राष्ट्रीय प्रेस दिवस 16 नवंबर को हर साल मनाया जाता है और मनाना भी चाहिए। ताकि पत्रकारिता जगत में खत्म हो रही संवादहीनता को बचाया जा सकें। एक वक्त था जब पत्रकारों और नेताओं के बीच संवाद होता था लेकिन अब परिस्थितियां उलट है। नेतागण सोशल मीडिया पर अपने मन की बात शेयर कर लेते हैं। पर जो आमजन के मन की बात होती है वह सिर्फ चुनाव आने पर याद आती है। सोशल मीडिया ने आज यूजर्स को सिटीजन रिपोर्टर बना दिया है। हालांकि उसमें 5w 1h का कही से कहीं तक कोई समावेश नहीं होता है। पर आजादी है सभी को अपना तर्क रखने की। लेकिन किसी दिन सोशल मीडिया पर सिटीजन रिपोर्टर के आलेखों पर नजर घुमाएंगा। नकारात्मक प्रतिक्रिया के किसी सिवा कुछ नहीं होता है। आज पत्रकारिता के सिद्धांत को ताक पर रखकर दिया गया है। तकनीकी क्षेत्र में मीडिया के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म - सोशल मीडिया का प्रेस की दुनिया में सबसे बड़ा दखल माना जाता है। क्योंकि एक वक्त था जब जनता न्यूज चैनल, अखबार, मैगजीन पड़ती थी। लेकिन जब पाठक वहां नहीं जा रहा है तो न्यूज चैनल, तमाम अखबार सोशल मीडिया के माध्यम से पाठकों तक पहुंच रहे हैं। लेकिन जब पाठक की खबरीदार बन जाए तो पत्रकारों के कार्य पर सवाल उठाने लगते हैं। मौजूदा समय में मीडिया के लिए सिद्धांतों के साथ ही तकनीकी क्षेत्र में भी चुनौतियां बढ़ी है। सोशल मीडिया पर वीडियो में टेक्स्ट लिखकर तेजी से वीडियो वायरल कर दिया जाता है। ऐसे में फेक न्यूज और सही खबर में अंतर करना बहुत जरूरी है। सोशल मीडिया पर कंट्रोल सिर्फ सिस्टम ही कर सकता है।
- पत्रकारों की हत्या - जहां प्रेस को मीडिया का चौथा स्तंभ कहा जाता है। लेकिन पत्रकार तो अपनी ड्यूटी करता है। पत्रकारों के लिए कठोर कानून बनाए जाने की जरूरत है। इतना ही नहीं क्रिमिनल डेफ़मेशन कानून को या तो रद्द करना चाहिए या उसमें बदलाव करें। वर्तमान में पत्रकारों के साथ जो रूख अपनाया जा रहा है वह बेहद चिंताजनक है। क्योंकि उन्हें नेशनलिस्ट और एंटी नेशनलिस्ट के तौर पर देखा जा रहा है। किसी के खिलाफ छापने से ये तात्पर्य नहीं होता है कि वह उनका दुश्मन है। पत्रकार को काम होता है घटना की तह तक जाना, जनता के सामने सही और गलत चीजों को देखना है। आज जनता तक सही खबरों को पहुंचाने के बाद पत्रकारों को धमकी मिलना, हत्या कर देना तो देशद्रोही कह देना या मानहानि का केस जड़ देना। इस तरह प्रेस की आजादी पर विराम लगाया जा रहा है।
संस्था द्वारा जारी 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 142 स्थान मिला है, जो मीडिया स्वतंत्रता की खराब स्थिति को जाहिर करता है।
पिछले 30 सालों में 98 महिला पत्रकारों ने जान गंवाई है। जिसमें से 70 की हत्या हुई है।
यूनेस्को ने 2019 में पत्रकारों की हत्या से संबंधित आंकड़ा शेयर किया है जो बेहद डरावना है।
12 साल में एक हजार से ज्यादा हत्या यूनेस्को ने Keep Truth Alive वेबसाइट के डाटा को शेयर करते हुए दुनियाभर से अपील की है कि सच को सामने लाने के
लिए इस डाटा को शेयर करना जरूरी है। इस डाटा के तहत पिछले 12 सालों में 1010 पत्रकारों की हत्या इसलिए की जा चुकी है क्योंकि वह सच के साथ खड़े थे।