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मैं क्यों लिखता हूं- सआदत हसन मंटो के निबंध

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, सोमवार, 30 जून 2014 (16:52 IST)
उर्दू के जाने-माने अफसानानिगार सआदत हसन मंटो का बाजार में आया एक ताजा निबंध संग्रह उनकी इस खूबी को बयां करता है कि कैसे वे जिंदगी की सबसे उबाऊ और नाकाबिलेगौर बातों पर भी बखूबी लिख सकते थे।

 
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उन्होंने अपने निबंधों में न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के दु:ख को बल्कि एक कब्रिस्तान और सिगरेटों से साथ समय की बर्बादी करने को अपना विषय बनाया है और और तो और एक फिल्म क्रू को जिसमें रंग-बिरंगे कपड़ों में दिखने वाले लोग हैं और जो किसी पौराणिक कथा के चरित्रों की तरह सजीले दिखते हैं, पर भी लेखनी चलाई है।

व्हाय आई राइट : एसेस बाय सआदत हसन मंटो’ (मैं क्यों लिखता हूं- सआदत हसन मंटो के निबंध) नाम की इस किताब का अनुवाद पत्रकार-लेखक आकार पटेल ने किया है और इसे ट्रांक्यूबार प्रेस ने प्रकाशित किया है।

मंटो के बारे में पटेल ने कहा कि वे जिन्होंने उन्हें उनके मौलिक रूप में पढ़ा है या जिन्होंने नसीरुद्दीन शाह के दल द्वारा सुंदर ढंग से कही गई उनकी कहानियों को सुना है, वे जानते हैं कि मंटो की भाषा कितनी आसान है और बिलकुल बॉलीवुड की तरह सीधी-सरल हिन्दुस्तानी है और इन मायनों में उनके लेखन का अनुवाद करना काफी आसान ही था।

पटेल ने कहा कि इस संग्रह में शामिल अधिकतर निबंध अखबारों के लिए लिखे गए थे सिवाय एक-दो को छोड़कर और मेरे ख्याल में इससे पहले उनका कभी अनुवाद नहीं किया गया।

मैंने बस उनकी काट-छांट करके दुबारा पेश किया है। संग्रह का शुरुआती लेख ‘मैं क्यों लिखता हूं’ में मंटो लगभग सभी लेखकों की ओर से जवाब देते प्रतीत होते हैं। (भाषा)

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