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पटना पुस्तक मेले में फेमिनिज्म पर परिचर्चा

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पटना पुस्तक मेला में आज शाम वाणी प्रकाशन की ओर से फेमिनिज्म पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। ‘वोटर माता की जय!’ की लेखिका प्रतिष्ठा सिंह, वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल, वरिष्ठ लेखिका व पद्मश्री सम्मान से विभूषित उषा किरण खान व निवेदिता शकील की इस साझा वार्ता में देश में स्त्री की स्थिति, खासतौर पर शहरों की स्त्रियों पर चर्चा हुई। बहस में सभी ने यह स्वीकार किया कि आज ग्रामीण स्त्री ज्यादा सशक्त है। समस्या है तो शहर में। 

वहां महिलाओं की समस्याएं और परिस्थितियां कुछ ज्यादा कठिन हैं। प्रतिष्ठा सिंह ने अपनी पहली पुस्तक जो कि वाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित है, की चर्चा करते हुए बताया कि बिहारी महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक जागरूकता का जीवंत प्रमाण उनकी पुस्तक है। इस पुस्तक की प्रशस्ति में देश के चर्चित अदाकार शत्रुघ्न सिन्हा ने लिखा है कि ‘बिहार की महिला वोटर की आवाज को कोई नहीं कर सकता खामोश!’ 
 
बिहार की ग्रामीण महिलाएं अपनी सामाजिक और स्थापित परिस्थितयों से स्पष्ट रूप से परिचित हैं। उनका सशक्तिकरण मजबूत है। वे फेमिनिज्म नहीं, ह्यूमेनिफिज्म पर भरोसा करती हैं।
 
प्रतिष्ठा सिंह ने बताया कि सामाजिक उन्नति के स्तर को जानना है तो सबसे पहले उस समाज की महिला की दशा का अध्ययन करना जरूरी है। क्योंकि वे बिहार की निष्पक्ष राजनीति से संबंध रखती हैं इसलिए उनका लेखन भी निष्पक्ष व साफ है। इस किताब को लिखते हुए बिहार की महिलाओं ने उत्साहपूर्वक उन्हें योगदान दिया।
 
वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने ‘नए वाले फेमिनिज्म’ के बारे में बहुत ही स्पष्ट राय रखते हुए बताया कि आज स्त्री समाज में अपने सबल पैरों पर अडिग राय रख रही है। आज भी हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति और उनकी कुशल कार्यशीलता की समाज पर स्पष्ट छाप है। नदी, नारी और सभ्यता ही समाज को क्रियाशील करते हैं।
 
उषा किरण खान ने बताया कि पुराना फेमिनिज्म आयातित था, लेकिन अब नया वाला फेमिनिज्म अपना है, जमीनी है। 60 के दशक के बाद मुजफ्फरपुर, गया, दरभंगा, भागलपुर, बेराह में महिलाओं के कॉलेज खुले। यह बिहार की बात है कि हमारी शिक्षा हमारे कब्जे में है। मेरा नया उपन्यास शीघ्र ही आने वाला है जिसमें स्त्रियों के कब्जे वाले गांव-समाज का चित्रण होगा। शहरों की स्त्रियां भी व्हाईट कॉलर हैं। अब फेमिनिज्म सकारात्मक है।
 
निवेदिता जी ने कहा कि यह बड़ी बात है कि मंच पर चार महिलाएं हैं। यही नया वाला फेमिनिज्म है। आज की स्त्री अपने शरीर के बदलाव को खुलकर कह सकती है। लड़की का भाग जाना ही आगे बढ़ना है। अपने आप की स्वतंत्रता को प्रकट करना है।
 
अनीश अंकुर जी ने कहा कि पर्सनल को अलग कर प्रदर्शित करना नया फेमिनिज्म है। सरोजनी नायडू ने मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड से वोट के अधिकार के लिए संघर्ष किया। फेमिनिज्म की दिक्कत यह नजर आती है कि स्त्री पुरुष के संबंधों को महज देह तक सीमित कर दिया गया है। कार्यक्रम का संचालन अदिति माहेश्वरी-गोयल द्वारा किया गया।

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