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श्री भक्त कमल दिवाकराय नम:
मित्र पत्र बिनुहिय लहत-छिनहुं नहीं विश्राम
प्रफुलित होत्त न कमल जिमि- बिनु रवि उदय ललाम।
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'श्री कृष्ण चंद्राय नम:'
या ससिकुल कैरव सोमजय
कलानाथ द्विज राज।
बंधुन के पत्रहि कहत अर्ध मिलन सब कोय
आपहु उत्तर देहु तो पूरौ मिलनो होय।
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श्री वृंदावन सार्व भौमाय नम:
मंगलं भगवान विष्णु', मंगलंगरुड़ध्वज: ।
मंगलं पुंडरीकाक्षं मंगलाय तन: हरि:।
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श्री गुरुगोविंदाय नम:।
बुधजन दर्पण में लखत दृष्ट वस्तु को चित्र।
मन अनदेखी वस्तु को यह प्रतिबिंब विचित्र।
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श्री गुरुगोविंदाय नम:।
आशा अमृत पात्र प्रिय-विरहातप हित छत्र
वचन चित्र अवलंबप्रद- कारज साधक पत्र।
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'श्री कवि कीर्ति यज्ञसे नम:
दूर रखत कर लेत आवरन हरत रखि पास,
जानत अंतर भेद जिय पत्र पथिक इस रास।'
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'श्री श्याम- श्यामाभ्यां नम:। श्रीकृष्णायम नम:
काज सनि लिखन में होइन लेखनी मंद,
मिले पत्र उत्तर अवसि यह बिनवत हरिचंद्र।
पत्र की समाप्ति पर वे प्राय: यह भी लिखा करते थे,
बंधुन के पत्राहि कहत अर्थ मिलन सबकोय आपहु उत्तर देहु तौ पूरौ मिलनो होय।