Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पुस्तक परिचर्चा : वोटर माता की जय!

हमें फॉलो करें पुस्तक परिचर्चा : वोटर माता की जय!
पुस्तक-परिचय : ‘वोटर माता की जय!’ बिहार की महिला समाज की ऐसी कथा है जिसमें पूरे बिहार की पृष्ठभूमि की झलक नजर आती है। पुस्तक की भाषा में बिहारी लहजा रोचकता और पठनीयता को एक नई पहचान देता है। यह किताब बिहार की राजनीति में महिलाओं की भूमिका को दर्शाता एक ऐसा प्रयास है जिसमें बिहार की महिलाओं की जागरूकता का प्रमाण मिलता है। किताब यह संदेश देती है की बिहार के वोटर खासकर महिला वोटरों की आवाज को कोई नहीं दबा सकता। ‘वोटर माता की जय’ बिहार के चुनावी संघर्ष की कहानी है।

लेखिका का परिचय : ‘वोटर माता की जय’ की लेखिका प्रतिष्ठा सिंह ने इटेलियन भाषा में शोध किया है। और दिल्ली विश्वविद्यालय में इटेलियन पढ़ाती हैं। कभी अवसर मिलता है, तो कविताएं और कहानियां लिखती है !
 
परिचर्चा का आरंभ प्रतिष्ठा सिंह के स्वागत के साथ हुआ। जयंती रंगनाथन ने पुस्तक का लोकार्पण किया। प्रतिष्ठा सिंह ने कहा कि इस पुस्तक की यात्रा सन 2015 में आरंभ हुई थी। तब मैंने सोचा भी नहीं था कि यह यात्रा इतनी सफल होगी। अपनी यात्रा के दौरान मैंने पाया कि मतदाताओं के ऊपर हुए अत्याचार को किसी ने नहीं देखा, सबने उसे नकार दिया, जिसका परिणाम चुनावों में देखने को मिला। बिहार की महिलाओं ने शराब बंदी के खिलाफ एक साथ मोर्चा खोला जिसे नीतीश कुमार ने लपक लिया। और वही बिहार की महिलाओं के लिए ‘वोटर माता की जय’ के समान बन गया। बिहार की राजनीति पूरी तरह जाति आधारित नहीं है। आगे उन्होंने कहा कि बिहारियों की एक कमी यह है कि वे अपनी जाति छुपाते हैं, और इसी कमी के कारण बिहार उतना विकसित नहीं हो पाया जितना उसे होना चाहिए था।
  
प्रतिष्ठा जी ने बताया कि पूरी यात्रा के दौरान मुझे बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जैसे कई बार शौचालय की कमी, कभी रहने के लिए जगह की कमी, तो कई बार सड़कें ही इतनी जर्जर थीं कि आने जाने के लिए साधन ही नहीं थे, जिस कारण पैदल ही जाना पड़ता था। अपनी इस यात्रा के दौरान मैंने वहां की जीवन शैली को करीब से देखा और समझा जिसे मैंने इस किताब में कायम रखने की  कोशिश भी की है। बिहार के कई इलाके ऐसे थे जहां लोगों के पास खाने और रहने का कोई साधन उपलब्ध नहीं था। लेखिका ने कहा की बिहार कि ब्राह्मण महिलाएं हीन भावना के साथ रहती हैं। वह कोई भी ऐसा काम, जो गंदगी से जुड़ा हो, करने में अपनी तौहीन समझती हैं। इसी कमी को बिहार की महिलाओं को दूर करना था। मैं समझती हूं कि इन बिहार चुनावों में यह समस्या बहुत हद तक कम भी होती नज़र आयी। इस किताब में बिहार की शब्दावली पर विशेष ध्यान दिया गया है जो इसका मुख्य हिस्सा है और पाठकों द्वारा बहुत सराहा भी गया है। 
 
श्रोताओं ने पुस्तक से जुड़े कुछ प्रश्न भी किए जिनके उत्तर लेखिका ने सरलता के साथ दिये। परिचर्चा के अंत में जयंती रंगनाथन ने प्रतिष्ठा सिंह को पुस्तक के लिए धन्यवाद दिया और अपनी शुभकामनाएं दीं। इस प्रकार कार्यक्रम का समापन बहुत ही सुरुचिपूर्ण रहा। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भक्ति आंदोलन और काव्य पर परिचर्चा