Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पुस्तक-परिचर्चा : पतनशील पत्नियों के नोट्स पर बातचीत

हमें फॉलो करें पुस्तक-परिचर्चा : पतनशील पत्नियों के नोट्स पर बातचीत
विश्व पुस्तक मेले में 1 बजे वाणी प्रकाशन के स्टॉल (हॉल 12 ए (277-288) पर युवा लेखिका नीलिमा चौहान की पुस्तक ‘पतनशील पत्नियों के नोट्स’ पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरंभ नीलिमा चौहान के स्वागत के साथ हुआ। लेखिका ने पुस्तक का विमोचन किया। नीलिमा चौहान ने बताया कि इस पुस्तक का टाइटल अपने अंदर बहुत से गूढ़ रहस्य को दबाए हुए है। पतनशीलता का समय आज से 8 व 9 वर्ष पूर्व शुरू हुआ था, जब टेक्नोलॉजी का आविष्कार हुआ था और उसका प्रयोग कम ही होता था। उसमें भी स्त्रियों द्वारा इसका प्रयोग और भी कम पैमाने पर होता था। 

इस पुस्तक में उसी पतनशीलता की बात की गई है। इस किताब में स्त्री को केंद्र में रख उसके जीवन की विडंबना को दर्शाया गया है। यह किताब बताती है कि स्त्री आजीवन एक ही डोर पर चलती है और हमेशा एक ही कसौटी पर कसी जाती है। नीलिमा चौहान ने कहा कि पतनशीलता स्त्री की आजादी को लेकर लोगों की गलतफहमी को दूर करती है। साथ ही, इस पुस्तक में स्त्री-पुरुष के संबंधों पर भी पारदर्शी दृष्टि डाली गई है। जहां हीन भावना को त्यागकर निष्पक्ष भाव से अपने विचार इस पुस्तक में व्यक्त किए गए हैं। लेखिका ने कहा कि यह दौर स्त्री लेखन का है। वर्तमान समय में स्त्री लेखिकाओं ने अपनी अलग पहचान बनाई है। यह किताब उसी कड़ी में शामिल होने के लिए लिखी गई है। लेखिका ने इस पुस्तक को रोमांचक तरीके से पाठक के सामने प्रस्तुत किया है। इस किताब में घर-घर में होने वाली स्त्रियों की राजनीति है, उनकी नोंक-झोंक है, प्यार-रूठना- मनाना सब है। इस किताब में तीन पतनशील स्त्री हैं। यह किताब लेखनी का नया तरीका पेश करती है और अपनी भाषा शैली के कारण बाकी सभी से अलग खड़ी नजर आती है। 
 
किताब की भाषा चटकीली, लटकेदार, और चटकदार है। नीलिमा चौहान ने कहा कि इस किताब में तीनों स्त्रियों की सज्जनता पूर्णतः समाई हुई है। यह किताब उन औरतों को खारिज करती है जो गरीब और निम्न वर्ग की महिलाओं की आजादी का हनन करना चाहती हैं या उन्हें फैंटेसी से ज्यादा और कुछ नहीं समझती हैं। लेखिका का कहना है कि पूरी पितृसत्ता का आधार स्त्री ही है। लेकिन वही स्त्री उपेक्षित और सबसे ज्यादा दबी हुई है। ऐसा नहीं है कि पुरुष ने पितृसत्ता का हमेशा लुत्फ ही उठाया है। वही इसके नकारात्मक परिणाम समय-समय पर झेलता रहा है। यह किताब उसी नकारात्मकता के खिलाफ खड़ी होती है। यह उन सभ्य पुरुषों की बात करती है जो मर्दानगी को स्त्रियों पर हावी नहीं होने देते।
webdunia

लेखिका ने कहा कि यह किताब कहीं न कहीं उसके जीवन से प्रभावित है। उनके जीवन के कुछ अहम मूल्यों और वैवाहिक जीवन को भी इसमें शामिल किया गया है। आगे नीलिमा जी ने कहा, जिस दिन स्त्रियां अपने आप को दिखावे की दुनिया से दूर कर लेंगी, उस दिन स्त्री आजाद हो जाएगी। नारी दूसरों के कहे अनुसार खुद को ढालना चाहती है जो कि उसके लिए सही नहीं है। कुछ ऐसे ही खास मुद्दे इस किताब में प्रस्तुत किये गए हैं, उम्मीद है किताब जिस उद्देश्य से लिखी गई है वह जरूर पूरा होगा। इस परिचर्चा के अंत में श्रोताओं ने पुस्तक से जुड़े कई प्रश्न लेखिका से किए, जिनका उत्तर सहजता के साथ नीलिमा जी ने दिया। इस तरह ‘पतनशील पत्नियों के नोट्स’ पर आयोजित यह परिचर्चा सफल रही।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नामवर सिंह द्वारा 11 काव्य संग्रहों का लोकार्पण