- अथर्व पंवार
संगीत को ईश्वर की भक्ति और स्तुति करने का एक उचित मार्ग बताया है। अतः इसलिए ही संगीत को एक साधना मार्ग बताया है। संगीत की साधना से आध्यात्मिक स्तर की भी वृद्धि होती है। ऐसे कई कलाकार हैं जिन्हें अपनी साधना के कारण उस सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति हुई है। इसी में एक नाम है प्रख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान।
पत्रकार मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के जीवन पर एक पुस्तक लिखी है जिसमें उनके साक्षात्कारों के दौरान हुई चर्चाओं का भी उल्लेख है। एक साक्षात्कार में बिस्मिल्लाह खान साहब ने कहा है कि वह काशी स्थित बालाजी के मंदिर में प्रातः 4 बजे शहनाई बजाने जाते थे। वह उस समय युवा अवस्था में थे। एक दिन जब वह वहां शहनाई वादन कर रहे थे तो वह संगीत साधना में पूर्ण रूप से रम गए। तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति उनके सामने आया। उसने उजली धोती-कुरता पहने थे और बाल भी उजले ही थे। इन्हे देखकर वह बुरी तरह डर गए थे। कारण यह था कि मंदिर का पुजारी सुबह 6 बजे आता था, और 4 बजे जब दूर-दूर तक कोई नहीं है, और सभी द्वार बंद है तो यह आकृति यहां कैसे आ गई ?, साथमें इतना तेजस्वी चेहरा उन्होंने कभी नहीं देखा था। यह देख कर उनकी शाहनाई शांत हो गई थी। उस चरित्र ने बिस्मिल्लाह खान साहब से कहा कि "बजाओ, और बजाओ, बहुत आगे जाओगे, पर इस घटना के बारे में किसी से भी बाहर मत कहना।" जब यह प्रसंग वह साक्षात्कार में बता रहे थे जब भी उनके रौंगटे खड़े हो गए थे।
आज भी काशी में कहा जाता है कि बिस्मिल्लाह खान साहब को साक्षात् बाबा (महादेव) या उनके अवतार स्वयं हनुमान जी ने दर्शन दिए थे। यह प्रसंग शास्त्रीय संगीत की दुनिया में लगभग सभी ने एक न एक बार तो सुना ही होगा। इसीलिए ही संगीत के विद्यार्थी मंदिरों और ऐसे पवित्र स्थलों पर रियाज करके अपनी हाजिरी लगते हैं। हरिवल्लभ समारोह, संकट मोचन मंदिर संगीत समारोह, अखिल भारतीय शनैश्चर जयंती समारोह इत्यादि ऐसे देवस्थान है जो संगीत समारोह आयोजित करवाते हैं और कलाकार अपनी उपस्थिति दर्ज करने की यहां तीव्र इच्छा रखते है, जिससे अपनी संगीत साधना के कारण वह भी ईश्वर दर्शन की अनुभूति ले पाए।