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'पार्थ, तुम्हें जीना होगा' का विमोचन समारोह संपन्न

हमें फॉलो करें 'पार्थ, तुम्हें जीना होगा' का विमोचन समारोह संपन्न
सृजन से ना समंदर दूर हो सकता है ना आसमान। मध्यप्रदेश का साहित्य हमेशा से दिल्ली को चुनौती देता रहा है यह बात और है कि दिल्ली ऊंचा सुनती है और कई बार तो राजनेताओं से भी ज्यादा ऊंचा सुनती है। दिल्ली में बैठे साहित्यकारों को लगता है कि वह अन्य के मुकाबले बड़े है पर बड़ा अगर कोई किसी को बना सकता है तो वह है उसकी सृजनात्मकता। मैं अपनी नई पीढ़ी के साथ रहने की कोशिश करती हूं कल यही हाथ हमें भी थामेंगे और बढ़कर आसमान भी छुएंगे। एक सक्षम लघुकथाकार ही सफल उपन्यासकार बन सकता है पर ज्योति जैन अपने प्रथम उपन्यास से ही इतनी बेहतर उपन्यासकार बन सकती है यह सोचा नहीं था। 
उक्त विचार सुप्रसिद्ध साहित्यकार चित्रा मुद्गल ने वामा साहित्य मंच के एक गरिमामयी समारोह में व्यक्त किए। वे शहर की जानीमानी लेखिका ज्योति जैन के नवीनतम उपन्यास 'पार्थ, तुम्हें जीना होगा' के विमोचन अवसर पर बोल रही थीं। लेखिका ज्योति जैन के उपन्यास 'पार्थ ...तुम्हें जीना होगा' का विमोचन समारोह रविवार को जाल ऑडिटोरियम में हुआ। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यकार मौजूद थे। सुविख्यात लेखिका चित्रा मुद्गल के साथ साहित्यकार पंकज सुबीर भी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल थे। 
 
शिवना प्रकाशन प्रमुख और साहित्यकार पंकज सुबीर ने कहा कि महिलाओं के लिए राजनीति हमेशा से निषेध विषय माना जाता है। नई पीढ़ी को लेकर चित्रा जी की इस बात से मैं भी सहमत हूं कि हमारे बाद के पौधों को पानी हम नहीं देंगे तो हमें छांव कहां से मिलेगी। इन दिनों जबकि हमारी कहानियां छीजती जा रही है। उनमें से रस खत्म हो रहा है ऐसे में ज्योति जैन का उपन्यास 'पार्थ तुम्हें जीना होगा' उम्मीद की किरण बन कर आया है। यह उनका प्रथम उपन्यास है और प्रथम का हमेशा स्वागत होना चाहिए। दूसरी रचना से आलोचना या समीक्षा शुरू होनी चाहिए। आजकल  की रचनाओं में शब्दों का आडंबर है, भाषा के चमत्कार हैं, शिल्प के टोटके हैं पर बस कहानी ही नहीं है और ज्योति जी के सरल सहज उपन्यास में यह सब नहीं है फिर भी कथानक कहीं से भी बिखरता नहीं है। यही इसकी ताकत है। लेकिन स्थानीयता की कमी खलती है पर राजनीतिक और सामाजिक सरोकारों से भरा यह उपन्यास पठनीयता का सुख देता है।

लेखिका द्वारा धन्यवाद दिए जाने पर उन्होंने कहा कि प्रकाशक के प्रति लेखक को धन्यवाद ज्ञापित नहीं करना चाहिए बल्कि  होना यह  चाहिए कि प्रकाशक लेखक को धन्यवाद दें क्योंकि प्रकाशक तो अपना व्यापार कर रहा है लेकिन लेखक सृजन में लगा हुआ है, रचनाधर्मिता का काम कर रहा है। हमारे लेखन से इन दिनों जो रस नदारद है उसकी एक बड़ी वजह है कि अब लेखक चौपाल पर नहीं होते बल्कि व्हॉट्सएप और फेसबुक में लगे हैं।

अगर  कहानियों का रस और गल्प तत्व बचाना है तो चौपाल पर बैठना होगा, हमें स्थानीयता की ताकत को पहचानना होगा। जो लेखक अपने स्वाभिमान के समझौते पर अपनी कृति प्रकाशक को ना दें वही वास्तविक लेखक है। 
 
इससे पूर्व लेखिका ज्योति जैन ने अपनी रचनाधर्मिता साझा की। उन्होंने कहा कि मेरी कोशिश है मैं जैसा देखती हूं, जैसा सोचती हूं उसे पूर्णत: अभिव्यक्त कर सकूं। मेरा लेखन सहज रहे इसी प्रयास का नतीजा है कि मुझे पाठकों का प्यार मिला और आज मैं उपन्यास रचने की हिम्मत कर सकी। 
 
ज्योति जैन की इससे पूर्व 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह उनका प्रथम उपन्यास है। कविता, लघुकथा एवं कहानी संग्रह के उपरांत इस नई विधा में उन्होंने दस्तक दी है। राजनीतिक पृष्ठभूमि पर रची-बसी शिवना प्रकाशन की यह कृति साहित्य जगत में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराएगी ऐसी उम्मीद की जा रही है।

कार्यक्रम के आरंभ में भारती भाटे ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। साहित्यकार चित्रा जी का स्वागत वामा साहित्य मंच की संरक्षक डॉ. प्रेम कुमारी नाहटा तथा शारदा मंडलोई ने किया। साहित्यकार पंकज सुबीर का स्वागत स्वर्णिम माहेश्वरी और चेतन कुसमाकर ने किया। पुस्तक के आवरण रूपांकन हेतु चित्रा जी द्वारा शहर के प्रतिष्ठित रंगकर्मी संजय पटेल का स्वागत किया गया। स्मृति चिन्ह डॉ. पारूल बड़जात्या व प्रियल बड़जात्या ने दिए। स्वागत उद्बोधन वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र ने दिया। वामा साहित्य मंच की तरफ से लेखिका ज्योति जैन का सम्मान संस्था की उपाध्यक्ष अमर कौर चढ्ढा तथा रंजना फतेहपुरकर ने किया। आभार सहसचिव इंदू पाराशर ने माना। कार्यक्रम का संचालन लेखिका अंतरा करवड़े ने किया। 

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