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भाजपा कार्यकारिणी ने अभी से 2019 तक का चुनावी एजेंडा दिया

हमें फॉलो करें भाजपा कार्यकारिणी ने अभी से 2019 तक का चुनावी एजेंडा दिया
अवधेश कुमार
देश की राजधानी में आयोजित भाजपा की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उस रुप में सुर्खियां नहीं पाई जैसी आम तौर पर पाती रहीं हैं। हालांकि परिणतियों की दृष्टि से देखा जाए तो इसका महत्व कई मायनों में है। आगामी पांच विधानसभा चुनावों के पहले तथा नोटों की वापसी के बाद संपन्न इस पहली कार्यकारिणी की ओर देश भर का ध्यान होना चाहिए। इसने न केवल विधानसभा चुनावों के लिए अपने मुद्दे स्पष्ट किए, बल्कि अभी से 2019 लोकसभा चुनाव के संदर्भ में रणनीतियों पर भी गहन विचार-विमर्श कर कार्यक्रम तय किए। नोट वापसी के विरुद्ध विपक्ष के संघर्ष में सीधा मुकाबला का संदेश दिया तो जनता को हुए कष्टों को देशभक्ति की पंरपरागत मरहम से सहलाया भी। वास्तव में स्वयं भाजपा के अलावा विपक्ष एवं देश दोनों के लिए भाजपा की इस कार्यकारिणी पर मंथन आवश्यक है। आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अध्यक्ष अमित शाह सहित प्रमुख नेताओं के भाषणों के जो अंश सामने आए, जो प्रस्ताव पारित हुए उन्हीं के आधार पर तो हम सत्तारुढ़ दल की रीति-नीति को समझ सकेंगे 
 
इसमें दो राय नहीं कि इस कार्यकारिणी में बहुत कुछ वही हुआ जो अपेक्षित था। मसलन, उन्हें सर्जिकल स्ट्राइक को जोरशोर से उठाना ही था, नोटवापसी के कदम को सही ठहराना ही था, इसके लिए सरकार की पीठ थपथपानी ही थी, इसके विरोध के लिए विपक्ष की आलोचना करनी ही थी, भ्रष्टाचार के विरुद्व संघर्ष के प्रधानमंत्री के लगातार आह्वान पर सहमति की मुहर लगानी ही थी.....और सबसे बढ़कर चुनाव के पूर्व यह बताना ही था कि इन सब कारणों से जनता के बीच भाजपा के पक्ष में अनुकूल माहौल है। भाजपा के नेता और सरकार के मंत्री अपने बयानों में भी यह सारी बातें करते रहे हैं। बावजूद इसके कार्यकारिणी की ध्वनि से साफ हो गया कि पार्टी नोट वापसी सहित जुड़े मुद्दों पर विपक्ष के साथ दो-दो हाथ करने को तैयार हो गई है। नोटवापसी को मोदी और अमित शाह दोनों ने अपने भाषण में विस्तार से शामिल किया तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके आर्थिक व वित्तीय लाभ की बात की। जितने विस्तार से इस पर प्रस्ताव पारित किया गया है उससे साफ लगता है कि अगर विपक्ष इसको मुद्दा बना रहा है तो भाजपा स्वयं इसे बड़े मुद्दे के तौर पर पेश करेगी। उसका स्वर विपक्ष के खिलाफ होगा। प्रस्ताव में एक जगह कहा गया है कि इस अभियान में एक ओर देश का जनमानस जहां उत्साह एवं सकारात्मक उर्जा के साथ, देश को लंबे कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए थोड़ी तकलीफ सहकर भी पुननिर्माण के संकल्प के लिए खड़ा रहा था वहीं कई विपक्षी दलों के नकारात्मक प्रचार के द्वारा माहौल को खराब करने की कोशिश की गई, जिसको जनता ने पूरी तरह से नकार दिया। 
 
विपक्ष ने जनता का ध्यान मुद्दों से भटकाने की पूरी कोशिश की, असफल साबित हुई। इसमें आगे कहा गया है कि पार्टी का यह मानना है कि विमुद्रीकरण और डिजिटल अर्थव्यवथा पर उसकी नीतियों एवं उनके कुशल क्रियान्वयन से हम विकसित भारत के लक्ष्यों को पूरा करेंगे। डिजिटल अर्थव्यवस्था, पारदर्शी शासन एवं कुशल नेतृत्व तथा जनता से संवाद के सेतु के रूप में पार्टी कार्यकर्ताओं को पार्टी के विचारों को समाज के सभी वर्गों तक ले जाना चाहिए। हालांकि भाजपा कार्यकर्ता कहां तक इन विचारों को समाज तक ले जाएंगे, किस तरह उन्हें समझाएंगे यह कहना कठिन है, लेकिन पार्टी ने प्रस्ताव पारित किया है तो यह नीचे से उपर तक की ईकाई के लिए एक कार्यक्रम हो गया। इसका मूल स्वर एक ही है- विपक्ष के हमले का जनता के बीच जाकर जवाब। 
 
यह अपने आपमें महत्वपूर्ण है और विपक्ष को सोचना होगा कि भाजपा के इस महाप्रचार अभियान का सामने कैसे करें। वैसे कार्यकारिणी का संदेश यही तक सीमित नहीं था। ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर भाजपा ने अधिकृत मत व्यक्त कर दिया है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश मे पारदर्शिता की संस्कृति बढ़ रही है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और चुनाव आयोग की ओर से भी बातें उठी हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह खुद भी सहमत है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे मे पारदर्शिता होनी चाहिए। अगर सभी दलों की सहमति बने तो भाजपा अगुवाई करने के लिए तैयार है। सभी दल मिलकर इस पर सहमति बनाएं। ये बयान राजनीतिक दलों के चंदे में पारदर्शिता लाने के संदर्भ में है। हालांकि प्रधानमंत्री ने पहले भी चुनाव आयोग द्वारा 2000 रुपया से ज्यादा के चंदे का हिंसाब रखने के प्रस्ताव पर मुरादाबाद की सभा में सहमति दर्शायी थी। किंतु कार्यकारिणी मंे इसे रखने का मतलब यह पार्टी और सरकार का अधिकृत मत हो गया। यानी सरकार इस दिशा में पहल करेगी तथा पार्टी उसके अनुसार काम करेगी। हालांकि यह आसान नहीं है। कारण, पारदर्शिता की बात सभी करते हैं, कालाधन के अंत का सभी समर्थन देते हैं, पर जब निर्णय की बात आती है तो राजनीतिक दल व्यावहारिकता का तर्क देकर स्वयं को बचा लेेते हैं। भाजपा भी इसमें शामिल रही है। इसलिए इस पर तत्काल सहमति की संभावना नहीं दिखाई देती, किंतु भाजपा एवं सरकार यह तर्क देगी कि हम तो चाहते हैं, लेकिन शेष दल ही इसके लिए तैयार नहीं। 
 
जाहिर है, भाजपा विरोधी दलों को उसकी इस रणनीति की काट तलाशनी होगी। कारण,यह इस समय से लेकर 2019 तक के सारे चुनाव में भाजपा की ध्वनि होगी। तो आपको जवाब तो देना होगा। तीसरे, मोदी ने जिस तरह गरीब और गरीबी पर संवेदना जगाने वाला भाषण दिया वह भी विपक्षी दलों के लिए चुनौती है। विपक्षी दलों का आरोप है कि मोदी सरकार केवल बड़े लोगों का हित साधती है और नोटवापसी भी वैसा ही कदम था। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीब हमारे लिए चुनाव जीतने का जरिया नहीं हैं, वोट बैंक नहीं है। गरीब हमारे लिए सेवा का अवसर हैं। मैं गरीबी में जन्मा हूं और मैंने गरीबी को जिया है। गरीब की सेवा प्रभु की सेवा का काम है और यही संकल्प लेकर हमारी सरकार काम कर रही है। हमारी सरकार गरीब और वंचितों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने पर काम कर रही है और आगे भी करेगी। आज से साढे चार दशक पूर्व इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। मोदी ने ऐसा कोई नारा तो नहीं दिया, लेकिन रणनीति के तौर पर उसी प्रकार की बातें कहीं। यही नहीं उन्होंने यह कार्यक्रम दिया कि भाजपा के कार्यकर्ता उनके बीच जाकर बताएं कि सरकार ने गरीबों के लिए क्या काम किया है। इसके लिए योजनाएं पहले से बनी हुई है कि सरकारी कार्यक्रमों को लेकर कार्यकर्ताओं की टोली किस तरह जाएगी और क्या कहेगी। लेकिन यहां भी भाजपा के प्रचार का सामना तो विपक्ष को करना होगा। 
 
इस कार्यकारिणी का एक महत्वपूर्ण संदेश रहा अभी से विधानसभा चुनावों के साथ अगले लोकसभा चुनाव के लिए काम करना। पार्टी ने तय किया कि जिन सीटों पर भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं की थी, वहां अभी से कार्यकर्ताओं की टीम काम करेगी। विधानसभा चुनाव के लिए तो कार्यकर्ताओं की टीम तैयार की ही गई है। दरअसल दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती वर्ष में यह फैसला किया गया कि कार्यकर्ता पार्टी के लिए समय दान करें। योजना के अनुसार अपना समय दान देने वाले एक लाख 60 हजार कार्यकर्ताओं को न्यूनतम 15 दिन से एक साल तक का समय देना होगा। ये कार्यकर्ता संबंधित मतदान केन्द्र के क्षेत्र में 15 दिन तक नियमित तौर पर काम करेंगे और मोदी सरकार की योजनाओं को जनता के बीच रखेंगे। इसके अलावा 6 महीने का समय दान देने वाले कार्यकर्ताओं को उन क्षेत्रों में भेजा जाएगा, जहां भाजपा का आधार ज्यादा कमजोर है। यानी ऐसे राज्य, जहां भाजपा को मजबूत नहीं माना जाता। ऐसे राज्यों में जाकर ये 2 हजार कार्यकर्ता 6 महीने तक रहेंगे और वहां की परिस्थितियों को देखते हुए पार्टी के लिए कार्य करेंगे। एक वर्ष तक का समय देने वाले कार्यकर्ता उन निर्वाचन क्षेत्रों में तैनात होंगे, जहां पिछले लोकसभा चुनाव के समय भाजपा या उनके सहयोगी दल लड़ाई में थे पर पराजित हो गए। इन कार्यकर्ताओं से कहा जाएगा कि वह एक साल तक उन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में रहकर काम करें।  
 
हम यह नहीं कहते कि भाजपा ने जो तय किया है वह सब धरती पर उसी रुप में क्रियान्वित भी हो जाएगा, पर जरा सोचिए, किस पार्टी ने अभी से 2019 के लिए इतनी व्यापक कार्ययोजनाएं बनाई है। तो जिस कार्यकारिणी ने इतनी व्यापक योजना को सामने रखा है उसका महत्व कितना ज्यादा है यह शायद अब बताने की आवश्यकता नहीं।

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