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भारतेंदु हरिश्चंद्र वार के अनुसार करते थे कागज का प्रयोग

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सा‍हित्य लेखन को प्रभावित करता है ज्योतिष जानिए कैसे

साहित्यकार, पत्रकार, कवि और नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्रजी का ज्योतिष पर पूर्ण विश्वास था। उनके द्वारा लिखी जाने वाली रचनाओं का कागज वार के अनुसार होता था। चाहे जो हो, वे इसे साहित्यिक ज्योतिष कहा करते थे।


 
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भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी रचनाओं व पत्रों को लिखने के लिए सात वारों के लिए सात तरह के कागजों की व्यवस्था रखते थे, साथ ही वे यह भी निश्चित कर रखते कि किस वार को कौन से कागज पर सर्वप्रथम क्या लिखा जाए।

कहते हैं कागज का रंग व प्रारंभ का काव्यात्मक अंश देख व पढ़कर पत्र वाचक यह जान लेता था कि हरिशचंद्र ने यह पत्र किस दिन लिखा था। इस रहस्य को जानने का उनके साहित्यिक मित्रों ने प्रयास किया तब कहीं बड़ी कठिनाई से उन्होंने इसका रहस्य बताते हुए यह कहा कि सरस्वती की उपासना करने वालों को मां की इच्छा का ध्यान रखते हुए कागज के रंगों का निर्धारण वार के अनुसार करना चाहिए।

हरिशचंद्र किस वार पर कौन सा कागज व कौन सी काव्य प्रस्तुति दिया करते थे, आइए जानते हैं--

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रविवार-

इस दिन गुलाबी रंग के कागज का उपयोग करते हुए सर्वप्रथम वे इस प्रकार लिखा करते थे।

श्री भक्त कमल दिवाकराय नम:

मित्र पत्र बिनुहिय लहत-छिनहुं नहीं विश्राम

प्रफुलित होत्त न कमल जिमि- बिनु रवि उदय ललाम।


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सोमवार-

इस दिन वे सफेद कागज पर लिखते तथा यूं प्रारंभ करते-

'श्री कृष्ण चंद्राय नम:'

या ससिकुल कैरव सोमजय

कलानाथ द्विज राज।

बंधुन के पत्रहि कहत अर्ध मिलन सब कोय

आपहु उत्तर देहु तो पूरौ मिलनो होय।


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मंगलवार-

इस दिन वे लाल कागज का उपयोग करते तथा पत्रारंभ कुछ यूं करते-

श्री वृंदावन सार्व भौमाय नम:

मंगलं भगवान विष्णु', मंगलंगरुड़ध्वज:

मंगलं पुंडरीकाक्षं मंगलान: हरि:।


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बुधवार-

इस दिन वे हरे कागज का उपयोग करते व यूं लिखते-

श्री गुरुगोविंदाय नम:।

बुधजन दर्पण में लखत दृष्ट वस्तु को चित्र।

मन अनदेखी वस्तु को यह प्रतिबिंब विचित्र।


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गुरुवार-

इस दिन वे पीले कागज का उपयोग करते व प्रारंभ इस प्रकार से करते-

श्री गुरुगोविंदाय नम:।

आशा अमृत पात्र प्रिय-विरहातप हित छत्र

वचन चित्र अवलंबप्रद- कारज साधक पत्र।


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शुक्रवार-

इस दिन वे पु‍न: सफेद कागज का उपयोग करते व प्रारंभ कुछ इस तरह से करते-

'श्री ‍कवि कीर्ति यज्ञसे नम:

दूर रखत कर लेत आवरन हरत रखि पास,

जानत अंतर भेद जिय पत्र पथिक इस रास।'


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शनिवार-

इस दिन वे नीले रंग के कागज का उपयोग करते व प्रारंभ में यह लिखते-

'श्री श्याम- श्यामाभ्यां नम:। श्रीकृष्णायम नम:

काज सनि लिखन में होइन लेखनी मंद,

मिले पत्र उत्तर अवसि यह बिनवत हरिचंद्र।

पत्र की समाप्ति पर वे प्राय: यह भी लिखा करते थे,

बंधुन के पत्राहि कहत अर्थ मिलन सबकोय आपहु उत्तर देहु तौ पूरौ मिलनो होय।


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