्रतिक्रियाएं आई थी। पेश है कुछ प्रमुख प्रतिक्रियाएं--


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ब्रितानिया हुकूमत द्वारा भगत सिंह को तय वक्त से एक रात पहले ही फांसी दे दिए जाने पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तीखी प्रतिक्रिया की व्यक्त की थी।

बोस ने कहा था, 'यह अत्यंत दुखद और आश्चर्यजनक है कि जब हम 24 मार्च 1931 को कोलकाता से कराची जा रहे थे तो रास्ते में हमें सरदार भगत सिंह और उनके कामरेडों को तय वक्त से एक रात पहले ही फांसी पर लटका दिए जाने का समाचार मिला..इससे पूरे देश में शोक का माहौल है। भगत सिंह एक नई लहर के रूप में युवाओं का आदर्श बन चुका है।'

शहीद-ए-आजम के जीवन पर केसी यादव और भगत सिंह के भतीजे दिवंगत बाबर सिंह संधु द्वारा संपादित किताब 'मैं नास्तिक क्यों हूं’ में भगत सिंह की फांसी पर उस समय के नेताओं की प्रतिक्रियाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है।

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जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, 'हम सब उसे नहीं बचा सके जो हमें अत्यंत प्रिय था। उसका साहस और बलिदान भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है। भारत अपने प्रिय बच्चों को फांसी के फंदे से नहीं बचा सका।' उन्होंने कहा था कि अब पूरे देश में शोक मनाया जाएगा, हड़तालें होंगी और हर जगह मातमी जुलूस निकाले जाएंगे।

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सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा था कि ब्रिटिश कानून के मुताबिक साक्ष्यों को जिरह के आधार पर जांचे परखे बिना किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इन लोगों के मामले में यह अन्याय हुआ और उन्हें लटका कर मार दिया गया। उन्हें ऐसे साक्ष्यों के आधार पर फांसी दी गई जो घटना के काफी समय बाद सामने आए और इन पर जिरह भी नहीं कराई गई। अदालत मदद के लिए वकील नियुक्त कर सकती थी, लेकिन कुछ नहीं किया गया और लोगों को मौत दे दी गई ।

बंगाल लेजिस्लेटिव असेंबली में जलालुद्दीन हाशमी ने कहा था कि यदि भगत सिंह और उसके साथियों की फांसी लोगों के दिलों में खौफ भरने के लिए है तो मैं कहना चाहूंगा कि सरकार इसमें पूरी तरह विफल रही है। जहां तक मैं बंगाली लोगों की मानसिकता को समझता हूं तो उनमें से एक बड़ा तबका इस घटना के बाद अहिंसा के रास्ते से हट जाएगा।

नेशनल प्रेस ने कहा था कि भगत सिंह आज हजारों लोगों के लिए शहीद है और वह इसका हकदार भी है। हाल के दिनों में किसी को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिली जितनी कि भगत सिंह को । वह पहले ही एक किंवदंती बन चुका है।

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी भगत सिंह की काफी सराहना की थी, लेकिन उनके मार्ग को गलत बताया था। गांधी जी ने कहा था, 'मैंने किसी की जिंदगी को लेकर इतना रोमांच नहीं देखा जितना कि भगत सिंह के बारे में। हालांकि मैंने लाहौर में उसे एक छात्र के रूप में कई बार देखा है, मुझे भगत सिंह की विशेषताएं याद नहीं हैं, लेकिन पिछले एक महीने में भगत सिंह की देशभक्ति, उसके साहस और भारतीय मानवता के लिए उसके प्रेम की कहानी सुनना मेरे लिए गौरव की बात है।’ लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि 'मैं देश के युवाओं को आगाह करता हूं कि वे उनके उदाहरण के रूप में हिंसा का अनुकरण नहीं करें।

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 की सुबह फांसी दी जानी थी, लेकिन ब्रितानिया हुकूमत ने नियमों का उल्लंघन कर एक रात पहले ही 23 मार्च की शाम करीब सात बजे तीनों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था।

भगत सिंह जेल में भूख हड़ताल के दौरान इतने प्रसिद्ध हो गए थे कि 30 जून 1929 को पूरे देश में भगत सिंह दिवस मनाया गया था। (भाषा)

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